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विकास के लिए

उत्तर प्रदेश में हुई ‘इनवेस्टर्स समिट’ समिट तरक्की की दिशा में पहला कदम हो सकती है। समिट के पहले ही दिन अभी तक जो ब्योरा मिला है और जो माहौल दिखाई दिया है, उससे एक बड़ी उम्मीद तो बंधती ही है। देश और दुनिया भर के बड़े उद्योगपतियों का एक साथ एक मंच पर पूरी तैयारी के साथ जमा होना, और एक के बाद एक 4.28 लाख करोड़ रुपये के 1,045 एमओयू पर दस्तखत होना यह बताता है कि यह सिर्फ राज्य सरकार का एक औपचारिक प्रयास भर नहीं है, बल्कि देश-दुनिया के उद्योगपति इसमें खासी दिलचस्पी ले रहे हैं। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश को एक नई चुनौती दी, प्रदेश को महाराष्ट्र से पहले ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने की चुनौती। महाराष्ट्र के लिए भी यह बहुत आसान नहीं है, पर वह इससे ज्यादा दूर भी नहीं है। उत्तर प्रदेश को इसके लिए काफी दूरी तय करनी होगी। उत्तर प्रदेश के मुकाबले महाराष्ट्र के पास बहुत बड़ा व विकसित इन्फ्रास्ट्रक्चर है। उत्तर प्रदेश अगर ऐसी तमाम दिक्कतों के बावजूद महाराष्ट्र को पछाड़ सका, तो एक इतिहास बन जाएगा। प्रदेश के पास इसकी क्षमता तो है, लेकिन चुनौती उस क्षमता के सही उपयोग की है। इसके लिए प्रदेश को उन सब बाधाओं को भी दूर करना होगा, जिसके कारण निवेशक पहले भी उत्तर प्रदेश आते-आते रह जाते थे।
— (हिन्दुस्तान, 23 फरवरी, 2018)

निवेश की आस

खनऊ में हुए दो दिवसीय निवेशक सम्मेलन में जो उत्साह देखा गया उससे उम्मीद पैदा हुई है ,गौरतलब है कि सम्मेलन में रिलायंस, अडाणी, आदित्य बिड़ला और टाटा समूह सहित देश के बड़े औद्योगिक घरानों ने उत्तर प्रदेश में निवेश के लिए उत्साह दिखाया है। निश्चित रूप से यह राज्य सरकार के लिए खुश होने की बात होगी कि इस आयोजन में चार लाख अट्ठाईस हजार करोड़ रुपए के निवेश की घोषणाएं हुई। इतनी बड़ी राशि की अहमियत इसलिए भी है कि पहली बार किसी राज्य को अपने सालाना बजट यानी चार लाख अट्ठाईस हजार करोड़ रुपए के बराबर निवेश के प्रस्ताव मिलेदेखा गया है कि बहुत सारे एमओयू यानी सहमति-पत्र घोषित तो हो जाते हैं, पर कार्यान्वित नहीं हो पाते। सम्मेलन में जितनी बड़ी रकम के निवेश के प्रस्तावों पर सहमति की घोषणाएं हुई हैं, उन पर न केवल गंभीरता से अमल सुनिश्चित कराने की जरूरत है, बल्कि इसके साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के निकायों के ढांचे को भी मजबूत और कारगर बनाने पर शिद््दत से ध्यान देना होगा।
— ( जनसत्ता, 23 फरवरी, 2018)

यदि मुख्य सचिव ही सुरक्षित नहीं तो
फिर कौन है?

जनीति में कुछ भी संयोगवश नहीं होता, यदि यह होता है तो आप शर्त लगा सकते हैं कि इसकी योजना ही उस तरह बनाई गई थी।’ एक कोट में यह कहा गया है, जो व्यापक रूप से रूजवेल्ट का बताया जाता है। दिल्ली में 20 फरवरी की रात जो पटकथा सामने आई वह सुनियोजित प्रतीत होती है। लगता है मुख्य सचिव अंशु प्रकाश को जाल बिछाकर मुख्यमंत्री निवास पर बुलाया गया, ऐसी जगह जहां जाने से वे इनकार नहीं कर सकते थे। अपने ही विधायकों के दबाव में मुख्यमंत्री ने उनका सीधे सामना करने के लिए मुख्य सचिव को बुला लिया। लेकिन, इसके बाद पटकथा गड़बड़ होकर मुख्य पात्र के काबू से बाहर चली गई। यदि केजरीवाल को मुख्य सचिव से वाकई कोई समस्या है तो कई लोकतांत्रिक व सभ्य तरीके उपलब्ध हैं, फिर चाहे दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में एक आईएएस अधिकारी को नियंत्रित करने की गुंजाइश कितनी ही कम क्यों न हो जब एलजी (उपराज्यपाल) दिल्ली विधानसभा में आएंगे तो क्या अब हम विधायकों से उनकी रक्षा के लिए पुलिस सुरक्षा मांगेंगे? तब हम क्या उत्तर कोरिया या म्यांमार से अलग हैं?
— ( दैनिक भास्कर, 21 फरवरी, 2018)