जनजाति सशक्तीकरण के संकल्प की मिसाल

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द्रौपदी मुर्मूजी का राष्ट्रपति निर्वाचित होना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है। अत्यंत गरीब पृष्ठभूमि की जनजातियों में भी सबसे पिछड़े संथाली परिवार से निकलकर संघर्षों एवं कर्मठता के बलबूते उनका सर्वोच्च पद तक पहुंचना देशवासियों के साथ-साथ जनजातीय समाज के लिए भी गौरव का क्षण है। ऐसे समाज को शीर्ष पर प्रतिनिधित्व देने में देश को सात दशकों की लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ी। आज हमारा लोकतंत्र इस प्रश्नचिह्न से मुक्त हो गया है। देश की कुल जनसंख्या में आदिवासी समाज की संख्या नौ प्रतिशत है। स्वतंत्रता आंदोलन में भी आदिवासी समाज का योगदान-बलिदान अविस्मरणीय है, किंतु स्वतंत्र भारत में सरकारों ने लंबे समय तक उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ने एवं उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए।
अटलजी के नेतृत्व में जब पहली बार भाजपानीत राजग की सरकार बनी तो इस समाज की आशाओं-आकांक्षाओं को समझने का गंभीर प्रयास हुआ। अटलजी द्वारा जनजातीय समाज के उत्थान एवं समृद्धि के लिए 1999 में एक अलग मंत्रालय बनाने के साथ ही 89वें संविधान संशोधन के जरिये राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना कर इनके हितों को सुनिश्चित करने की पहल की। अटलजी ने जनजातीय समाज के उत्थान एवं सम्मान की जो शुरुआत की, पिछले आठ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने उसे और सशक्त ढंग से आगे बढ़ाया है।

जनजातीय समाज के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के साथ उनकी सांस्कृतिक विरासत को सम्मानपूर्वक देश के समक्ष लाने का कार्य भी मोदी सरकार कर रही है। जनजातीय कला, साहित्य, परंपरागत ज्ञान एवं कौशल जैसे जनजातीय विषयों को अध्ययन-अध्यापन में सम्मिलित किया गया है। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में जनजातीय नायकों-नायिकाओं की वीरगाथाओं को सामने लाने के उद्देश्य से देश भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है

‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ के संकल्प को लेकर आगे बढ़ रही मोदी सरकार ने अपने निर्णयों एवं नीतियों में जनजातीय समुदाय के सभी वर्गों की आशाओं एवं आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए तमाम दूरदर्शी कदम उठाए हैं। मोदीजी के आठ वर्ष के कार्यकाल में जनजाति विकास की लगभग सभी योजनाओं में पहले की तुलना में भारी वृद्धि हुई है। केंद्र सरकार द्वारा संचालित जनजातीय उप-योजना बजट को वित्त वर्ष 2021-22 में 21 हजार करोड़ रुपये से चार गुना बढ़ाकर 86 हजार करोड़ रुपये किया गया है। इसके अंतर्गत जनजातीय वर्गों के लिए जल जीवन मिशन के जरिये 1.28 करोड़ घरों में नल से जल पहुंचाने, 1.45 करोड़ शौचालय बनवाने, 82 लाख आयुष्मान कार्ड बनवाने एवं प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 38 लाख घर बनवाने जैसे अनेक कार्य किए गए हैं।
एकलव्य माॅडल विद्यालयों का बजट 278 करोड़ से बढ़ाकर 1,418 करोड़ और जनजातीय छात्रों के लिए निर्धारित छात्रवृत्तियों का बजट 978 करोड़ से बढ़ाकर 2,546 करोड़ रुपये किया गया है। इसके अतिरिक्त उद्यमिता विकास के उद्देश्य से नई योजना में 327 करोड़ रुपये के बजट से 3,110 वन-धन विकास केंद्रों एवं 53 हजार वन-धन स्वयं सहायता समूहों की स्थापना की गई है।

जनजातियों का वास मुख्य रूप से खनन प्रभावित क्षेत्रों में है, किंतु उन्हें कभी खनन से होनेवाली आय में हिस्सेदारी नहीं मिलती थी। मोदीजी ने डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड की स्थापना से इस विसंगति को दूर करते हुए सुनिश्चित किया कि खनन से हुई आय का 30 प्रतिशत स्थानीय विकास में खर्च हो। इसके जरिये अभी तक 57 हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि एकत्रित हुई है, जिसका उपयोग जनजातीय क्षेत्रों के विकास में हो रहा है। इसके अतिरिक्त जनजातीय उत्पादों के विपणन के लिए बने ट्राईफेड संचालित ट्राइब्स इंडिया आउटलेट्स की संख्या 29 से बढ़कर 116 की गई है।

जनजातीय समाज के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के साथ उनकी सांस्कृतिक विरासत को सम्मानपूर्वक देश के समक्ष लाने का कार्य भी मोदी सरकार कर रही है। जनजातीय कला, साहित्य, परंपरागत ज्ञान एवं कौशल जैसे जनजातीय विषयों को अध्ययन-अध्यापन में सम्मिलित किया गया है। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में जनजातीय नायकों-नायिकाओं की वीरगाथाओं को सामने लाने के उद्देश्य से देश भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है।

भगवान बिरसा मुंडा की जन्मतिथि 15 नवंबर को अब जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश भर में 200 करोड़ रुपए के बजट से जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों की स्थापना की जा रही है। मोदीजी अक्सर अपने भाषणों में भी जनजातीय नायकों-नायिकाओं के योगदान की चर्चा करते हुए उनके प्रति आदर व्यक्त करते रहते हैं। यह सब बातें दर्शाती हैं कि मोदी सरकार जनजातीय समाज के विकास और सम्मान के लिए मन, वचन और कर्म के साथ हर प्रकार से जुटी हुई है।

भारत में कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक विशेषकर झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान और गुजरात में जनजाति वर्ग की बड़ी आबादी वास करती है। आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस ने उन्हें सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया। बड़ी जनजातीय आबादी वाले पूर्वोत्तर क्षेत्र की भी कांग्रेस ने निरंतर उपेक्षा की, लेकिन मोदी जी ने शासन में आते ही एक्ट ईस्ट नीति के तहत पूर्वोत्तर के विकास पर बल दिया। पिछले आठ वर्षों में पूर्वोत्तर राज्यों को मुख्यधारा से जोड़ते हुए उन्हें राष्ट्रीय प्रगति का साझेदार बनाया गया है। इस विकास से शांति भी स्थापित हुई है।

भाजपा हमेशा जनजातीय समाज की प्रगति के लिए कृतसंकल्पित रही है और आज मोदी जी के नेतृत्व में जब राष्ट्रपति चुनने का अवसर आया, तो देश को द्रौपदी मुर्मूजी के रूप में पहला जनजातीय राष्ट्रपति भी मिला है। सबसे निचले पायदान पर मौजूद समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मूजी आज जब देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंची हैं तो यह पूरे देश के लिए अत्यंत गौरव की बात है। यह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदीजी के जनजाति सशक्तीकरण के संकल्प की एक नायाब मिसाल है

गरीबी के साथ-साथ असुरक्षा जनजातीय समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है, जिसका लाभ वामपंथी उग्रवादी तत्वों ने अपनी जड़ें जमाने में किया। इन तत्वों ने न सिर्फ हमारे आदिवासी युवाओं को पथभ्रष्ट किया, बल्कि इन क्षेत्रों के विकास की राह में बाधा भी डाली। मोदी सरकार में यह स्थिति बदली है। उग्रवाद और नक्सलवाद पर जीरो टालरेंस की नीति से इनके दायरे सीमित हुए हैं। नक्सलवाद का प्रभाव अब न के बराबर ही रह गया है। इससे प्रभावित रहे क्षेत्रों में सुरक्षा की भावना बढ़ी है। इससे स्थानीय लोग विकास की मुख्यधारा में सहजता से शामिल हो रहे हैं।

जनजातीय समाज का उत्थान, गरिमापूर्ण जीवन, सामाजिक एवं आर्थिक विकास और उनकी राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करना भाजपा की विचारधारा का अभिन्न अंग रहा है। भाजपा हमेशा जनजातीय समाज की प्रगति के लिए कृतसंकल्पित रही है और आज मोदी जी के नेतृत्व में जब राष्ट्रपति चुनने का अवसर आया, तो देश को द्रौपदी मुर्मूजी के रूप में पहला जनजातीय राष्ट्रपति भी मिला है। सबसे निचले पायदान पर मौजूद समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मूजी आज जब देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंची हैं तो यह पूरे देश के लिए अत्यंत गौरव की बात है। यह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदीजी के जनजाति सशक्तीकरण के संकल्प की एक नायाब मिसाल है।

(लेखक केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री हैं)