‘‘देव, दवे को अभी नहीं बुलाना था’’

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प्रभात झा

अनिल माधव दवे देव के पास चले गए। अभी नहीं जाना था। जाना तो सबको है पर किसी होनहार का असमय जाना अाध्यात्मिक नहीं कहा जा सकता। म.प्र. वे जनसंघ के प्रथम अध्यक्ष बड़े साहब दवे के पौत्र थे। उज्जैन का बड़नगर उनका पारिवारिक गृह नगर रहा है। इन्दौर उनकी शिक्षा-दीक्षा का स्थान रहा। वे छात्र राजनीति में भी अग्रणी रहे। वहीं से वे संघ के प्रचारक भी थे। मृदुभाषी, संयमवाणी और परिणामकारी कार्य उनके जीवन की विशिष्टता थी।
मेरा उनका संपर्क लगभग 35 वर्षों का रहा। मैंने उन्हें संघ के प्रचारक के रूप में जहां इन्दौर में देखा, वहीं वे भोपाल में हमारे विभाग प्रचारक थे। कठोर जीवन जीने के वे आदी थे। नपे-तुले शब्दों में वार्ता उनका नैसर्गिक स्वभाव था। वे नेपथ्य के पथ्य थे। अनेक गुणों के गुणी होने के बावजूद वे अपेक्षारहित भाव से काम करने के आदी थे। वे काम के धुनी थे। ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग करने में विश्वास करते थे। राजनीतिक क्षेत्र में जब वे आये तब उन्हें बहुत करीब से देखा। वे गणितज्ञ भाव से राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करते थे। उन्हें जो भी कार्य दिया गया, वे उस कार्य के चरित्र का अध्ययन करते थे, उसके बाद उस कार्य के चरित्र को अपने चरित्र से मेल-मिलाप कर कार्य को जमीन पर उतारते थे। अध्ययन, स्वाध्याय और विजयी भाव उनके स्वभाव में था। वे परास्त और अस्त की भावना से कोई कार्य नहीं करते थे। वे उदयजीत की भावना से किसी भी कार्य का प्रारंभ करते थे।

विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध, नैतिक साहस से युक्त और समय के साथ समयबद्ध रहकर कार्य के अनुरूप दवे जी व्यक्तियों को जुटाते थे। टोली बनाकर कार्य करना उनका स्वभाव था। वे समाज के हर क्षेत्र में व्याप्त प्रदूषण को दूर करने का प्रयत्न करते थे। समाज में व्याप्त प्रदूषण से ही उनका स्वभाव और प्रकृति पर्यावरण की ओर बढ़ा। वे प्रकृति का संरक्षण भारतीय संस्कृति की पद्धति से जिनका वेद-पुराण और शास्त्रों में वर्णन है, से करने में विश्वास रखते थे। उनकी मूल मान्यता थी कि भारत की समस्याओं का निदान भारतीय पद्धति से होगा न कि पाश्चात्य पद्धति से। उनकी प्रकृति का अंदाजा इसी बात से लगता है कि वे भोपाल में जहां रहते थे उसका नाम ही ’नदी का घर’ रखा था। नदियों के संवर्धन और संरक्षण को उन्होंने अपने जीवन के कार्य की प्राथमिकता में रखा था।

बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि अनिल माधव दवे जी हवाई-जहाज के पायलट थे। उन्होंने हवाई जहाज उड़ाया भी, लेकिन समाज की पीड़ा और दयनीय स्थिति ने उन्हें इस बात पर मजबूर किया कि जहाज उड़ाने से अच्छा समाज के पीड़ितों के लिए जमीन पर रह कर काम किया जाये। वे संघ से जब राजनीति में आए तो उनका पाला तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से पड़ा, जो लगातार 10 वर्षों से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्हें राजनीतिक तौर पर परास्त करना कठिन था। लेकिन उमा भारती जी के नाम को आगे कर राजनीतिक युद्ध की सारी तैयारियां एक छोटे से बंगले में बैठकर दवे जी ने बनाई और 2004 में मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। तब से लेकर अब तक जितने चुनाव हुए वे हर चुनाव में मुनष्य के शरीर में जिस प्रकार हड्डी की भूमिका होती है, उसका कार्य उन्होंने किया। वे अक्सर कहा करते थे कि किसी भी युद्ध को जीतने की आधी संभावना तब बन जाती है जब अंतिम दिन तक की कार्ययोजना बन जाती है।

दवे जी बहुगुणी थे। उनको लेखक के रूप में भी स्वीकार्यता मिली। उनके जीवन पर छत्रपति शिवाजी का प्रभाव था। उन्होंने उन पर एक पुस्तक शिवाजी व सूरज लिखी। दूसरी पुस्तक ‘सोलह संस्कार’ और तीसरी पुस्तक ‘अमरकंटक से अमरकंटक’ लिखी। जब वे न सांसद थे न मंत्री तब भी सामाजिक कार्यों से जुड़े रहना उनकी मूल प्रकृति थी। वे विश्वपटल पर पर्यावरण के अनेक सम्मेलनों में पर्यावरणिवद‌‌ के नाते न केवल भाग लेते थे, पर्यावरणविद् पुरोधा बनकर इस बात को जोर से रखते थे कि प्रकृति संस्कृति की रक्षा भारतीय संस्कृति से ही हो सकती है। उन्होंने बांध्रभान में ही अपने रहने के लिए मां नर्मदा के किनारे आश्रम बनाया। आश्रमी स्वभाव से ही उस आश्रम में रहते थे। उनके जीवन में दो ऐसे अवसर आए जिसने उन्हें न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थ बनाया। भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन और उज्जैन के महाकुंभ में वैचारिक कुंभ के आयोजन में उनकी भूमिका केन्द्र बिन्दु में थी। उनकी इस प्रकृति को देखकर ही प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल के फेर-बदल में उन्हें पर्यावरण मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया।

दवे जी जीवटधारी व्यक्ति थे। उनकी जीवटता का अनोखा उदाहरण समाज के समक्ष रखना जरूरी है जो हम सभी को प्रेरणा देगा। डाॅक्टरों ने कुछ वर्ष पहले उन्हें कहा कि आप हृदय के रोगी हैं और आपका ओपन हार्ट सर्जरी होना है। दवे जी ने किसी को इसकी जानकारी न देते हुए डाॅक्टर से कहा मुझे कहां आपरेशन के लिए जाना है। डाॅक्टरों ने कहा कि मुंबई में कराना है। वे अपने सहयोगी को लेकर मुंबई गए और डाॅक्टर से कहा कि मेरे आॅपरेशन की तिथि तय कीजिए। डाॅक्टर ने पूछा आपके घर वाले कहां हैं तो उन्होंने कहा कि आॅपरेशन मेरा है मैं उपस्थित हूं। डाॅक्टर उन्हें आॅपरेशन थियेटर ले गए और उनकी ओपन हार्ट सर्जरी हुई। जब वे होश में आए तो अपने सहयोगी को कहा कि सबको बताओ कि मुंबई में मेरी हार्ट सर्जरी हो गई। जीवटता का ऐसा अनुपम उदाहरण शायद ही मिल सके।

दवे जी अनोखे थे। सामान्य परिवार के होने के बावजूद असामान्य और असाधारण कार्य करना उनकी विशेषता थी। लगातार उनके साथ रहने और कार्य करने के कारण लगता है कि उन्हें अभी और रहना चाहिए था, पर मनुष्य और विज्ञान यहीं परास्त हो जाता है। हर अस्त का उदय होता है। अनिल माधव दवे अब हमारे बीच नहीं रहे, उनकी देह का अस्त हुआ है। उनकी देह का उदय होगा और वह देह जग को जग-मग जरूर करेगी।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं सांसद हैं)