देश के आर्थिक विकास को मिला वैश्विक समर्थन

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हर ओर से भारत के लिए अच्छे समाचार प्राप्त हो रहे हैं। लगभग चौदह वर्षों के लंबे अंतराल के बाद विश्व की प्रतिष्ठित रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की स्वायत्त क्रेडिट रेटिंग में सुधार करते हुए इसे ‘सकारात्मक’ से ‘स्थिर’ की श्रेणी में ला खड़ा किया है। यह अब तक की सबसे अच्छी रेटिंग है तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शी नेतृत्व, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में जबरदस्त बदलाव हुआ है, उसकी परिचायक है। इसी प्रकार ओईसीडी की गैलप वर्ल्ड पॉल सर्वे के आधार पर दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी दुनिया की तीसरी सबसे विश्वसनीय सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। इस सर्वे के अनुसार हर चार में से तीन व्यक्ति को प्रधानमंत्री के नेतृत्व पर भरोसा है। प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे के अनुसार प्रधानमंत्री एवं इनकी नीतियों तथा सरकार को जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त है। हाल ही में ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की रिपोर्ट में भारत का 130वें से 100वें स्थान पर छलांग लगाना भाजपानीत सरकार की नीतियों की सफलता को दर्शाता है। साथ ही ‘वर्ल्ड इकॉनोमिक रिपोर्ट की स्पर्धात्मकता सूची में 137 देशों में भारत का 40वां स्थान रहा जो अब तक के 71वें स्थान से काफी आगे है। सरकार की आर्थिक नीतियों विशेषकर नोटबंदी और जीएसटी का वैश्विक वित्तीय संस्था स्टानले मॉरगन, विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यांग किम तथा आईएमएफ की प्रमुख क्रिस्टिन लेगार्दे–ने मजबूती से समर्थन किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापक परिवर्तन की प्रधानमंत्री की दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि कालाधन एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनकी लड़ाई का देश–विदेश में जबरदस्त समर्थन मिल रहा है तथा उनकी संकल्पशक्ति की भूरि–भूरि प्रशंसा हो रही है।

अब से ठीक साढ़े तीन वर्ष पूर्व आज की सकारात्मक आर्थिक वातावरण की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। विशेषज्ञों के लिए भी यह अचंभे से कम नहीं कि केवल तीन वर्ष में कोई अर्थव्यवस्था इस प्रकार से पटरी पर आ सकती है और विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ कदम मिलाने को तैयार हो सकती है। कौन सोच सकता था कि जो अर्थव्यवस्था कांग्रेसनीत संप्रग सरकार में ‘पॉलिसी पैरालिसिस’, कुशासन, दिशाहीनता, काला धन, भ्रष्टाचार की चंगुल में फंसा हो, इतनी जल्दी खम ठोकने लगेगी। ऐसा केवल साढ़े तीन वर्ष में ही संभव हो गया, यह पुन: नरेन्द्र मोदी की राजनैतिक दृढ़ता, कड़ी मेहनत एवं दूरदर्शी नेतृत्व का परिचायक है। जिन लोगों ने इन सुधारों का विरोध कर अपने राजनैतिक हित साधने का प्रयास किया, उन्हें यह बात समझनी चाहिए कि नकारात्मक राजनीति के दिन लद चुके हैं। वे ‘परफॉरमेंस की राजनीति’ के युग में रह रहे हैं और केवल रचनात्मक विपक्ष के रूप में ही अपनी भूमिका तलाश सकते हैं। नोटबंदी और जीएसटी पर देश को भ्रमित करने के उनके प्रयासों से न केवल उनका आधार सिमटा है, बल्कि घोटालेबाजों, भ्रष्टाचारियों एवं कालाधन के कारोबारियों को बचाने वाला उनका चेहरा भी जनता के सामने बेनकाब हो चुका है। केन्द्र की भाजपानीत सरकार अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव के लिए कृतसंकल्प है तथा ‘राष्ट्र प्रथम’ के सिद्धांतों पर चलते हुए यह विकास एवं सुशासन के एजेंडे को आगे बढ़ाने को संकल्पबद्ध है।

देश की राजनीति ने वंशवाद, जातिवाद एवं संप्रदायवाद से हटकर ‘परफॉरमेंस की राजनीति का शुभारंभ होते देखा है। कांग्रेस, जो कुप्रचार तथा जाति–संप्रदाय के आधार पर समाज को विभाजित कर सत्ता में लौटने का सपना देख रही है, शायद समझ नहीं पा रही कि वह लोगों का विश्वास खो चुकी है तथा भारतीय राजनीति के हाशिये पर पहुंच गई है। जब तक कांग्रेस इस बात को स्वीकार नहीं करेगी कि भारतीय राजनीति अब वंशवाद, जातिवाद, संप्रदायवाद, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के उसके ब्रांड की राजनीति से बाहर निकल चुकी है, तब तक वह सकारात्मक विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पायेगी। भारत तेजी से बदल रहा है तथा युवाओं की शक्ति एवं आकांक्षाओं तथा दूरदर्शी नेतृत्व के साथ आगे बढ़ रहा है। विकास के लिए जन–जन में आशाएं एवं अपेक्षाएं तथा सुशासन के लिये समर्पण, रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांस्फॉर्म के मंत्र से ‘सबका साथ, सबका विकास’ के आधार पर पूरा करने का प्रयास हो रहा है। एक ओर जहां देश के अंदर राजनीति पर विश्वास को पुनर्स्थापित किया गया है, वहीं पूरे विश्व में भारत पर विश्वास बढ़ा है। इससे एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण हुआ है जो भारत के लिए अत्यंत उत्साहजनक है।
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