तीन तलाक विधेयक : कांग्रेस की दोहरी मानसिकता का शिकार

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यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने के बाद भी इसके दोषियों के लिए दंड के प्रावधान करने वाले विधेयक को संसद में पारित नहीं कराया जा सका।

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 पर राज्यसभा में लगातार अड़ंगा लगाया गया और अंतत: यह पारित नहीं हो पाया। लोकसभा में जहां कांग्रेस ने इस विधेयक का विरोध नहीं किया, इसके ठीक विपरीत राज्यसभा में इसे ‘प्रवर समिति’ में भेजने के बहाने इसे रोका गया। सरकार ने ठीक ही कांग्रेस के इस चाल पर न झुकने का निर्णय लिया तथा इस विषय पर कांग्रेस की दोहरी नीति को जनता के सामने उजागर कर दिया। इससे मुस्लिम महिलाओं की न्याय की लड़ाई और भी अधिक लंबी हो गई है तथा कांग्रेस के इस ढोंग के कारण वे अपने उचित अधिकार से वंचित हो गई हैं।

देश में मुस्लिम महिलाओं को अपनी आवाज उठाने के लिए संघर्षों के लंबे दौर से गुजरना पड़ा है तथा सर्वोच्च न्यायालय में संविधान प्रदत्त समानता के उनके वाजिब दावों पर मुहर लगवाने में उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी है। तीन तलाक पर उनकी लंबी लड़ाई की यह वास्तविक परिणति ही है कि इस प्रथा के असंवैधानिक घोषित होने के बावजूद इसको चलाने वाले लोगों के लिये कठोर दंड के कानूनी प्रावधान हों। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार दिया है, परन्तु तीन तलाक की घटनाएं अब भी घट रही हैं और इस पर कोई कानूनी दंडात्मक प्रावधान नहीं होने के कारण प्रशासन इस पर कार्रवाई नहीं कर पा रहा। ऐसी पीड़ित महिलाओं एवं उनके बच्चों के भरण–पोषण आदि इस प्रश्न के अन्य पहलू हैं, जिस पर तुरंत कानूनी प्रावधान की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

इस विधेयक से इन सब समस्याओं के हल निकलने की उम्मीद थी, परन्तु कांग्रेस जिसने लोकसभा में इस विधेयक का विरोध नहीं किया था, अंतत: घबरा गई और राज्यसभा में इसे रोक दिया। कांग्रेस नेताओं ने तीन तलाक देने वाले दोषी पतियों के कारावास की सजा पर हास्यास्पद तरीके से सवाल उठाते हुए तर्क दिया कि ऐसे करने से पीड़ित महिला एवं उनके बच्चे सड़क पर आ जाएंगे। यदि इस तर्क को मान लिया जाए तब तो किसी भी दोषी को सजा देना कठिन हो जाएगा तथा पुरुषों को अपनी पत्नियेां पर जुल्म ढाने का लाइसेंस मिल जाएगा। तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायाल्य के निर्णय की यह तर्कसंगत परिणति है कि दोषियों के विरुद्ध कठोर दंड के प्रावधान हों तथा महिलाओं के लिए समाज में एक सकारात्मक वातावरण बने। पर कांग्रेस और उसके सहयोगी अपनी इन जिम्मेदारियों से विमुख हो गये तथा मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण के लिये लाये गए इस विधेयक पर अपना कर्तव्य नहीं निभा पाये।

पूरा देश एक व्यापक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। यह परिवर्तन इस बात से प्रमाणित होता है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शाहबानो मामले में निर्णय के विपरीत तीन तलाक पर हुए निर्णय का मुस्लिम समाज ने अधिकांशत: स्वागत किया है। मजहब के नाम पर समाज के पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले वर्ग के तुष्टिकरण की राजनीति के स्थान पर महिला–सशक्तिकरण पर ठोस पहल का स्वागत हो रहा है। एनडीए सरकार के सुधारात्मक कदमों के कारण आज मुस्लिम महिलाएं ‘महरम’ के बैगर हज पर जा सकती हैं। यह बहुत ही बड़ा और स्वागत योग्य परिवर्तन है। हमारे देश में जाति, पंथ, मजहब से परे बड़े परिवर्तनों एवं सुधारों के लिये बड़े निर्णयों की आवश्यकता है, ताकि एक न्यायपूर्ण एवं समरस समाज की स्थापना हो सके जिसका सपना हमारे संविधान के निर्माताओं ने देखा था। कांग्रेस तथा इसके सहयोगी दलों को अपने राजनैतिक निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर जल्द से जल्द इस विधेयक को पारित करने में अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए।

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