कांग्रेस झूठ, फरेब और छलावे की राजनीति से अपनी किस्मत नहीं बदल सकती

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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों झूठ, फरेब और छलावे की राजनीति में कम्युनिस्टों को भी पीछे छोड़ने में लगे हैं। इस कला में महारत हासिल करने के लिए जहां वे आधारहीन आरोपों को लगाने से नहीं चूक रहे, वहीं अपने कुतर्कों की कोई जिम्मेदारी लेने से वे भी कतरा रहे हैं। लगता है कांग्रेस समझ नहीं पा रही कि कम्युनिस्टों को पीछे छोड़ने के चक्कर में उनका ग्राफ हर दिन नीचे गिरता जा रहा है। एक ओर जहां लोगों ने कम्युनिस्टों काे दोहरा चरित्र तथा झूठ एवं घृणा की राजनीति के लिये उन्हें राजनीति से बाहर का रास्ता दिखा दिया है, वहीं दूसरी ओर लगता है यदि राहुल गांधी भी इसी तरह कम्युनिस्टों से पाठ पढ़ते रहे हैं तो कांग्रेस की भी गत यही होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा पर जितने भी निराधार आरोप अब तक राहुल गांधी ने लगाये हैं, देश की जनता ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया है। इसकी संभावना कम ही है कि राहुल गांधी के आरोपों को लोगों द्वारा लगातार ठुकराये जाने पर भी वे इससे कोई सीख ले पायेंगे। यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने नेता के ऐसे आधारहीन आरोपों का कांग्रेस पार्टी के पास समर्थन करने के सिवा कोई रास्ता नहीं है। चुनावों में लगातार हार तथा हाशिये पर चले जाने से कांग्रेस में भारी कुंठा का निर्माण हुआ है, जिसके फलस्वरूप भाजपा के विरुद्ध कांग्रेस नेतृत्व उटपटांग रणनीति बना रहे हैं। कांग्रेस को अब भी समझ लेना चाहिए कि वह केवल ईमानदार आत्ममंथन कर देश सेवा, समर्पण एवं गरीब एवं वंचितों के हित में कार्य कर ही राजनीति में सकारात्मक भूमिका निभा सकती है। सिद्धांतहीन, अवसरवादी एवं सत्ता केंद्रित राजनीति के दलदल में फंसी कांग्रेस झूठ, फरेब एवं छलावे की राजनीति से अपनी किस्मत नहीं बदल सकती। इससे कांग्रेस का देश की राजनीति में दिनोंदिन हाशिए पर जाना तय है।

इस बात को लगभग अब हर कोई समझ चुका है कि जब भी देश में कोई घटना घटती है, तब मीडिया का एक वर्ग कुछ तथाकथित ‘सेकुलर–लिबरल–कम्युनिस्टोंं’ के सुर में सुर मिलाकर क्यों भाजपा को निशाने पर लेती हैं। जब से देश ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भारी जनादेश दिया है तथा भाजपा की सरकार केन्द्र में बनी है, यह वर्ग आकुल–व्याकुल हो रहा है। लोग अब तक ‘अवार्ड वापसी’ और ‘असहिष्णुता’ के ईद–गिर्द बुनी उस भ्रामक प्रचार को नहीं भूल पाये हैं, जिसका अब कोई नामलेवा नहीं बचा है। बिना किसी पुख्ता तथ्य के आधार पर भाजपा को घेरने की इस वर्ग की कोशिश कई बार औंधे मुंह गिर चुकी है और इनकी विश्वसनीयता समाप्त हो चुकी है। साथ ही यह भी चिंताजनक है कि भारतीय राजनीति में बिना किसी प्रमाण के आरोप गढ़ने का चलन तेज हो गया है।

कर्नाटक में गौरी लंकेश की दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से की गई हत्या उनके वैचारिक सहयोगियों के लिए भाजपा/संघ के विरुद्ध प्रोपगंडा करने का एक राजनैतिक अवसर बन गया। जहां कर्नाटक सरकार के विरुद्ध कोई आरोप नहीं लगाये गये, वहीं इस हत्या को राजनैतिक तौर पर भुनाने की भरपूर कोशिश हुई। आधारहीन एवं झूठे आरोपों पर राजनैतिक गोटियां खेलने वाले इस वर्ग के मंसूबे अनेक बार जनता ने ध्वस्त किये हैं तथा इनके चेहरे अब पूरी तरह से बेनकाब हो चुके हैं। फलस्वरूप आज न केवल ये राजनीति से दरकिनार कर दिये गये हैं, बल्कि बार–बार मुंह की खाकर अब हाशिए पर अपना भविष्य तलाश रहे हैं।

आज जब भारत तेजी से सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहा है, झूठ एवं छलावे की राजनीति बार–बार पराजित हो रही है। आत्मविश्वास से भरे भारत को दुनिया ने हाल ही में संपन्न ब्रिक्स सम्मेलन में देखा, जहां आतंकवाद के विरुद्ध भारत के पक्ष पर सदस्य देशों ने अपनी मुहर लगाई तथा पाकिस्तान से संचालित आतंकी गुटों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। डोकलाम विवाद से भी भारत मजबूत होकर निकला है तथा कश्मीर में अलगाववादी निरंतर अलग–थलग पड़ते जा रहे हैं। सरकार जीएसटी जैसे बड़े आर्थिक सुधारों को सफलतापूर्वक क्रियान्वित कर भारत को 2022 के ‘न्यू इंडिया’ की ओर ले जाने को कृतसंकल्पित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा को मिल रहे अपार जनसमर्थन से कांग्रेस और इसके सहयोगियों के हाथ–पांव फूल रहे हैं। जहां कांग्रेस का अब भी झूठ–छलावे और प्रोपगंडा की राजनीति पर अटूट विश्वास है, वहीं इसके कम्युनिस्टों के साथ तालमेल इसके लिये राजनैतिक रूप से आत्मघाती आत्महत्या जैसा कदम साबित हो रहा है। जब तक कांग्रेस इस सच्चाई को समझेगी नहीं, इसे अपने अवश्यंभावी पतन से कोई नहीं बचा सकता।

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