जीएसटी सिर्फ एक आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन है

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गोपाल कृष्ण अग्रवाल

जीएसटी के सम्बंध में लोगों की प्रारंभिक चिंता और आशंका बहुत हद तक अब समाप्त हो गई है। बची हुई कुछ आशंका कार्यान्वयन संबंधी है। लोगों को चिंता है कि कैसे उन्हें इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा, प्रोफिटिंयरिंग क्लास को लेकर गलतफहमी भी है। आशंका है कि कैसे घटे करों का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जाना है। ये ऐसी चिंताएं हैं जिन्हें सलाह मशविरा के माध्यम से हल करना है। मैं स्वयं भी कई स्थानों पर जागरूकता कार्यक्रमों में जा रहा हूं। जीएसटी संबंधी जानकारी देने के लिए व्यापार संस्थाओं और उद्यमियों के साथ कई क्षेत्रीय बैठकों का आयोजन हो रहा है।

जीएसटी मात्र आर्थिक सुधार नहीं है; अधिक पारदर्शी और कर-अनुपालक समाज के जरिए यह एक सामाजिक सुधार की प्रकिया है। उपभोक्ताओं के लिए इससे उपयोग की वस्तुओं की कीमतों में कमी आएगी। सरकार के लिए इससे अधिक कर-संग्रह होगा। करों के समावेश और जीएसटी (जीएसटीएन) नेटवर्क के जरिए कहीं अधिक पारदर्शी और सरल व्यवस्था का निर्माण होगा।

विमुद्रीकरण के अनुभव से स्पष्ट होता है कि भारत में लोकप्रिय भावना एक पारदर्शी, भ्रष्टाचार मुक्त और खुली अर्थव्यवस्था है। कर अदायगी की पारदर्शी व्यवस्था का विरोध कम होता जा रहा है।

संकल्पनात्मक रूप से किसी को भी जीएसटी से कोई समस्या नहीं है। इससे बहुआयामी करों में कमी आती है, (जिसमें 18 केन्द्रीय और राज्य कर समाहित हो जाते हैं), जिससे उपभोक्ताओं के लिए अप्रत्यक्ष कर कम हो जाते हैं। इससे ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन द्वारा व्यापार करना, रिटर्न और आकलन आसान हो जाता है। यह एकमात्र व्यवस्था है, जिससे हम एक कर, एक मार्केट स्थापित कर सकते हैं। इससे हमे एक ऑब्जेक्टिव, ऑनलाइन, पारदर्शी कर व्यवस्था प्राप्त होती है और हम सरकार अनुपालन पर भी नजर रख सकती हैं।

व्यापारियों के लिए, जिनका टर्न ओवर 20 लाख रुपए प्रतिवर्ष से कम है, वे जीएसटी से बाहर हैं। जिन व्यापारियों और मैन्युफैक्चेरर का टर्न ओवर 20 लाख और 75 लाख के बीच है, उनके पास कम्पोजिट योजना का विकल्प है। उन्हें मात्र एक/दो प्रतिशत जीएसटी देना होगा पर उन्हें इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा। उन्हें प्रत्येक 200 रुपए से कम के ट्रांजेक्शन के लिए अलग से चालान जारी नहीं करना होता है। इससे छोटे और मध्यम उद्यमों को जीएसटी प्रणाली से निजात मिलता है।

जीएसटी में सबसे महत्वपूर्ण है कि सभी विवरणों के साथ प्रारंभिक ट्रांजेक्शन, GST नेटवर्क पर डालना आवश्यक है और बाकी सभी विवरण अपने आप समाहित हो जाएंगे। सरकार एंटी-प्रोफिटियरिंग के जरिए उपभोक्ताओं को घटे कर दरों का लाभ पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं और इसके लिए अलग से अथारिटी है। यह एंटी-प्रोफिटियरिंग क्लास छोटे और मंझले व्यापारियों नहीं लागू किया जाएगा और दो साल में यह समाप्त भी हो जाएगी।
जो लोग इसका विरोध करते हैं, उन्हें इसकी पूरी जानकारी ठीक प्रकार से नहीं है। सोशल मीडिया के जरिए बहुत सी अफवाहें और गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं, मेरा निवेदन है कि वे इन पर ध्यान न दें और केवल विशेषज्ञों की सलाह पर काम करें। सरकार बहुत ही सक्रिय है और जीएसटी पर सतत काम चल रहा है। कोई विसंगति मिलती है, तो उसे ठीक करने पर उच्चतम प्राथमिकता दी जा रही है।

बहुत सी गलतफहमियां है। उदाहरणार्थ, कुछ लोग जीएसटी केवल सेल्स टेक्स से तुलना कर रहे हैं। बहुत से विरोध उन लोगों की तरफ से भी उभर कर आ रहे हैं जो देश को बेहतर कर अनुपालन की दिशा में बढ़ते हुए नहीं देखना चाहते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था के साथ यह समस्या है कि व्यापारिक लेन-देन का बहुत बड़ा हिस्सा कर व्यवस्था से बाहर है। इसी के परिणामस्वरूप देश की 58 प्रतिशत संपत्ति केवल एक प्रतिशत लोगों के हाथों में सिमट गई है। भाजपा पारदर्शी, भ्रष्टाचार-मुक्त व्यवस्था के मार्ग पर चलना चाहती है। जीएसटी इस दिशा में एक बड़ा कदम है। मेरे विचार में बड़ी संख्या में लोग इसका समर्थन कर रहे है।

इसी प्रकार का समर्थन हमें ‘विमुद्रीकरण’ पर भी मिला था। लोगों ने हमारा समर्थन इसलिए किया था, क्योंकि वे जानते थे कि दो प्रकार की ‘लीकेज’ होती है, जिसमें एक कर संग्रह व्यवस्था में है और दूसरी सरकारी सहायता तंत्र में है। इसके कारण एक बड़ा भारी वर्ग गरीबी से उभर नही पा रहा, जबकि दूसरी तरफ भ्रष्टाचारी इससे फल-फूल रहे हैं। हमने सरकारी सहायता व्यवस्था को सुचारू किया है। इसमें आधार व्यवस्था और मोबाइल्स (जेएएम) को जनधन अकाउंट से जोड़कर लाभार्थियों को सीधे लाभ पहुंचाना शुरू हो गया है। अब जीएसटी के माध्यम से यह व्यवस्था और सुदृढ होगी, जब सारा व्यापारिक लेन-देन औपचारिक व्यवस्था के माध्यम से होगा।

हमें विश्वास है कि आम लोग इसका समर्थन करेंगे। हमारे पास ‘माइग्रेशन’ अवधि है जिसमें नई कर व्यवस्था को समझने का पूरा समय है। इससे प्रारम्भिक सभी आशंकाएं समाप्त हो जाएंगी। हम आम लोगों की सभी समस्याओं के प्रति संवेदनशील और सजग हैं। इसी लिए सरकार ने अभी टीडीएस से कर कटौती का कार्यान्वयन रोक दिया है, जिससे जटिलताएं पैदा हो रही थीं। सरकार ने एमआरपी पर भी स्पष्टीकरण दिया है कि पुरानी और नई दोनों कीमत समान पर छापनी होगी, ताकि उपभोक्ताओं को पता चल जाए की जीएसटी का कीमत पर क्या प्रभाव पड़ा है और घटे कर दरों का उसको लाभ मिला है कि नहीं। अब सामान की बुनियादी कीमत बहुत हद तक नियंत्रित भी की जा सकेगी।

(लेखक भाजपा के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)