पत्र-पत्रिकाओं से…

| Published on:

नतीजे आने बाकी

रकार का कहना है कि नोटबंदी बुनियादी रूपांतरण का एक कदम है, भारत जैसी विशाल और जटिल इकॉनमी में इसके नतीजों को जमीन पर उतरने में थोड़ा वक्त लगेगा। यह बात दुनिया भर के विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि नोटबंदी ने लेन-देन और कारोबार के चरित्र में परिवर्तन की प्रॉसेस को तेज कर दिया। इसकी वजह से न सिर्फ बैंक खातों की संख्या बढ़ी है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी चेक, क्रेडिट-डेबिट कार्ड, ऑनलाइन मनी ट्रांसफर और ई-वॉलेट के इस्तेमाल में तेजी आई है। अर्थव्यवस्था में बहुत सारी चीजें ऑन रिकॉर्ड और पारदर्शी हुईं हैं, जिससे कई तरह की गड़बड़ियां दूर हुई हैं। नोटबंदी ने पहली बार देश के आम लोगों को भी अहसास कराया कि पैसा घर में रखने की चीज नहीं, उसे बाजार में लगाए रखने में ही समझदारी है
– (नवभारत टाइम्स, 8 नवंबर)

नेक नीयत की सफलता

द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह महत्वपूर्ण जानकारी दी है कि बैंकों में लौटे रुपयों से ये पता चला कि उन पर किसकी मिल्कियत है। कुल लौटे धन का एक तिहाई हिस्सा सिर्फ डेढ़ लाख लोगों ने जमा कराया। जाहिर हुआ कि 18 लाख लोगों की संपत्ति उनकी आमदनी से ज्यादा है। ऐसे तमाम लोग अब आयकर विभाग की पूछताछ के दायरे में हैं। यानी नोटबंदी से काले धन पर शिकंजा कसने में सचमुच मदद मिली है। देशभर में डिजिटल लेन-देन भी बढ़ा, यह आम तजुर्बा है। इसलिए डॉ. मनमोहन सिंह के इस दावे से शायद ही कोई सहमत हो कि ‘नोटबंदी संगठित और कानूनी लूट थी। इस बयान पर यदि अरुण जेटली ने पूर्व प्रधानमंत्री को उनके शासनकाल में हुए घोटालों की याद दिलाई, तो यह तार्किक ही है। बेहतर होता कि नोटबंदी की सालगिरह पर ऐसी सियासी तू-तू,मैं-मैं नहीं होती। इसके बदले इस फैसले के असर का वस्तुगत विश्लेषण किया जाता। इतने बड़े कदम से आम आर्थिक जिंदगी में व्यवधान नहीं पड़ता, यह संभव नहीं था। बेशक, नोटबंदी के चलते आमजन को दिक्कतें झेलनी पड़ीं, लेकिन कुल लाभ-हानि का जायजा लिया जाए, तो यही कहा जाएगा कि एनडीए सरकार ने वो निर्णय देश के व्यापक हित में लिया था। भले ही गति धीमी हो, लेकिन उसके उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति हो रही है।
– (नई दुनिया, 8 नवंबर)

सीमित निष्कर्ष

श्व बैंक की वर्ष 2018 की कारोबारी सुगमता संबंधी वैश्विक रैंकिंग में बहुप्रतीक्षित अच्छी खबर छिपी है। भारत 30 स्थान की उछाल के साथ अब 100वें स्थान पर आ गया है। वह उन 10 देशों में शामिल है जिन्होंने सबसे ज्यादा सुधार किया है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए खुशखबरी है। सरकार ने इस सूचकांक के शीर्ष 50 में शामिल होने का लक्ष्य तय किया हुआ है। गत वर्ष अपेक्षाकृत धीमी शुरुआत के बाद हमने महज एक स्थान का सुधार किया था, लेकिन अब शायद सरकार की कोशिशें रंग ला रही हैं। यह बात ध्यान देने लायक है कि ऐसे सूचकांक, खासतौर पर इस सूचकांक की चाहे जो भी सीमा हो, लेकिन वे वैश्विक निवेशकों के निर्णय को प्रभावित करते हैं। इसलिए सरकार का भारत की रैंकिंग सुधारने पर ध्यान देने का निर्णय उचित है। इसके सकारात्मक परिणाम भी नजर आ रहे हैं। विश्व बैंक के मुताबिक करों का ऑनलाइन भुगतान आसान होना, किसी निर्माण अनुमति के लिए भवन योजना को पहले जमा करने की संभावना, पैन और टैन (स्थायी खाता संख्या और कर खाता संख्या) के साथ एक नया कारोबारी ढांचा और भविष्य निधि और सरकारी बीमा निस्तारण के लिए लगने वाले समय में कमी भारत के प्रदर्शन में इस सुधार की सबसे बड़ी वजह हैं।
– (बिजनेस स्टैंडर्ड, 1 नवंबर)