‘एकात्ममानवदर्शन’ द्वंद्व और दुराग्रह से मुक्ति दिलाता है: नरेन्द्र मोदी

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दीनदयाल उपाध्याय जी कहते थे कि देश की प्रगति का पैमाना अंतिम पायदान पर मौजूद व्यक्ति होता है

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महान भारतीय चिन्तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्ममानवदर्शन’ और ‘अंत्योदय’ पर चर्चा की और कहा कि दीनदयालजी का ‘एकात्ममानवदर्शन’ एक ऐसा विचार है, जो विचारधारा के नाम पर द्वंद्व और दुराग्रह से मुक्ति दिलाता है। श्री मोदी ने 25 सितम्बर को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 93वीं कड़ी में यह बात कही।

श्री मोदी ने कहा कि आज 25 सितंबर को देश के प्रखर मानवतावादी, चिन्तक और महान सपूत दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्मदिन मनाया जाता है। किसी भी देश के युवा जैसे-जैसे अपनी पहचान और गौरव पर गर्व करते हैं, उन्हें अपने मौलिक विचार और दर्शन उतने ही आकर्षित करते हैं।

उन्होंने कहा कि दीनदयाल जी के विचारों की सबसे बड़ी खूबी यही रही है कि उन्होंने अपने जीवन में विश्व की बड़ी-बड़ी उथल-पुथल को देखा था। वो विचारधाराओं के संघर्षों के साक्षी बने थे। इसीलिए, उन्होंने ‘एकात्ममानवदर्शन’ और ‘अंत्योदय’ का एक विचार देश के सामने रखा जो पूरी तरह भारतीय था।

श्री मोदी ने कहा कि दीनदयालजी का ‘एकात्ममानवदर्शन’ एक ऐसा विचार है, जो विचारधारा के नाम पर द्वंद्व और दुराग्रह से मुक्ति दिलाता है। उन्होंने मानव मात्र को एक समान मानने वाले भारतीय दर्शन को फिर से दुनिया के सामने रखा।

उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्रों में कहा गया है– ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ अर्थात्, हम जीव मात्र को अपने समान मानें, अपने जैसा व्यवहार करें। आधुनिक, सामाजिक और राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में भी भारतीय दर्शन कैसे दुनिया का मार्गदर्शन कर सकता है, ये दीनदयालजी ने हमें सिखाया। एक तरह से आजादी के बाद देश में जो हीनभावना थी, उससे आजादी दिलाकर उन्होंने हमारी अपनी बौद्धिक चेतना को जागृत किया। वो कहते भी थे– ‘हमारी आज़ादी तभी सार्थक हो सकती है जब वो हमारी संस्कृति और पहचान की अभिव्यक्ति करे।’ इसी विचार के आधार पर उन्होंने देश के विकास का विजन निर्मित किया था।

श्री मोदी ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय जी कहते थे कि देश की प्रगति का पैमाना अंतिम पायदान पर मौजूद व्यक्ति होता है। आज़ादी के अमृतकाल में हम दीनदयालजी को जितना जानेंगे, उनसे जितना सीखेंगे, देश को उतना ही आगे लेकर जाने की हम सबको प्रेरणा मिलेगी।

‘परहित सरिस धरम नहीं भाई’
‘मन की बात’ के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि हमारे शास्त्रों में कहा गया है–‘परहित सरिस धरम नहीं भाई’ यानी दूसरों का हित करने के समान, दूसरों की सेवा करने, उपकार करने के समान कोई और धर्म नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों देश में समाज सेवा की इसी भावना की एक और झलक देखने को मिली। आपने भी देखा होगा कि लोग आगे आकर किसी ना किसी टी.बी. से पीड़ित मरीज को गोद ले रहे हैं, उसके पौष्टिक आहार का बीड़ा उठा रहे हैं।

श्री मोदी ने कहा कि दरअसल, ये टीबी मुक्त भारत अभियान का एक हिस्सा है, जिसका आधार जनभागीदारी है, कर्तव्य भावना है। सही पोषण से ही, सही समय पर मिली दवाइयों से, टीबी का इलाज संभव है। मुझे विश्वास है कि जनभागीदारी की इस शक्ति से वर्ष 2025 तक भारत जरुर टीबी से मुक्त हो जाएगा।