द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के सामाजिक मायने

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सुदर्शन भगत

भाजपा एवं केंद्र सरकार द्वारा लिये गए सशक्त निर्णय के परिणामतः देश के सुदूर ग्रामीण अंचल के जनजाति समाज से आनेवाली श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का देश की पंद्रहवीं राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन आज हम सबके लिए गौरव का विषय है। देश का जनजाति समाज आज गौरवान्वित महसूस कर रहा है। जनजाति घर में जन्मी बेटी आज देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हैं। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का जनजाति समाज से लगाव एवं उन्हें सदैव महत्व देने की नीति के परिणामस्वरूप ही हम आज यह दिन देख पा रहे हैं। चाहे गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए जनजाति समाज के प्रति झुकाव हो अथवा केंद्र में आने के पश्चात् देश के समेकित विकास की परिकल्पना करते समय सदैव प्रधानमंत्री मोदीजी ने जनजाति समाज के कल्याण, उन्हें प्रोत्साहन देने, उनकी शिक्षा और जनजातीय अंचलों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के प्रति ध्यान दिया है।

आज एक आदिवासी बेटी, देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचनेवाली पहली आदिवासी एवं भारत गणराज्य की दूसरी महिला राष्ट्रपति बन गई हैं। राष्ट्रपति के रूप में वे हर भारतवासी विशेषतः महिलाओं, आदिवासियों सहित समस्त ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व भारत के सर्वोच्च पद पर करेंगी। एक वनवासी की भावना, उनकी संवेदना एवं दुःख-दर्द वनवासी ही समझ सकता है—अर्थात् भोगे हुए यथार्थ का दर्द। निजी जीवन में अथक संघर्ष, मूल्य आधारित जीवन जीनेवाली, शुचिता और प्रामाणिकता के साथ समाजिक जीवन में नए प्रतिमान गढ़नेवाली ध्येयनिष्ठ आदर्श महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के रूप में राष्ट्रपति चुनने पर भाजपा नेतृत्व और प्रधानमंत्रीजी का जितना धन्यवाद किया जाय कम है। मुझे लगता है द्रौपदी मुर्मूजी दुनिया में आदिवासियों और वंचितों की आवाज बुलंद करनेवाली सबसे बड़ी महिला नायिका के रूप में उभरकर सामने आएंगी। इनके रूप में भारत की महिलाएं एवं समस्त आदिवासी जन अपने आपको शीर्ष पद पर आसीन पाएंगे।

द्रौपदी मुर्मू का जीवन अनेक संकटों एवं संघर्षों का गवाह बना, जो उनकी जीवटता को दर्शाता है। उन्होंने अपने पति और दो बेटों को खो देने का दु:ख झेला। इस दौरान अपनी इकलौती बेटी इतिश्री सहित पूरे परिवार को हौसला देती रहीं। उनकी आंखें तब नम हुईं जब उन्हें झारखंड के राज्यपाल के रूप में शपथ दिलाई जा रही थी। वे धार्मिक संस्कारों से युक्त आदर्श एवं साहसी महिला हैं। उन पर भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों का विशेष प्रभाव है।

एक साधारण परिवार से संबंध रखनेवाली बहन का देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने से भारतीय लोकतंत्र की पहचान को और मजबूती मिलेगी। भारत के राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होना उनकी जैसी पृष्ठभूमि वाले करोड़ों लोगों को प्रेरणा प्रदान करनेवाला है। इससे भारतीय लोकतंत्र को न केवल और बल मिलेगा, बल्कि उसका यश भी बढ़ेगा।

आज दूरदृष्टा प्रधानमंत्री मोदीजी के नेतृत्व में भारत विकास के नए आयाम गढ़ रहा है। देश की युवाशक्ति द्वारा देश को एक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में विकसित करने पर काम चल रहा है। देश विभिन्न क्षेत्रों में अपनी वैश्विक पहचान बना रहा है। ऐसे अनेक बदलाव के समय में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की भूमिका न केवल महत्वपूर्ण होगी बल्कि निर्णायक भी बनेगी। अतः श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के ऊपर यह दायित्व देकर देश आश्वस्त होना चाहता है कि संविधान का शासन पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक निर्बाध रूप से चलेगा और देश की सीमाएं पूरी तरह सुरक्षित रहेंगी, क्योंकि राष्ट्रपति ही सेनाओं के सुप्रीम कमांडर होते हैं। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि किसी आदिवासी महिला को राष्ट्रपति के पद पर बैठाकर उसके पद की गरिमा को बढ़ाया जाएगा।

देश में वनवासी समाज बहुत शांत और स्वावलंबी जीवन जीता है। वन क्षेत्रों एवं ग्रामीण अंचल में रहनेवाला यह देशभक्त समाज सदैव अपने स्वाभिमान और अपनी भूमिमाता, धर्म और संस्कृति की रक्षा में समर्पित रहता है। प्रकृति-पूजक यह समाज देश की मुख्यधारा में आकर देश के विकास में सहभागी बन रहा है। इसकी सुखद अनुभूति हमें राष्ट्रपति पद पर देश की वनवासी बेटी के राष्ट्रपति बन जाने से हो रही है। मैं स्वयं एक आदिवासी परिवार में जन्मा और देश के लगभग सभी जनजाति अंचलों में निरंतर घूमना होता है। इस निर्णय के बाद देश के जनजाति समाज में एक नया उत्साह और स्वाभिमान जगा है। देश के प्रधानमंत्री एवं भाजपा नेतृत्व को देश के समस्त जनजाति बहुल ग्राम पंचायतों से धन्यवाद के पत्र भेजे गए। अपने-अपने गांव एवं बसावटों में जनजाति समाज के लोग अपनी पारंपरिक अंदाज में खुशियां मना रहे हैं। वनवासी समाज ने जंगलों में अंग्रेजी शासन से लम्बा संघर्ष किया है। स्वतंत्रता आन्दोलन में जनजाति समाज की सक्रिय सहभागिता हम सभी जानते हैं। किन्तु आजादी के पश्चात् हमारे समाज को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला।

आज धर्मांतरण का दंश झेल रहा जनजाति समाज सजग और जागरूक हो गया है। अपनी नई पीढ़ी को उच्च और कौशल शिक्षा प्रदान करने हेतु जागरूक है। ऐसे में हमारे मध्य से वनवासी बेटी के देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने से आज वनवासी समाज उत्साहित है। सभी बुजुर्ग देश के प्रधानमंत्रीजी के निर्णय की खुले मन से प्रशंसा कर रहे हैं। युवा अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त हैं, अब भविष्य में हमारे साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। अब हम मुख्यधारा में रहकर अपनी प्रतिभा के अनुसार कार्य कर पाएंगे। देश की महिलाओं और बालिकाओं में स्वाभिमान चरम पर है। आदिवासी बहनें देश के विकास में अपनी सहभागिता महसूस करने लगी हैं। सादगी और सहजता की प्रतिमूर्ति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के नेतृत्व में अपनी सहभागिता खोज रहे जनजाति समाज आज गौरवान्वित महसूस कर रहा है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में आदिवासी समाज को मिले इस सर्वोच्च सम्मान के प्रति पूरा समाज कृतज्ञता व्यक्त कर रहा है।

भारत के सामाजिक ताने-बाने को देखें तो, देश का वनवासी समाज आर्थिक रूप से पिछड़ा एवं अभावों में जीवन-यापन करनेवाला है। विकास की मुख्यधारा से दूर, जंगलों में, सुदूर ग्रामीण अंचल में निवास करनेवाले समाज की बेटी को राष्ट्रपति के रूप में देश के बड़े वर्ग ने उन्हें सहर्ष स्वीकार किया है। उनके उम्मीदवार घोषित होते ही देश भर में लोगों ने समर्थन व्यक्त किया एवं भाजपा नेतृत्व और प्रधानमंत्रीजी के परिपक्व निर्णय की भरपूर सराहना की। इसलिए आज देश में जनजाति समाज के प्रति लोगों का भाव एवं उनके प्रति दृष्टि भी बदली है। देश द्वारा वनवासी बेटी को राष्ट्रपति बनाने की घटना हमारी अनेक पीढ़ियों तक सदैव याद की जाती रहेगी। स्वाभिमान और गौरव के इस अनुपम क्षण को देश में आदिवासी समाज सहित समस्त जनता महसूस कर रही है।

                (लेखक लोकसभा सांसद एवं पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री हैं)