प्रगति की समीक्षा और चर्चा

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विनय सहस्त्रबुद्धे
धीरज नय्यर

अप्रत्याशित और रिकॉर्ड तोड़ बारिश से उत्तर भारत में रबी की फसल के बर्बाद होने के तुरंत बाद 25 मार्च, 2015 को पहला प्रगति सम्मेलन आयोजित किया गया था। प्रभावित किसानों के लिए राहत सुनिश्चित करना स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली प्राथमिकता थी और उस सम्मेलन में भी इस पर चर्चा हुई। उन्होंने सार्वजनिक शिकायतों के दो सेट भी लिए, जिनमें (क) निजी क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा कर्मचारी भविष्य निधि का भुगतान और (ख) आयकर रिफंड से संबंधित करीब 20 लोग शामिल थे। शिकायतों का तत्काल निवारण किया गया (विशेष रूप से यह पाया गया कि प्रगति के माध्यम से हस्तक्षेप प्रणालीगत सुधारों की दिशा में काफी महत्वपूर्ण है, ताकि भविष्य में ऐसी शिकायतें न हों)।

राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी से एक प्रोजेक्ट को स्वीकृति और नवी मुंबई हवाईअड्डे के लिए क्रमशः उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र द्वारा उठाए गए मुद्दों को भी सुना गया था। कुल मिलाकर केंद्र सरकार की छः परियोजनाओं, जिनमें एक दर्जन से अधिक मंत्रालय और 13 राज्य शामिल थे और जो विभिन्न कार्यवाही या अनुमतियों में देरी के कारण लटकी हुई थीं, को संबोधित किया गया था। कुछ समस्याओं को तो बैठक के दौरान ही हल कर दिया गया था। प्रधानमंत्री ने स्कूल शौचालय कार्यक्रम और स्वच्छ भारत अभियान में बाधाओं के बारे में भी चर्चा की और तदानुसार निर्देश जारी किए। जब तक मामला पूर्ण रूप से हल नहीं हो जाता तब तक उसका फॉलोअप सुनिश्चित करने के लिए इन निर्देशों को प्रगति प्रणाली में भी रखा गया है।

जून 2017 तक, प्रगति की 19 बैठकें हो चुकी थीं और विभिन्न बाधाओं के कारण वर्षों से लंबित पड़ीं 28,31,000 करोड़ की 167 केंद्रीय और राज्य सरकार की परियोजनाओं का मूल्यांकन किया गया और उनमें तीव्रता लाई गई। उनमें से ज्यादातर महत्वपूर्ण बुनियादी परियोजनाएं रेलवे, राष्ट्रीय राजमार्ग, बिजली, कोयला और नागरिक उड्डयन से सम्बंधित थीं। इसके अलावा, 16 मंत्रालयों/विभागों के 38 प्रमुख कार्यक्रमों और शिकायतों की समीक्षा की गई। 22 अप्रैल, 2015 को हुई प्रगति की दूसरी बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय हाईवे को लेकर म्यामांर और थाईलैंड के भारतीय राजदूतों के साथ चर्चा की। उन्होंने बताया कि उत्तर-पूर्वी राज्यों का समग्र विकास, कनेक्टिविटी में सुधार के लिए बुनियादी परियोजनाओं में तेजी लाने पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में उन्होंने असम और पश्चिम बंगाल में रेलवे के उपक्रमों पर भी चर्चा की। बाद की एक बैठक में वह भारत की एक्ट ईस्ट नीति के मुख्य स्तंभों में से एक म्यांमार में रीह-टेडिम सड़क परियोजना का वर्णन करेंगे और इसे समय पर पूरा करने का आग्रह करेंगे।

प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि प्रगति के तहत बातचीत विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच उस बाधा को दूर करने के लिए थी, जो निर्णय लेने में आड़े आती थी और इस योजना के पीछे सरकारी प्रक्रियाओं को गति देने के तरीकों को खोजने का विचार सबसे अहम था। उदाहरण के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि आदिवासी बस्तियों की पहचान में तेजी लाने के लिए उपग्रह प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि आदिवासियों को जंगल अधिकार अधिनियम 2006 के तहत जमीन का अधिकार मिल सके। दूसरी प्रगति बैठक में भी सार्वजनिक शिकायतों पर चर्चा की गई जो एलपीजी वितरण और बीएसएनएल सेवाओं से संबंधित थीं। दोनों विभागों को चेतावनी दी गई और एक ऐसा सिस्टम स्थापित करने के लिए कहा गया कि भविष्य में ऐसी समस्याएं पैदा न हों। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय को भी कुछ जन अनुकूल प्रयासों के लिए सराहना भी मिली।

27 मई को हुई अगली बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रगति निर्णय लेने में तेजी लाने के लिए कार्य कर रहा है और समस्या सुलझाने व तीव्र कार्यान्वयन के लिए प्रेरित कर रहा है। हालांकि, पूर्व सैनिकों के लिए पेंशन और रिटायरमेंट के लाभों में होने वाली देरी के मामले में उदासीन माहौल देखकर वह बहुत चकित हुए। प्रत्येक प्रगति बैठक में बुनियादी विकास पर प्रमुखता से चर्चा की गई। भिलाई इस्पात संयंत्र के आधुनिकीकरण और विस्तार में देरी उन विशिष्ट मुद्दों में से एक था जिसने प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने इस्पात और भारी उद्योग मंत्रालय को इसे सुलझाने के लिए कहा। चौथी बैठक में प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों को परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए एक साथ मिलकर काम करने के लिए बधाई दी। हालांकि, लंबे समय से चले आ रहे मुकदमों से होने वाली समस्याओं से वे निराश हुए और सुझाव दिया कि अदालत में मामलों के दौरान इन मुकदमों के नतीजों पर प्रकाश डालने से मदद मिल सकती है।

अपने अनुभवों के आधार पर उनका दृष्टिकोण विशिष्ट रूप से व्यावहारिक रहा। ओडिशा में सड़क और रेल संपर्कों पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि ओडिशा (नबाकलेबरा), मध्य प्रदेश (सिंहस्थ) और महाराष्ट्र (कुंभ) में प्रमुख त्योहारों की शुरुआत हुई, इसलिए परिवहन, स्वच्छता और सुरक्षा के लिए अनुकरणीय व्यवस्थाओं पर काम किया जाना चाहिए। विशेष रूप से क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (सीसीटीएनएस) ने प्रधानमंत्री का ध्यान अपनी ओर खींचा। उन्हें असम, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में तीन पुलिस स्टेशनों से लाइव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इसका एक डेमो भी दिया गया, जिसके अंत में उन्होंने इसके उन्न्त स्तरीय परिष्कार की मांग की और राज्यों को इस सिस्टम को उच्च प्राथमिकता देने के लिए कहा।

बैठक में विभिन्न जन शिकायतों पर भी ध्यान दिया गया जिनमें रेलवे में भ्रष्टाचार, डाक विभाग में अक्षमता और छात्रवृत्तियों तथा पासपोर्ट के वितरण में देरी प्रमुख हैं। वे जानना चाहते थे कि छात्रों को समय पर उनके फेलोशिप और छात्रवृत्ति का भुगतान क्यों नहीं किया जा रहा था और उन्होंने छात्रों को मिलने वाले लाभों को आधार से जोड़ने की प्रगति के बारे में भी पूछा। पासपोर्ट सेवाओं के संबंध में, आवेदनों के त्वरित प्रसंस्करण के लिए विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय को एक संयुक्त कार्यशाला आयोजित करने के लिए कहा गया ताकि पासपोर्ट मंजूरी में तेजी लाने के तरीकों की जांच की जा सके। प्रधानमंत्री ने कहा कि पॉलिसी के लाभ, मनीऑर्डर, बचत खाता ब्याज और चिट्ठियां सही समय पर पहुंचनी चाहिए और इससे समझौता नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह समाज के सबसे गरीब वर्गों को प्रभावित करता है। यह बताते हुए कि डाक सेवाओं का महत्व बढ़ रहा है, उन्होंने पूछा कि क्या चूक के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को जवाबदेह बनाया गया है और डाक सेवाओं को बढ़ाने के लिए कौन से कदम उठाए गए।

उन्हें ई-कॉमर्स से संबंधित बहुत शिकायतें मिलीं, जैसेकि टिकट और होटल बुकिंग, और कहा कि राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन को अपनी क्षमताओं में वृद्धि करनी होगी ताकि दस दिनों के भीतर उनका समाधान हो सके। इसी तरह, दूरसंचार ग्राहकों ने खराब सेवा गुणवत्ता, कनेक्टिविटी और लैंडलाइन कनेक्शनों के काम न करने की शिकायत की। करदाताओं की शिकायतों के चलते आयकर विभाग भी स्क्रूटिनी के लिए आया था। रेलवे को कहा गया कि वह भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। उन्हें सभी शिकायतों और प्रश्नों के लिए एक टेलीफोन नंबर स्थापित करने का निर्देश भी दिया गया। मजदूरों और ईपीएफ लाभार्थियों की शिकायतों के चलते ईपीएफओ, ईएसआईसी और श्रम आयुक्तों को भी आना पड़ा। प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र में मजदूरों को उनके वैध बकाया प्राप्त करने के लिए संघर्ष न करना पड़े। उन्होंने श्रम मंत्रालय से एक ऐसी प्रणाली शुरू करने के लिए भी कहा जिसमें कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति लाभ को अंतिम रूप देना एक साल पहले ही शुरू हो जाए। असामयिक मृत्यु के मामले में, दावों के प्रसंस्करण के लिए एक समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए और अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

समय के साथ यह स्पष्ट हो गया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पीएमओ के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषयों में शामिल था। उन्होंने सीजीएचएस के तहत आने वाली सेवाओं की गुणवत्ता, संशोधित राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम, शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के प्रयासों और बच्चों के सार्वभौमिक प्रतिरक्षण के लिए मिशन इंद्रधनुष की समीक्षा की। उन्होंने सुझाव दिया कि एनसीसी और नेहरू युवा केन्द्र जैसे युवा संगठनों को टीकाकरण को बढ़ावा देने के प्रयासों में शामिल किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग की शुरुआत की और सभी मुख्य सचिवों और सचिवों को अक्टूबर 2016 की विश्व बैंक की रिपोर्ट का अध्ययन करने और उनके संबंधित विभागों और राज्यों में सुधार के दायरे का विश्लेषण करने के लिए कहा। इस संबंध में हुई प्रगति की साप्ताहिक समीक्षा की जाएगी और नवीनतम रैंकिंग में भारत पहली बार पहली बार शीर्ष 100 में शामिल हुआ और किसी भी देश द्वारा 30 अंकों की दुर्लभ वृद्धि देखने को मिली।

समीक्षा के लिए आने वाली अन्य योजनाओं में – पिछड़े क्षेत्रों, खासकर उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के पूर्ण कम्प्यूटरीकरण, स्वच्छ भारत मिशन के तहत ‘वेस्ट टू वेल्थ’ पहल, देश भर में सौर-पंपों की स्थापना, बाढ़ के लिए तैयारियां, ई-नाम या राष्ट्रीय कृषि बाजार, अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत), प्रधानमंत्री आवास योजना और प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना – आदि शामिल थीं। जारी…

(उपरोक्त सामग्री सद्य: प्रकाशित पुस्तक
‘द इनोवेशन रिपब्लिक’ से साभार प्रस्तुत है)