पत्र-पत्रिकाओं से…

| Published on:

करवट बदलती राजनीति

र्वोत्तर में बीजेपी का एक बड़ी ताकत के रूप में उभरना एक बड़े राजनीतिक बदलाव का संकेत है। इसका न सिर्फ पूर्वोत्तर बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा असर पड़ेगा। बीजेपी ने त्रिपुरा में लेफ्ट का मजबूत किला ढहा दिया और नगालैंड में शानदार प्रदर्शन किया। हाल तक इसकी कल्पना भी असंभव थी। यह बात सही है कि नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों का अपना कोई मजबूत आर्थिक ढांचा नहीं है, इसलिए वे केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ मिलकर चलने में विश्वास करते रहे हैं। लेकिन बीजेपी ने उनके साथ एक अलग तरह का रिश्ता बनाया है। मोदी सरकार ने नॉर्थ-ईस्ट पर खासतौर से फोकस किया। खुद प्रधानमंत्री ने वहां की कई यात्राएं कीं। केंद्रीय मंत्रियों का आना-जाना लगातार लगा रहा। वहां के लोकप्रिय नेता किरन रिजिजू को केंद्रीय मंत्रिमंडल में अहम विभाग सौंपा गया। पूर्वोत्तर में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए कई बड़ी परियोजनाएं शुरू की गईं, जिनसे वहां की जड़ अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती है। इस तरह बीजेपी ने उन राज्यों के अलगाव को काफी कम किया और वहां के लोगों का विश्वास जीता। नॉर्थ-ईस्ट को लेकर केंद्र सरकार की सक्रियता के कारण ही इस बार तीन राज्यों के चुनाव मीडिया में छाए रहे।
—(नवभारत टाइम्स, मार्च 5,2018)

नतीजों के निहितार्थ

न राज्यों के चुनाव नतीजे पूर्वोत्तर में भाजपा के जबर्दस्त उभार को रेखांकित करते हैं। दूसरी तरफ, ये चुनाव कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काफी निराशाजनक साबित हुए हैं। त्रिपुरा में माकपा का किला ढह गया, जहां वह ढाई दशक से राज कर रही थी। राज्य की साठ सदस्यीय विधानसभा में भाजपा और आइपीएफटी यानी इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के गठबंधन को तैंतालीस सीटें हासिल हुई। गठबंधन में भाजपा का हिस्सा काफी बड़ा है। त्रिपुरा में भाजपा की ऐतिहासिक सफलता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछली बार उसे लगभग डेढ़ फीसद वोट ही मिले थे, वहीं इस बार अपनी लड़ी गई इक्वायन सीटों पर उसने तैंतालीस फीसद से अधिक वोट हासिल किए। जबकि माकपा को साढ़े बयालीस फीसद वोट आए। पर ज्यादा अंतर सीटों का है। इन तीन राज्यों में लोकसभा की कुल मिलाकर केवल पांच सीटें हैं, लेकिन इन नतीजों का संदेश बड़ा है, क्योंकि पूर्वोत्तर भाजपा के लिए परंपरागत पैठ वाला क्षेत्र नहीं था। केंद्र की सत्ता में आने के बाद भाजपा ने पूर्वोत्तर में बहुत तेजी से पैर पसारे हैं। इस तरह ये चुनाव परिणाम भाजपा के भौगोलिक विस्तार की भी पुष्टि करते हैं।
—(जनसत्ता, मार्च 6,2018)

भाजपा के विजयी रथ ने पूर्वोत्तर को राष्ट्रीय राजनीति की मुख्यधारा में लाने का काम किया

पुरा, नगालैैंड और मेघालय के चुनाव नतीजों के साथ केवल भाजपा का विजय रथ और तेजी के साथ आगे बढ़ता हुआ ही नहीं दिख रहा है, बल्कि पूर्वोत्तर राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में भी आता नजर आ रहा है। इसके लिए एक बड़ी हद तक श्रेय भाजपा को ही जाता है। उसने राजनीतिक तौर पर अलग-थलग से पूर्वोत्तर को राष्ट्रीय राजनीति की मुख्यधारा में लाने का काम किया। यह पूर्वोत्तर के राज्यों में विशेष ध्यान देने की उसकी रणनीति का भी परिणाम है। उसने इस रणनीति पर 2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के साथ ही अमल शुरू कर दिया था। ऐसी चुनावी सफलता के दूसरे उदाहरण मिलना मुश्किल हैैं। जहां त्रिपुरा में भाजपा की सफलता अकल्पनीय है वहीं वाम दलों और कांग्रेस की पराजय एक ऐसा आघात है जिसके असर को अन्य विपक्षी दल भी महसूस करेंगे। नि:संदेह भाजपा ने त्रिपुरा और नगालैैंड फतह करके आगामी विधानसभा चुनावों के साथ-साथ आम चुनावों के लिए भी वह जरूरी ऊर्जा हासिल कर ली है जो विपक्षी दलों के लिए चुनौती बनेगी, लेकिन अब जब भाजपा का विजय रथ और आगे बढ़ चला है तब उसे लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती पूरी करने पर और ध्यान देना चाहिए।
—(दैनिक जागरण , मार्च 4,2018)