सहयोग और सामंजस्य जरूरी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम’ के अपने संबोधन में जब ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की प्राचीन अवधारणा की व्याख्या की, तब दावोस में भारत का यह मंत्र ‘समस्त विश्व एक परिवार है’ गूंज उठा। प्रधानमंत्री ने अपने सारगर्भित संबोधन में इस वर्ष के विषय ‘क्रिएटिंग ए शेयर्ड फ्यूचर इन ए फ्रेक्चर्ड वर्ल्ड’ पर बोलते हुए स्थानीय से वैश्विक तक अनेक विषयों को छुआ। जब पूरा विश्व पूरी तन्मयता से विश्व को बेहतर बनाने हेतु भारत की चिंताओं एवं प्राथमिकताओं को सुन रहा था, प्रधानमंत्री के शब्द सभी के मन में गहरी छाप छोड़ रहे थे। भारत द्वारा प्राचीनकाल से ही शांति, सौहार्द और बंधुता के लिए दिखाए राह की चर्चा जब प्रधानमंत्री कर रहे थे, दरारों, बंटवारों एवं विवादों के दलदल से बाहर एक सांझा भविष्य की प्रस्तावना वे रख रहे थे। यह वास्तव में हर भारतीय के लिये एक गौरव का क्षण था।

प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद एवं सिकुड़ता वैश्वीकरण को ठीक ही विश्व समुदाय के समक्ष बड़ी चुनौतियों के तौर पर गिनाया। भारतीय परंपरा जिसमें पृथ्वी को ‘मां’ कहा जाता है, की ओर इंगित करते हुए उन्होंने इशोपनिषद् से भगवान बुद्ध के ‘अपरिग्रह’ तथा महात्मा गांधी की आवश्यकता अनुरूप दोहन, न कि लोभ आधारित आकांक्षाओं को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का उपाय बताया। उन्होंने यह भी बताया कि भारत किस प्रकार से इस क्षेत्र में अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में जुटा हुआ है। प्रधानमंत्री विश्व के हर मंच पर आतंकवाद के विषय को निरंतर मजबूती से उठाते रहे हैं। उन्हें हर वैश्विक मंच पर आतंकवाद को एजेंडे पर प्रमुखता से लाने में सफलता भी मिली। दावोस में भी उन्होंने इस खतरे की ओर सबका ध्यान खींचा और ‘अच्छा आतंकवाद’ और ‘बुरा आतंकवाद’ के बीच खींची गई काल्पनिक रेखा के खतरे पर जोर दिया। उन्होंने वैश्वीकरण की गति को बाधित कर रहे ‘प्रोटेक्शनिज्म’ की नीतियां जिससे देशों के बीच नई ‘टैरिफ’ की दीवारें खड़ी की जा रही है, पर चिंता व्यक्त की। कुछ देशों के आत्म–केन्द्रित नीतियों पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि भविष्य का रास्ता वैश्वीकरण की ओर जाता है न कि अलग–थलग होने में। असल में वैश्विक व्यवस्था बहुपक्षीय एवं द्विपक्षीय स्तर पर मेलजोल, सहयोग एवं सामंजस्य स्थापित करने में है, जो विविधता में तालमेल बिठाने के सिद्धांतों पर आधारित है। विश्व समुदाय को इन चुनौतियों का सामना करने को तैयार होना पड़ेगा।

भारत आज पूरे विश्व के सामने एक उदाहरण है, जहां विविधता पुष्पित–पल्लवित हुई है और लोकतंत्र दिनोंदिन मजबूत हो रहा है। अपने संबोधन में उन्होंने ठीक ही कहा कि लोकतंत्र एवं विविधता; भारत की जीवनधारा है तथा शांति, सौहार्द एवं संकल्प से विविधता में लोकतंत्र एक जोड़ने वाली शक्ति बनकर उभरी है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र और समावेशी विकास उनकी सरकार की प्रतिबद्धता है जिसका मंत्र ‘सबका साथ, सबका विकास’ है, जो समावेशी ‘विजन’ एवं ‘मिशन’ के साथ कार्य कर रही है। भारत आज ‘रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांस्फॉर्म’ पर विश्वास करता है, जिसका प्रभाव इसकी नीतियों में परिलक्षित है तथा परिणाम यह है कि मात्र साढ़े तीन वर्ष में देश में व्यापक परिवर्तन देखने को मिल रहा है। सरकार जहां ‘लाइसेंस–परमिट’ को समाप्त कर रही है, रेड–टेप’ का स्थान अब ‘रेड कार्पेट’ ने ले लिया है और निवेशकों के लिए नए अवसर अब उपलब्ध हैं, वहां अब बड़े परिवर्तन हो रहे हैं तथा तकनीक के माध्यम से उत्तरदायित्व एवं पारदर्शिता सुनिश्चित किया जा रहा है। ‘डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी, डायनेमिज्म एवं डेवलपमेंट’ से देश की ‘डेस्टिनी’ लिखी जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि हर प्रकार की दरारों को लोकतंत्र तथा विविधता के प्रति सम्मान, सौहार्द, परस्पर सहयोग, एवं संवाद से पाटा जा सकता है, जिससे विश्व शांति, स्थिरता एवं विकास सुनिश्चित हो सकता है। उन्होंने आश्वस्त किया कि हर प्रकार की विविधता एवं दरारों के बीच भारत हमेशा सौहार्द एवं समन्वय स्थापित करने की अपनी भूमिका निभाता रहेगा।

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