भारत परंपरागत रूप से दुनिया का सबसे बड़ा जैविक कृषि करने वाला देश

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केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि भारत परंपरागत रूप से दुनिया का सबसे बड़ा जैविक कृषि करने वाला देश है। यहां तक कि मौजूदा भारत के बहुत बड़े भू–भाग में परंपरागत ज्ञान के आधार पर जैविक खेती की जाती है। श्री सिंह ने यह बात 9 नवंबर को इंडिया एक्सपो सेंटर, ग्रेटर नोएडा में जैविक कृषि विश्व कुम्भ 2017 का उद्घाटन करते हुए कही।

श्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि देश में वर्तमान में 22.5 लाख हेक्टेयर जमीन पर जैविक खेती हो रही है जिसमे परंपरागत कृषि विकास योजना से 3,60,400 किसान को लाभ पहुंचा है। इसी तरह पूर्वोत्तर राज्यों के क्षेत्रों में जैविक कृषि के अंतर्गत 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य है। अब तक 45863 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक योग्य क्षेत्र में परिवर्तित किया जा चुका है और 2406 फार्मर इटेंरेस्ट ग्रुप (एफआईजी) का गठन कर लिया गया है, 2500 एफआईजी लक्ष्य के मुकाबले 44064 किसानों को योजना से जोड़ा जा चुका है।

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश में परंपरागत कृषि विकास योजना वर्ष 2015-16 से प्रारम्भ हुई और 28750 एकड़ मे 28750 किसान को लाभ पहुंचा है। किसानों के जैविक उत्पादों के विपणन के लिए राज्य सरकार 5 लाख रुपये प्रति जनपद को देकर बिक्री केंद्र (Outlet) खुलवा रही है।
श्री सिंह ने कहा कि दुनिया के कुछ वैज्ञानिक इसे ‘डिफाल्ट ऑर्गेनिक’ कहते हैं, लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि जो किसान परंपरागत रूप से जैविक खेती कर रहे हैं, यह उनकी मजबूरी नहीं, उनकी पसंद है। बेहद गहरी समझ के साथ वो इस रास्ते पर सदियों से चल रहे हैं। आज, वो रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते तो यह उनकी अज्ञानता नहीं है, बल्कि उन्होंने बहुत सोच-समझकर ऐसा न करने का फैसला किया है। इसलिए उनकी इस खेती की विधि को ‘बाई डिफाल्ट’ नहीं कहा जा सकता।

श्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि भारत सरकार इस बात को स्वीकार करती है कि पिछले कुछ दशकों में खेतों में रासायनिक खाद के अंधाधुंध उपयोग ने यह सवाल पैदा कर दिया है कि इस तरह हम कितने दिन खेती कर सकेंगे? रासायनिक खाद युक्त खेती से पर्यावरण के साथ सामाजिक-आर्थिक और उत्पादन से जुड़े मुद्दे भी हैं जो हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं।

श्री सिंह ने कहा कि अब देश में खाद्य आपूर्ति की कोई समस्या नहीं है, लेकिन देश की बढ़ती जनसंख्या को सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्यान उपलब्ध कराने की महत्वपूर्ण चुनौती का कार्य अभी शेष है। हमारी निर्भरता रासायनिक खेती पर हो गयी है जिसमे हम रासायनिक उर्वरक, कीट-रोग नाशी एवं अन्य रासायन का प्रयोग करके उत्पादन तो बढ़ गया, लेकिन अनियंत्रित उपयोग से असुरक्षित खाद्यान उत्पन्न करने की समस्या पनप गयी है |

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि यदि हम इन रासायनिक आदानों के अंधाधुंध प्रयोग द्वारा पर्यावरण पर होने वाले दुष्प्रभावों का विश्लेषण करे तो पता चलेगा कि इन सारे रासायनिक आदानो का बड़ा भाग मिट्टी,भू-जल,हवा और पौधों में समाविष्ट हो जाता है| यह छिड़काव के समय हवा के साथ दूर तक अन्य पौधों को प्रदूषित कर देते हैं| भूमि में प्रवेश करने वाले ये रसायन भू-जल में मिलकर, पानी के अन्य स्त्रोतों को भी प्रदूषित कर देता है। श्री सिंह ने कहा कि रसायनों के दुष्प्रभाव से विश्व में जलवायु परिवर्तन और प्रकृति के पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न हो गया है और मानवों पर भी गंभीर दुष्प्रभाव देखे गये हैं। धरती मां के स्वास्थ्य, सतत उत्पादन, आमजन को सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्यान के लिए जैविक कृषि आज राष्ट्रीय एवं वैश्विक आवश्यकता है।