ये कश्मीर के विस्थापितों को अधिकार और प्रतिनिधित्व देने का बिल है : अमित शाह

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     जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 लोक सभा में पारित

     केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने छह दिसंबर को लोक सभा में जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 पर चर्चा का जवाब दिया। चर्चा के बाद लोक सभा ने जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 को ध्वनि मत से पारित कर दिया

      लोक सभा में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि कुल 29 वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए, लेकिन बिल के उद्देश्यों के साथ सभी ने सहमति जताई। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लाए गए सैकड़ों प्रगतिशील परिवर्तनों की कड़ी में ये विधेयक एक और मोती जोड़ने का काम करेंगे। श्री शाह ने कहा कि 70 सालों से जिन लोगों के साथ अन्याय हुआ, जो अपमानित हुए और जिनकी अनदेखी हुई, ये विधेयक उन्हें अधिकार और न्याय दिलाने वाले हैं। जो लोग इन्हें वोट बैंक के रूप में उपयोग कर, अच्छे भाषण देकर राजनीति में वोट हासिल करने का ज़रिया समझते हैं वे इसके नाम के बारे में नहीं समझ सकते। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एक ऐसे नेता हैं जो स्वयं गरीब घर में जन्म लेकर आज देश के प्रधानमंत्री बने हैं औऱ वे पिछड़ों औऱ गरीबों का दर्द जानते हैं। जब ऐसे लोगों को आगे बढ़ाने की बात होती है, तब मदद से ज्यादा सम्मान के मायने होते हैं।

• जम्मू-कश्मीर के इतिहास में पहली बार 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं और अनुसूचित जाति के लिए भी सीटों का आरक्षण किया गया है
• पहले जम्मू में 37 सीटें थीं जो अब 43 हो गई हैं, कश्मीर में पहले 46 सीटें थीं वो अब 47 हो गई हैं
• पाक-अधिकृत कश्मीर की 24 सीटें रिज़र्व रखी गई हैं
• पहले जम्मू और कश्मीर विधानसभा में 107 सीटें थीं, अब 114 सीटें हो गई हैं
• पहले 2 नामित सदस्य होते थे, अब 5 होंगे

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि जम्मू और कश्मीर में 1980 के दशक के बाद आतंकवाद का दौर आया और जो लोग पीढ़ियों से वहां रहते थे, वे समूल वहां से विस्थापित हो गए लेकिन किसी ने उनकी परवाह नहीं की। श्री शाह ने कहा कि विस्थापितों को अपने ही देश के अन्य हिस्सों में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा और वर्तमान आंकड़ों के अनुसार लगभग 46,631 परिवारों के 1,57,967 लोग अपने ही देश में विस्थापित हो गए। उन्होंने कहा कि ये विधेयक उन्हें अधिकार औऱ प्रतिनिधित्व देने वाला बिल है।
श्री शाह ने कहा कि 1947 में 31,779 परिवार पाक-अधिकृत कश्मीर से जम्मू और कश्मीर में विस्थापित हुए और इनमें से 26,319 परिवार जम्मू और कश्मीर में और 5,460 परिवार देशभर के अन्य हिस्सों में रहने लगे। उन्होंने कहा कि 1965 और 1971 में हुए युद्धों के बाद 10,065 परिवार विस्थापित हुए और कुल मिलाकर 41,844 परिवार विस्थापित हुए।

उन्होंने कहा कि 5-6 अगस्त, 2019 को प्रधानमंत्री मोदी ने इन विस्थापितों की दशकों से ना सुनाई देने वाली आवाज़ को सुना और इन्हें अधिकार दिए। श्री शाह ने कहा कि न्यायिक डिलिमिटेशन 5 और 6 अगस्त, 2019 को पारित बिल का ही हिस्सा था। उन्होंने कहा कि डिलिमिटेशन कमीशन, डिलिमिटेशन और डिमार्केटेड असेंबली लोकतंत्र का मूल और जनप्रतिनिधि को चुनने की इकाई तय करने की प्रक्रिया है। अगर डिलिमिटेशन की प्रक्रिया ही पवित्र नहीं है, तो लोकतंत्र कभी पवित्र नहीं रह सकता। इसीलिए इस बिल में प्रावधान किया गया है कि न्यायिक डिलिमिटेशन फिर से किया जाएगा। श्री शाह ने कहा कि विस्थापितों के सभी समूहों ने डिलिमिटेशन कमीशन से कहा कि उनके प्रतिनिधित्व के बारे में संज्ञान लिया जाए और ये हर्ष का विषय है कि कमीशन ने प्रावधान किया है कि 2 सीटें कश्मीरी विस्थापितों और 1 सीट पाक-अधिकृत कश्मीर से विस्थापित लोगों के लिए नामांकित की जाए।