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उम्मीदों के प्रावधान

लेकिन अगर हम इस बजट को किसान और गरीब की नजर से देखें, तो यह बजट काफी उम्मीदें बंधाता है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत का डेढ़ गुना करके किसानों का दिल जीत लेना चाहती है। साथ ही समर्थन मूल्य अब सभी तरह की फसलों पर मिलेगा। सरकार इसकी भी व्यवस्था करना चाहती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों तक पहुंचे। इसके लिए एक तंत्र विकसित करने की भी बात है। अटकल यह है कि शायद इसके लिए मध्य प्रदेश की ‘भावांतर योजना’ जैसी कोई व्यवस्था बने। लेकिन बजट का सबसे बड़ा फैसला 50 करोड़ लोगों तक स्वास्थ्य बीमा योजना को पहुंचाना है। इसके तहत देश के दस करोड़ परिवार जरूरत पड़ने पर सालाना पांच लाख रुपये तक का इलाज करा सकेंगे। बेशक इस फैसले को लोक-लुभावन कहा जा सकता है। जाहिर है कि सरकार अगले चुनाव में इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करेगी। इससे भी बड़ा सच यह है कि देश को स्वास्थ्य के लिए ऐसे ही बड़े कदम की जरूरत थी। स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रावधान बढ़ाकर स्वास्थ्य सुविधाएं सब तक पहुंचाने की बात कई बरस से चल रही है, लेकिन यह कोशिश किसी तरफ जाती नहीं दिखी। योजना से स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर पर असर न पड़े, इसके लिए नए मेडिकल कॉलेज खोलने के प्रस्ताव भी काफी महत्वपूर्ण हैं।
– (हिन्दुस्तान – 2 फरवरी, 2018)

वित्त की बुनियाद

आमतौर पर चुनाव के ठीक पहले वाले आम बजट में हर वर्ग के लोगों को खुश करने का प्रयास देखा जाता है, पर इस बार ऐसा नहीं हुआ। राजकोषीय घाटे और महंगाई पर काबू पाने तथा औद्योगिक क्षेत्र में बेहतरी लाने की चिंता अधिक दिखाई दी सबसे अधिक जोर कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास पर दिया गया है। कृषि क्षेत्र में सौ करोड़ रुपए तक का कारोबार करने वाली कंपनियों को पांच वर्ष के लिए शत प्रतिशत कटौती का प्रावधान किया गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गांवों में एक करोड़ घर बनाने का प्रावधान है। इसी तरह रेल बजट में किराया बढ़ोतरी के बजाय रेलवे के संचालन और सुविधाओं में बेहतरी लाने और विस्तारीकरण पर जोर दिया गया है। इसमें सभी पटरियों को ब्रॉडगेज और स्टेशनों को उन्नत तकनीक से लैस करने पर जोर दिया गया है। आज जिस तरह दूसरे क्षेत्रों में उन्नत तकनीक के उपयोग से बेहतरी लाने का प्रयास दिखाई देता है, रेलवे पिछड़ा नजर आता है, ऐसे में इस बजटीय प्रावधान से कुछ बेहतरी की उम्मीद जगती है। हालांकि लंबे समय से लटकी परियोजनाओं को पटरी पर लाने, गाड़ियों की सुस्त रफ्तारी दूर करने और मुसाफिरों की मुश्किलों को दूर करना सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। इस दिशा में उसे कहां तक कामयाबी मिलती है, इस रेल बजट की सफलता काफी कुछ इस पर निर्भर करेगी।
– (जनसत्ता – 2 फरवरी, 2018)

याद आया किसान

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आशा के अनुरूप ही बजट का फोकस किसानों और ग्रामीण क्षेत्र पर रखा। इसे चुनावी बजट कहें या कुछ और लेकिन अपने ढांचे में यह पूरे देश का बजट है। इसका ज्यादा जोर सामाजिक विकास पर है। मुखर तबकों को किनारे रखकर धीरे बोलने वाले नागरिकों के हितों का भी ध्यान रखने का प्रयास किया गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो थोड़ा जोखिम उठाते हुए सरकार ने इस बार शहरी मध्यवर्ग के बजाय गांवों और गरीबों को ज्यादा तवज्जो दी है। संदेश साफ है। जब तक जमीनी विकास नहीं होगा, तब तक आर्थिक विकास की गति सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी। किसानों की शिकायत दूर करते हुए खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत का डेढ़ गुना करने की बात कही गई है। ऐसे में असल चीज है लागत का सही निर्धारण। सरकार चाहती है कि गांवों में न सिर्फ बुनियादी जरूरतें उपलब्ध हों बल्कि वहां तकनीकी सुविधाएं भी जुटाई जाएं ताकि किसानों का हर स्तर पर विकास हो सके। इसके लिए वहां 2 करोड़ शौचालय बनाने, बिजली और गैस कनेक्शन देने के अलावा गांवों में इंटरनेट के 5 लाख हॉटस्पॉट बनाए जाएंगे।
– (नवभारत टाइम्स – 2 फरवरी, 2018)