मोदी सरकार में भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ खिल रही है

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इसी महीने भारत की उदार लेकिन रणनीतिक पहल उस वक्त फिर एक बार नजर आयी, जब भारत ने विनाशकारी भूकंप के बाद तुर्की की सहायता के लिए सबसे पहले अपना हाथ आगे बढ़ाया। हालांकि, यह बात भी किसी से छुपी हुई नहीं है कि दोनों देशों के बीच जम्मू-कश्मीर और सीमा पार आतंकवाद को लेकर अक्सर वैश्विक मंचों पर तीखे आदान-प्रदान और वाद-विवाद होते रहे हैं, जिससे दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं

बैजयंत जय पांडा

मारे प्रधानमंत्री ने 2014 से ही संघर्षों से परे देखने और बड़े हित की रक्षा के लिए उत्तम प्रयास करने की मंशा व्यक्त की है। प्रधानमंत्री की मंशा की झलक कोविड-19 महामारी, श्रीलंका के आर्थिक संकट और अब फिर से एक बार भूकंप प्रभावित तुर्की में दिखाई दी है। हालांकि, भविष्य में भारत और तुर्की के बीच आपसी संबंधों की भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाजी होगी, फिर भी स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भारत की मानवीय पहलों ने मित्रता के दरवाजे खोले हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब 2014 में अपने पहले कार्यकाल के लिए पद और गोपनीयता की शपथ ली, उसके कुछ दिनों बाद ही दिल्ली का दौरा करने आये एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक ने कहा कि क्या वह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को प्राथमिकता नहीं देंगे। यह आशंका उस पीड़ा पर आधारित थी, जो गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री को उस देश के कुछ हलकों के कारण झेलनी पड़ी थी, जिसमें बनावटी तथ्यों के आधार पर कुछ समय के लिए उन्हें आगंतुक वीजा देने तक से इनकार करना भी शामिल था। हालांकि, भारत की न्यायपालिका ने हर स्तर पर इन तथ्यों को गलत साबित कर दिया है। उस राजनयिक की चिंता निराधार साबित हुई और प्रधानमंत्री ने उसी साल सितंबर में अमेरिका का दौरा किया, दोस्त बनाए और लोगों को प्रभावित किया।

प्रधानमंत्री न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय डायस्पोरा के एक कार्यक्रम शामिल हुए। भारत ने इस कार्यक्रम के माध्यम से अपने बढ़ते हुए दबदबे को विश्व मंच पर प्रदर्शित किया, जो दुनिया भर में अपनी तरह का अनोखा कार्यक्रम था।

अब इसी महीने भारत की उदार लेकिन रणनीतिक पहल उस वक्त फिर एक बार नजर आयी, जब भारत ने विनाशकारी भूकंप के बाद तुर्की की सहायता के लिए सबसे पहले अपना हाथ आगे बढ़ाया। हालांकि, यह बात भी किसी से छुपी हुई नहीं है कि दोनों देशों के बीच जम्मू-कश्मीर और सीमा पार आतंकवाद को लेकर अक्सर वैश्विक मंचों पर तीखे आदान-प्रदान और वाद-विवाद होते रहे हैं, जिससे दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं।

छोटी-छोटी बातों और व्यक्तिगत अपमानों को एक तरफ रखकर संघर्षों से परे देखने और बड़े राष्ट्रीय एवं वैश्विक हित में सही दिशा में काम करने की इच्छाशक्ति दुर्लभ है और यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल है। यहां तक कि राजनेता और राजनयिक भी इंसान होते हैं और हमेशा ऊंचे मापदंड़ों को कायम रखने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। इसके लिए एक बड़ा दिल, दृढ़ संकल्प और उच्च सिद्धांत में गहरा विश्वास होना चाहिए। प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण ‘वसुधैव कुटुम्बकम’- दुनिया एक परिवार के भारतीय दर्शन में समाविष्ट है।

पिछले नौ वर्षों में भारत ने संकटग्रस्त देशों की सहायता करने को लेकर अपने पहले के प्रयासों में उल्लेखनीय रूप से सुधार किया है। यह महामारी और उसके बाद के परिवेश में विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गया है। दुनिया ने इस बात को भी विस्मयता के साथ देखा कि भारत ने कैसे भयानक भविष्यवाणियों को खारिज करते हुए, महामारी के दौरान अन्य देशों की तुलना में बेहतर काम किया। भारत ने स्वदेशी टीके विकसित किए और इतिहास का सबसे बड़ा और सबसे तेज टीकाकरण अभियान शुरू किया। करोड़ों लोगों के टीकाकरण कार्यक्रम को चलाने के अलावा हमने 100 से अधिक देशों को कोविड वैक्सीन की करोड़ों खुराक भी उपलब्ध करवायी, जिसने दुनिया को भी चौंका दिया।

आर्थिक रूप से तबाह हो चुके पड़ोसियों को भारत द्वारा प्रदान की जाने वाली पर्याप्त वित्तीय सहायता एक प्रमुख मील का पत्थर साबित हुई। वैश्विक आर्थिक संकट के बीच पर्याप्त मात्रा, मैत्रीपूर्ण आउटरीच और भू-राजनीतिक संदर्भ में यह विशिष्ट हैं। उदाहरण के लिए श्रीलंका का मामले लें, श्रीलंका को भारतीय मदद तब मिली जब देश गंभीर संकट में था और अंतरराष्ट्रीय पुनर्भुगतान को करने में असर्मथ था। यह चीन के बिल्कुल विपरीत था, जिसके व्यापारिक क्रियाकलापों ने एक चमकीले द्वीप को आर्थिक पतन की ओर धकेल दिया था। यह भारत की तेजी से बढ़ती आर्थिक ताकत के कारण संभव हुआ है। यदि भारत के पास इन पहलों का समर्थन करने के साधन नहीं होते तो, केवल नेक इरादों के साथ भी भारत ज्यादा कुछ नहीं कर पाता। भारतीय अर्थव्यवस्था अब बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेजी से बढ़ रही है। यही कारण है कि इसको लेकर दुनिया भर से हमें प्रशंसा एवं सम्मान मिल रहा है और हमारे घनिष्ठ संबंध विकसित हो रहे हैं।

प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हमारी वैश्विक मित्रता और प्रभाव फल-फूल रहा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका उन वैश्विक रिश्तों को बदलने में भी विशेष रही है जो पहले नीरस या यहां तक कि विवादास्पद थे। फिर चाहे तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान के साथ संतुलन स्थापित करना हो या अन्य पश्चिम एशियाई इस्लामी राष्ट्रों के साथ नव विकसित संबंध हो, यह सभी प्रधानमंत्री की पहलों के उदाहरण हैं।

लेकिन यह नया भारत भी है, जो अदालती दोस्ती से इतर, शत्रुतापूर्ण कृत्यों का मजबूती से जवाब देने में सक्षम है। जिस प्रकार दुनिया भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ के दोस्ताना रवैये की सराहना करती है, उसी प्रकार चीनी की आक्रामकता और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के प्रति हमारी सोची-समझी लेकिन त्वरित प्रतिक्रियाओं को भी सम्मान के साथ देखा जा रहा है।

भारत की वैश्विक छवि में बदलाव प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आया है। याद करें कि कैसे देश में मौजूद उनके कुछ विरोधियों ने उनकी विभिन्न शुरुआती पहलों को कमतर करके आंकने का प्रयास किया था, जैसेकि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, भारतीय पुनर्जागरण की आकांक्षा को बढ़ावा देना, एक बार फिर से विश्वगुरु बनना, राष्ट्रों के बीच एक उदाहरण पेश करना या विद्वानों, निवेशकों और पर्यटकों को आकर्षित करना। प्रधानमंत्री की आलोचना करने वाले इस हद तक चले गए कि उन्होंने सशस्त्र बलों और उनके कठोर कदमों को लेकर भी सवाल उठाया। इस विचार का भी मजाक बनाया गया, जिसके तहत अड़ियल पाकिस्तान जो शांति प्रस्ताव को अस्वीकार करता आया है और सीमा पार आतंकवाद को निरंतर जारी रखें हुए है, को अलग-थलग किया जा सकता है। फिर आज यह वही देश है, जो असहाय हो गया है और जिहादी दबाव, लोकतंत्र दमन के बीच खुद को घिरा हुआ पाता है।

हालांकि भविष्य में भारत और तुर्की के बीच आपसी संबंधों की भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाजी होगी, फिर भी स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भारत की मानवीय पहलों ने मित्रता के दरवाजे खोले हैं। भू-राजनीतिक बदलावों से गुजर रही दुनिया में उभरता हुआ भारत आत्मविश्वास के साथ अपनी भूमिका निभा रहा है और इसका व्यापक रूप से स्वागत किया जा रहा है।

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