राजनीति से प्रेरित है याचिका : सुप्रीम कोर्ट

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नहीं होगी SIT जांच

जज लोया की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल को अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि मामले का कोई आधार नहीं है, इसलिए इसमें जांच नहीं होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लोया के साथी जजों के बयान पर विश्वास न करने की कोई वजह नहीं है। यह न्यायपालिका की छवि ख़राब करने की कोशिश है। कोर्ट ने कहा कि मौत प्राकृतिक है और उसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला न्यायपालिका की अवमानना का बनता है, लेकिन वे अवमानना नहीं कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि याचिका राजनीति से प्रेरित लगती है। राजनैतिक और व्यवसायिक लड़ाई कोर्ट मे नहीं होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा ने कहा कि न्यायपालिका में राजनीति घुसाने की कोशिश की गई। पिछले कुछ समय से कुछ लोग जिस प्रकार से न्याय प्रक्रिया का राजनीतिकरण कर रहे हैं आज उसका पर्दाफाश हो गया है। राजनैतिक मकसद से याचिकाएं दायर की गई। कोर्ट ने जज लोया की मौत को स्वभाविक बताया है। कांग्रेस ने राजनीतिक बदले की भावना से काम किया। कांग्रेस का असली चेहरा सामने आ गया है।

दरअसल, सोहराबुद्दीन शेख के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे जज बीएच लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में हुई थी। वे वहां एक शादी में शामिल होने गए थे। उनकी मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना था, लेकिन नवंबर 2017 में अंग्रेजी पत्रिका ‘द कैरेवन’ ने एक ख़बर छापी जिसमें पहली बार जज लोया की मौत की परिस्थितियों पर सवाल उठाया गया। 4 जनवरी 2018 को मुम्बई में वकीलों के एक संगठन ने जज लोया की मौत की परिस्थितियों की जांच के लिए मुंबई हाई कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल की। इस बीच कुछ और याचिका भी डाली गई।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के विशेष जज बीएच लोया की मौत की,एसआईटी जांच कराने से इनकार कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में, 3 जजों की बेंच ने, एसआईटी जांच की मांग की याचिका को खारिज कर दिया है। बेंच ने कहा है कि, ये याचिकाएं राजनीतिक हित साधने और चर्चा बटोरने के लिए दाखिल की गईं लगती हैं। जज लोया सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे। इस मामले में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित कई अन्य पक्षकार थे। बाद में अमित शाह को इस मामले में आरोपमुक्त कर दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं पर बेतरह नाराज हुआ कोर्ट

ऐसा बहुत कम होता है कि, सुप्रीम कोर्ट कोई मामला खारिज करते हुए, याचिकाकर्ता पर इस तरह नाराज हो जैसा कि जज लोया केस में हुआ। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एम. खानविलकर की तीन सदस्यीय पीठ ने कहाः

‘हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि, रिट याचिका में कतई कोई अर्हता (मेरिट) नहीं है। अदालत के लिए, चार न्यायिक अधिकारियों के स्पष्ट और सुसंगत बयान पर शक करने का कोई कारण नहीं है। दस्तावेजी सुबूत प्रमाणित करते हैं कि, जज लोया की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है। अदालत के पास ऐसा मानने के लिए कोई आधार नहीं है कि, मौत की स्थितियों और कारण पर तर्कपूर्ण तरीके से शक किया जाए, जिससे आगे और जांच की जरूरत हो’ याचिकाकर्ता और मध्यवर्तियों के वकीलों ने बार-बार अदालत को बताने की कोशिश की, कि उनका कोई निजी एजेंडा नहीं है, और उन्होंने यह कार्यवाही, न्यायिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए शुरू की है। यह कह कर कि, जज लोया की मौत से जुड़े हालात की, जांच की मांग करने का असली मकसद, न्यायपालिका संस्थान का संरक्षण करना है, सद्भावना का आभास पैदा करने की कोशिश की गई, लेकिन जैसा कि, सुनवाई के दौरान बातें निकल कर आईं, यह साफ हो गया कि, याचिका न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला करने और न्यायिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को घटाने की, एक छिपी हुई कोशिश है। न्यायिक पुनरीक्षण कानून के शासन को, संरक्षित रखने का एक शक्तिशाली हथियार है, लेकिन यहां हमारा सामना फूहड़ आरोपों की बाढ़ से हुआ है। हत्या में साजिशकर्ताओं के साथ, मिले होने का मामूली सबूत भी नहीं होने की दशा में, अदालत निश्चित रूप से, न्यायिक अधिकारियों के बयान पर भरोसा करेगी। जिला अदालतों के जज, उनकी स्वतंत्रता पर, चौतरफा हमले का आसान निशाना होते हैं। यह अदालत अगर उनके साथ नहीं खड़ी होती है, तो अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम समझी जाएगी।’

न्यायपालिका को राजनीतिक लड़ाई का अखाड़ा नहीं बनाया जा सकता: राजनाथ सिंह

केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने न्यायाधीश लोया मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह एक गंभीर संदेश देता है कि न्यायपालिका को राजनीतिक लड़ाई का अखाड़ा नहीं बनाया जा सकता। न्यायालय के फैसले के बाद श्री सिंह ने ट्वीट कर कहा कि इस फैसले का संदेश है कि राजनीतिक मंशा से आरोप लगाकर न्यायपालिका को भ्रमित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने इस फैसले से आगाह भी किया है कि जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय का दुरूपयोग नहीं किया जा सकता और अदालत को राजनीतिक लड़ाई का अखाड़ा नहीं बनाया जा सकता।

केस पब्लिक ‘इंट्रेस्ट’ में नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के ‘इंट्रेस्ट’ में था : रविशंकर प्रसाद

केंद्रीय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह केस पब्लिक इंट्रेस्ट में नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के इंट्रेस्ट में था। इसके जरिए कांग्रेस पार्टी बीजेपी और खासतौर पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की इमेज खराब करना चाहती थी। श्री प्रसाद ने कहा कि अदालत ने कहा है कि राजनीतिक लड़ाइयों को राजनीति के मैदान में ही लड़ें। इसका साफ मतलब है कि इस केस को हमारे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई के तौर पर लड़ा गया। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘मैं राहुल गांधी से आग्रह करूंगा कि वे अदालत के गलियारों के जरिए राजनीतिक लड़ाई न लड़ें।’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रमुख बिंदु :

न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश हो रही है।

जजों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना अवमानना है।

जनहित याचिका का मजाक बनाया गया है।

जज लोया की सामान्य मृत्यु हुई, इसमें कोई शक नहीं।

इस मामले की एसआईटी जांच नहीं कराई जाएगी।

कारोबारी या राजनीतिक झगड़े कोर्ट के बाहर निपटाएं।

पीआईएल की आड़ में कोर्ट का वक्त बर्बाद न करें।

जजों को बदनाम करने की कोशिश की गई।

आपसी मतभेद मिटाने के लिए काेर्ट का सहारा न लें।

जस्टिस लोया के साथ जो जज आखिरी वक्त तक थे, उनके बयान पर शक करने का कोई आधार नहीं है।