राष्ट्र एक सामाजिक रचना है, भौतिक रचना नहीं : मोदी

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प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर विशेष

अवधूत सुमंत
अधिवक्ता, वडोदरा

धिवक्ता श्री अवधूत सुमंत 80 के दशक के दौरान वडोदरा में आरएसएस के एक बौद्धिक वर्ग में श्री नरेन्द्र मोदी के साथ अपनी बातचीत को याद करते हैं। इस बैठक की अध्यक्षता तत्कालीन आरएसएस सरसंघचालक श्री के.सी. सुदर्शन जी कर रहे थे और श्री मोदी भी वहां मौजूद थे।

बौद्धिक वर्ग पूर्ण होने के बाद चर्चा के लिए सभी को आमंत्रित किया गया और सभी को सुदर्शन जी से सीधे प्रश्न पूछने की अनुमति दी गई। इस दौरान श्री अवधूत सुमंत ने भी एक प्रश्न किया। उन्होंने पूछा, ‘राष्ट्र राज्य से अलग है। राज्य की अवधारणा बदल सकती है लेकिन राष्ट्र की धारणा अनूठी और अपरिवर्तनीय है। राष्ट्र अदृश्य और शाश्वत है, कृपया उदाहरण सहित समझाएं।’

इस प्रश्न पर श्री के.सी. सुदर्शन जी ने युवा श्री नरेन्द्र मोदी से जवाब देने का अनुरोध किया।

अपने जवाब में श्री नरेन्द्र मोदी ने जोर देकर कहा कि राष्ट्र एक मानव शरीर की तरह है।

श्री मोदी ने आगे एक उदाहरण के साथ अवधारणा को समझाया। उन्होंने श्री अवधूत से पूछा, ‘अगर मैं आपको यहां थप्पड़ मारूं तो आप कैसे प्रतिक्रिया करेंगे?’

श्री अवधूत ने उत्तर दिया, ‘अगर मैं ऐसा करने के लिए पर्याप्त मजबूत हूं तो मैं आपको थप्पड़ मारूंगा। नहीं तो मैं भाग जाऊंगा।’

इसके बाद श्री मोदी ने आगे कहा, मेरे थप्पड़ मारने से आपके गाल में दर्द होता है, जिसकी प्रतिक्रिया आपके पैर या हाथ से मिलती है। श्री मोदी का इससे मतलब यह था कि शरीर के एक हिस्से में जो समस्याएं दिखाई देती हैं, उसे शरीर के दूसरे हिस्सों द्वारा संवेदनशीलता से महसूस किया जाता है। यदि शरीर में एक-दूसरे के बीच एकजुटता का अभाव है, तो चिकित्सा की दृष्टि से इसे पक्षाघात के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसी तरह, यदि किसी नागरिक को असम, जम्मू और कश्मीर में प्रताड़ित किया जाता है या दबाया जाता है और अगर यह दूसरे नागरिक को उसकी पीड़ा का एहसास नहीं कराता है, तो इसका मतलब है कि राष्ट्र की चेतना खतरे में है। राष्ट्र एक सामाजिक रचना है, न कि भौतिक रचना। जैसाकि पेड़ की एक ही जड़ होती है लेकिन उसकी शाखाएं, पत्ते, फूल और फल अलग-अलग होते हैं। एक साथ रहने वाले लोगों को जोड़ना, उन्हें एक विचारधारा से आत्मसात् करना, वह है राष्ट्र।