प्रधानमंत्री ने 2028 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन की मेजबानी करने का किया प्रस्ताव

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सीओपी28, दुबई (यूएई)

लवायु से जुड़े अपने वादों को पूरा करने की राह पर आगे बढ़ने वाले दुनिया के कुछ देशों में भारत के भी होने को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2028 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन की मेजबानी करने का एक दिसंबर को प्रस्ताव किया। साथ ही, ‘ग्रीन क्रेडिट इनिशिएटिव’ की शुरुआत की, जो लोगों की भागीदारी के माध्यम से ‘कार्बन सिंक’ तैयार करने के प्रति लक्षित है।

श्री मोदी ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) स्थित दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी28) के दूसरे दिन कई उच्च स्तरीय कार्यक्रमों में भाग लेते हुए कहा कि विकसित देशों को 2050 से पहले अपने कार्बन उत्सर्जन में पूरी तरह से कमी लानी चाहिए और सभी विकासशील देशों को वैश्विक कार्बन बजट में उनका उचित हिस्सा देना चाहिए।

उन्होंने विभिन्न देशों से सीओपी28 में विकासशील और गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए वित्तपोषण पर ठोस कदम उठाने का भी आग्रह किया।

‘ग्रीन क्रेडिट इनिशिएटिव’

संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी28) के दौरान राष्ट्राध्यक्षों और सरकारों के प्रमुखों के उच्च स्तरीय सत्र को संबोधित करते हुए श्री मोदी ने पृथ्वी अनुकूल सक्रिय और सकारात्मक पहल का आह्वान करते हुए कहा कि ‘ग्रीन क्रेडिट इनिशिएटिव’ कार्बन क्रेडिट से जुड़ी व्यावसायिक मानसिकता से परे है।
उन्होंने कहा, “यह लोगों की भागीदारी के माध्यम से ‘कार्बन सिंक’ तैयार करने पर केंद्रित है और मैं आप सभी को इस पहल में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया के पास पिछली सदी की गलतियों को सुधारने के लिए ज्यादा समय नहीं है।

प्रधानमंत्री ने पौधरोपण और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विचारों, ज्ञान और अनुभवों को एकत्र करने के लिए एक वैश्विक पोर्टल शुरू करने की भी घोषणा की। इस मंच का उद्देश्य वैश्विक नीतियों, पंरपराओं और ग्रीन क्रेडिट की मांग को प्रभावित करना है।

उल्लेखनीय है कि भारत ने 2002 में नयी दिल्ली में सीओपी8 की मेजबानी की, जहां देशों ने दिल्ली मंत्रिस्तरीय घोषणापत्र को अपनाया, जिसमें विकसित देशों द्वारा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के प्रयासों का आह्वान किया गया।

प्रधानमंत्री ने सीओपी28 में ‘ट्रांसफॉर्मिंग क्लाइमेट फाइनेंस’ पर एक सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत ‘न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल’ (एनसीक्यूजी) पर ठोस और वास्तविक प्रगति की उम्मीद करता है, जो 2025 के बाद का एक नया वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य है।

उन्होंने कहा, “विकसित देशों को 2050 से पहले ही कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को पूरी तरह कम करना चाहिए।”

विकसित देशों ने 2009 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के वास्ते विकासशील देशों की सहायता के लिए 2020 तक प्रतिवर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने का वादा किया था। वर्ष 2025 तक इस उद्देश्य के लिए समय-सीमा के विस्तार के बावजूद इन देशों ने इस प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किया है।

सीओपी28 का लक्ष्य 100 अरब अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को पूरा करते हुए 2025 के बाद के नए वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य के लिए आधार तैयार करना है। इन देशों का लक्ष्य 2024 में सीओपी29 तक इस नए लक्ष्य को अंतिम रूप देना है।

श्री मोदी ने कहा कि हरित जलवायु कोष और अनुकूलन कोष (एडॉप्टेशन फंड) में पैसे की कमी नहीं होनी चाहिए और इनकी तुरंत पूर्ति की जाए। उन्होंने कहा कि बहुपक्षीय विकास बैंकों को न केवल विकास के लिए, बल्कि जलवायु कार्रवाई के लिए भी किफायती वित्त उपलब्ध कराना चाहिए।

उन्होंने कहा, “पिछली सदी में मानवता के एक छोटे वर्ग ने प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया। हालांकि, पूरी मानवता को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है, खासकर ‘ग्लोबल साउथ’ में रहने वाले लोगों को।” प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और ‘ग्लोबल साउथ’ के अन्य देशों ने जलवायु संकट में बहुत कम योगदान दिया है, लेकिन ये सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।