हमारा प्रण विकसित भारत

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‘अमृतकाल’ के प्रथम प्रभात में लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने ऐतिहासिक उद्बोधन में वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाने का आह्वान किया है। दूरदर्शी नेतृत्व, प्रेरणादायी संकल्प एवं दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति से भरे अपने उद्बोधन से उन्होंने पूरे राष्ट्र में एक नई ऊर्जा भर दी है। राष्ट्रव्यापी ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ से पहले ही पूरा देश नए उत्साह एवं उमंग से ओत-प्रोत था। ‘हर घर तिरंगा अभियान’ ने जन-जन में स्वतंत्रता आंदोलन की भावना को पुनः जागृत कर दिया तथा करोड़ों लोग देश के लिए अपने दायित्वबोध को पुनः स्मरण कर मां भारती की सेवा में जुटे रहने के लिए कृतसंकल्पित हुए। आजादी के अमृत महोत्सव’ के भव्य आयोजनों के मध्य पूरे राष्ट्र ने विभाजन के उस काले इतिहास को भी 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाया। इस विभीषिका के करोड़ों बलिदानियों एवं विस्थापितों को पूरे देश ने याद किया। 15 अगस्त, 2022 को जब देश के 76वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जब राष्ट्र को संबोधित किया, एक नया भारत जो विकसित एवं आत्मनिर्भर, समृद्ध एवं सशक्त, ऊर्जावान एवं अदम्य तथा प्राचीन परंपराओं के अनुरूप विश्व कल्याण को समर्पित- ऐसे भारत का क्षितिज से उदय होता स्पष्ट दृष्टिगत हो रहा था।

दूरदर्शी नेतृत्व, प्रेरणादायी संकल्प
एवं दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति से
भरे अपने उद्बोधन से प्रधानमंत्री
श्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे राष्ट्र में
एक नई ऊर्जा भर दी है

एक विकसित भारत के निर्माण के लिए अपने प्रेरक उद्बोधन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को ‘पंच प्रण’ के लिए ‘अमृतकाल’ में प्रतिबद्ध होने का आह्वान किया। पहले प्रण में उन्होंने वर्ष 2047, जब देश आजादी का 100वां वर्ष मना रहा होगा, तब तक विकसित भारत के निर्माण का प्रण लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि विकसित देश बनने के लिए दूसरों पर निर्भरता कम कर, औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकलकर स्व की शक्ति एवं बौद्धिक क्षमता को आधार बनाना पड़ेगा। दूसरे प्रण में उन्होंने औपनिवेशिक मानसिकता के हर चिन्ह को दूर कर विकसित भारत बनाने का आह्वान किया। तीसरे प्रण के रूप में उन्होंने भारत की समृद्ध विरासत एवं इसकी मजबूत जड़ों पर गौरव महसूस करने का आह्वान किया। चौथे प्रण में सबको देश की एकता के लिए योगदान करने का आह्वान करते हुए उन्होंने पांचवें प्रण के रूप में हर नागरिक से अपने कर्तव्यों के पालन करने का आह्वान किया। ‘राष्ट्र प्रथम’ का मंत्र देते हुए उन्होंने कहा कि यदि इस मंत्र को ध्यान में रखते हुए हर निर्णय लिए गए, तब देश की एकता स्वतः सुनिश्चित हो जाएगी। साथ ही, उन्होंने अनुशासित जीवन एवं कर्तव्यबोध से युक्त जीवन के महत्व पर भी प्रकाश डाला, जो किसी भी राष्ट्र को शिखर पर ले जा सकने वाले सिद्धांत हैं। एक अत्यंत महत्वपूर्ण आह्वान में महिलाओं के किसी भी प्रकार के अपमान को समाज में समाप्त करने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि बिना अपनी महिलाओं की शक्ति पर भरोसा किए कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता। ‘जवान, जय किसान’ के उद्घोष में अटलजी ने ‘जय विज्ञान’ जोड़ा था। अनुसंधान एवं नवाचार के महत्व पर बल देते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस उद्घोष में ‘जय अनुसंधान’ जोड़कर देश को एक नई दिशा दिखाई है।

‘त्रि-शक्ति’ के रूप में जहां एक ओर ‘एस्पिरेशनल सोसायटी’ की अपेक्षाओं को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने रेखांकित किया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने सामूहिक चेतना के पुनर्जागरण तथा आज जिस प्रकार पूरा विश्व अपनी समस्याओं के समाधान के लिए भारत की ओर देख रहा है, उसे देश की एक बड़ी पूंजी बताया।

प्रधानमंत्रीजी ने भाई-भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक निर्णायक युद्ध का भी आह्वान किया। आज जब भारत अपनी 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पूरी की है, कई ऐसे सपने हैं जिन्हें साकार करना अभी बाकी है। उन्होंने कहा िक राष्ट्र की शक्ति को ‘अमृतकाल’ में सही उपयोग कर विश्व कल्याण के लिए समर्पित एक विकसित भारत के सपने को साकार किया जा सकता है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के साथ ‘सबका प्रयास’ जोड़ते हुए उन्होंने जन-जन से अपनी पूरी शक्ति को अमृतकाल के 25 वर्षों में ‘आत्मनिर्भर एवं विकसित भारत’ को समर्पित करने का आह्वान किया।

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