संपादकीय टिप्पणियां

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पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद देशभर के अखबारों ने अपनी संपादकीय टिप्पणियों में उन्हें महान् नेता बताया है। हम यहां कुछ राष्ट्रीय हिंदी समाचार-पत्रों की संपादकीय टिप्पणियां प्रकाशित कर रहे हैं :

विराट व्यक्तित्व की विदाई

हाल के भारतीय इतिहास की सबसे लोकप्रिय और सर्व स्वीकार्य राजनीतिक शख्सियत अटल बिहारी वाजपेयी का अवसान एक ऐसे राजनेता की विदाई है, जो जननायक के साथ-साथ महानायक की छवि से लैस हो गए थे। उनके निधन के साथ ही नेताओं की वह पीढ़ी ओझल होती दिखती है, जिसने खुद को नेता से राजनेता यानी स्टेट्समैन में तब्दील कर लिया था। बीमारी के कारण वह एक अर्से से राजनीतिक तौर निष्क्रिय थे, लेकिन वह अपनी उपस्थिति का आभास कराते थे। इसका कारण यही था कि वह राजनीतिक जीवन में सक्रिय लोगों के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन गए थे। यह उनके विराट व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि उनकी मिसाल उनके विरोधी भी देते थे। आज जब यह अकल्पनीय है कि दूसरे दलों के लोग किसी अन्य दल के शिखर पुरुष का उल्लेख उसकी प्रशंसा करते हुए करें तब अटल बिहारी वाजपेयी का जाना एक राष्ट्रीय क्षति है। इस क्षति का अहसास इसलिए कहीं गहरा है, क्योंकि उनके जैसे समावेशी राजनीति के शिल्पकार दुर्लभ हैं। वह कितने विरले थे, यह इससे प्रकट होता है कि आज उनके जैसा भरोसा पैदा करने वाला नेता दूर-दूर तक नहीं नजर आता। उनके यश की कीर्ति जिस तरह फैली उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। उनकी लोकप्रियता दलगत सीमाओं से परे पहुंच गई थी, तो केवल इसलिए नहीं कि वह भाजपा के कद्दावर नेता थे और उनकी भाषण शैली सभी को मंत्रमुग्ध करती थी। इसके साथ-साथ वह उस राजनीति के वाहक भी थे जिसके कुछ मूल्य और मर्यादाएं थीं।

समन्वय के सूत्रधार

वे पहले गैर-कांग्रेसी नेता थे, जिन्होंने नेहरू-इंदिरा गांधी के बाद सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री का कार्यकाल तय किया। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने देश के आम लोगों की जरूरतों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने कई साहसिक कदम उठाए। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के जरिए भारत के कोने-कोने तक सड़कों का जाल बिछाने और हर घर तक बिजली पहुंचाने संबंधी केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग की योजनाओं को गति दी। नदियों को आपस में जोड़कर जल संबंधी समस्याओं से निपटने का विचार दिया, कावेरी जल विवाद को सुलझाया। सभी को आवास संबंधी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए शहरी सीलिंग को समाप्त किया। इन्हीं योजनाओं और उनकी सूझ-बूझ का नतीजा था कि अर्थव्यवस्था अपनी बेहतरी के दौर में प्रवेश कर सकी। सबसे उल्लेखनीय काम उन्होंने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बना कर किया। दुनिया के तमाम देशों की कड़ी नजर के बावजूद उनके कार्यकाल में पोखरण परमाणु परीक्षण किया गया। हालांकि उसके बाद भारत को दुनिया के शक्तिशाली देशों की टेढ़ी नजर का सामना करना पड़ा, पर अटल बिहारी वाजपेयी ने उसकी परवाह नहीं की। इस तरह भारत परमाणु शक्ति के रूप में दुनिया में पहचाना जाने लगा।

 

अपने मन के अटल

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से देश ने ऐसा जननेता खो दिया है, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी। वह सही मायने में ऐसे लोकतंत्रवादी नेता थे, जिन्हें एक विचारधारा के खांचे में सीमित नहीं किया जा सकता। तमाम राजनीतिक दलों में उनकी स्वीकार्यता तो थी ही, उनकी लोकप्रियता धार्मिक, क्षेत्रीय या किसी और दायरे में बंधी नहीं थी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उन्होंने बंधी-बंधाई लीक से हटकर जहां जरूरी हुआ, उदारता दिखाई और जब साहसिक कदम उठाने की जरुरत महसूस हुई, तो गुरेज नहीं किया। एक उदाहरण के तौर पर ही देखें, तो यह हैरत की बात नहीं है कि आजादी के बाद से जो कश्मीर मसला आज तक उलझा हुआ है, उसे सुलझाने की दिशा में सबसे विश्वसनीय प्रयास अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में हुआ था, जब उन्होंने जम्हूरियत, इंसानियत और कश्मीरियत की बात की थी। यह महज संयोग ही है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी पंद्रह अगस्त के अपने भाषण में अटल जी का स्मरण करते हुए कश्मीर के ऐसे ही समाधान की बात की। अटल जी ने अपने सार्वजनिक जीवन की जब शुरुआत की थी, तब संसद में कांग्रेस का वर्चस्व था, लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू तक ने उनकी प्रतिभा और प्रखरता को पहचान लिया था।

अलविदा अटल जी

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के सबसे सहज सरल व्यक्तित्व थे। उनके पूरे जीवन वृत्त को देखें, तो लगता है कि वह बिना किसी अथक प्रयास के अपने आप ही न सिर्फ लोकप्रिय हो गए, बल्कि सर्व-स्वीकार्य भी। प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने वाले नेताओं में तो वह कई तरह से विरले ही थे। सहज सरल व्यक्तित्व के मामले में उनकी तुलना कुछ हद तक सिर्फ लाल बहादुर शास्त्री से की जा सकती है। बोल-चाल, रहन-सहन में वह हमेशा ही हमारे बीच के किसी शख्स की तरह ही लगते थे। न कोई तड़क-भड़क, न कोई ओढ़ा हुआ व्यक्तित्व। वह आदर्श बघारते हुए नहीं, जीवन के हर रस का मजा लेते हुए दिखाई देते थे। लोगों से जुड़ने का उनके पास एक सशक्त औजार था, उनकी वाणी। बहुत बड़े जन-समुदाय को मंत्र-मुग्ध कर देने वाला उनके जैसा कोई दूसरा कलाकार भारतीय राजनीति को नहीं मिला। मुख पर सरस्वती विराजने का मुहावरा जितना अटल बिहारी वाजपेयी पर फिट बैठता है, उतना शायद भारत के किसी दूसरे नेता पर फिट नहीं बैठता। जन-समुदाय ही नहीं, मंत्र-मुग्ध तो उन्होंने बरसों तक पूरे देश को ही किए रखा। अपने विरोधियों को भी।

काल के कपाल पर

लंबी बीमारी के दौरान कई बार मौत को मात देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आखिरकार ‘काल के कपाल पर’ लिखने-मिटाने का सिलसिला हमेशा के लिए खत्म कर दिया। अपना 72वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा देश तभी अनहोनी की आशंका से गमगीन हो गया था, जब अपने समय के सर्वाधिक चहेते नेता की हालत बेहद नाजुक होने की सूचना मिली। इसके एक दिन बाद ही आशंका सच हो गई। वाजपेयी का जीवन विरोधाभासों के बीच राजनीति में सच्चाई, मानवीयता और सदाशयता के लिए रास्ता निकालते रहने की मिसाल के तौर पर याद किया जाएगा। लोकसभा में अपने पहले भाषण के बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनमें भावी प्रधानमंत्री की छवि देखी थी। बाद में तीन बार प्रधानमंत्री बनकर उन्होंने नेहरू की भविष्यवाणी को न सिर्फ सच किया, बल्कि सही मायनों में कांग्रेस के उत्तराधिकार को चुनौती भी दी। गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र शख्स रहे वाजपेयी ने पहली बार देश को यह भरोसा दिलाया कि कोई अन्य राजनीतिक दल भी बेहतर विकल्प हो सकता है। आज अगर केंद्र में बहुमत की भाजपा सरकार है तो उसकी नींव वाजपेयी ने ही रखी।

 

अटल सत्य: शून्य भरना न होगा संभव

उन्हें भारत रत्न तो बहुत बाद में मिला, लेकिन वे वाकई भारत रत्न थे। आज जब हमारे बीच अटल बिहारी वाजपेयी नहीं हैं, तो लगता है भारतीय राजनीति के आकाश में एक बड़ा शून्य पैदा हो गया है। ओजस्वी वक्ता, प्रखर विचारक, कवि हृदय और सादगी से जीवन जीने वाले अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिक शुचिता के पक्षधर थे। धुर दक्षिणपंथी राजनीतिक विचारधारा वाले राजनीतिक दल में शिखर तक पहुंचाने में उनका समावेशी व्यक्तित्व ही सहायक था। सार्वजनिक जीवन और राजनीतिक जीवन में इसी सोच के चलते वे सामंजस्य बना पाये। उनकी उदारवादी छवि राजनीतिक दुराग्रहों के बावजूद बाधित नहीं हुई। ओजस्वी वक्ता व तार्किक क्षमता के कारण पहले प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने कह दिया था कि वे एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। अटल जी के व्यक्तित्व की एक खासियत यह रही कि भले ही वे किसी राजनेता के मुखर आलोचक रहे हों, मगर उनके गुणों को स्वीकारते रहे हैं। पं. नेहरू की नीतियों की मुद्दों पर आलोचना करने वाले अटल जी ने उनके जाने पर कहा था कि सूर्य चला गया, हमें तारों की छाया में राहें तलाशनी होंगी। लगता है मौजूदा वक्त में भारत के राजनीतिक आकाश में फिर एक सूर्य चला गया है, हमें तारों की रोशनी में आगे की दिशा तय करनी होगी।

अलविदा अटल

अटल बिहारी वाजपेयी का जाना सही अर्थों में एक युगांत है। भारतीय लोकतंत्र ने जो भी गिने-चुने कद्दावर राजनेता पैदा किये हैं, अटल जी उनमें से शीर्ष स्थान पर रखे जा सकते हैं। भाजपा के शायद वह एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्हें ‘‘अजातशत्रु’ कहा जा सकता है। उन्हें जितना सम्मान अपनी पार्टी में प्राप्त था, उसके कहीं ज्यादा दूसरी पार्टियों के नेता उनका सम्मान करते थे। वह जब संसद में बोलने के लिए खड़े होते थे तो सभी राजनीतिक दलों के नेता उनके भाषणों को सुना करते थे। पार्टी से परे जाकर सम्मान प्राप्त करने के इस दुर्लभ गुणों के कारण ही वह भाजपा को स्वीकार्य और सार्वजनिक स्वरूप दे सके। उनके नेतृत्व में भाजपा का हिंदुत्व विनम्र और समन्वयवादी हुआ था। इसी के चलते भाजपा के अंदर नम्रता और लचीलापन आया जिससे कि भाजपा का गठबंधन हो सका। यह लचीलापन आज की राजनीति का अपरिहार्य गुण बन गया है। अटल जी को गठबंधन की व्यवहारवादी राजनीति का वास्तविक सूत्रधार कहा जा सकता है। उनके नेतृत्व में ही पहली बार भाजपा में यह आत्मविश्वास पैदा हुआ कि वह कांग्रेस का विकल्प बन सकती है।