भाजपा : देशभक्ति एवं जनसेवा के लिए समर्पित राष्ट्रशक्ति

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रामलाल

21 अक्टूबर, 1951 को डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में 11 सदस्यों के साथ जनसंघ की स्थापना हुई। तब से लेकर अब तक पार्टी की यात्रा जनसंघ से जनता पार्टी से भारतीय जनता पार्टी के रूप में चली और बढ़ी है। आज भाजपा भारत की संगठनात्मक व चुनावी राजनीति में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। आज सबसे अधिक सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री, जिला पंचायत अध्यक्ष, महापौर भाजपा के हैं। केन्द्र में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार है तथा श्री अमित शाह की अध्यक्षता में सबसे अधिक सदस्यता भी भाजपा की है।

यहां तक की यात्रा सहज नहीं हुई। अनेक उतार-चढ़ाव आए। पार्टी के दो राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. मुखर्जी व पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का बलिदान हुआ। राष्ट्रीय आंदलनों में अनेक कार्यकर्ता शहीद हुए, घायल हुए, जेल गए। हार-जीत के भी अवसर आए। 1951 से लगातार बढ़त बनाते हुए 1984 में मात्र दो सांसद भी रह गए, फिर भी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं ने हिम्मत नहीं हारी। सबने मिलकर पार्टी को आगे बढ़ाया और वर्तमान स्थिति तक लाया है। विचार पर अडिग रहते हुए पार्टी के विस्तार व कार्यकर्ताओं के विकास की चिंता हुई। 1951 से 1975 तक के कालखण्ड में जितने भी आंदोलन हुए उनमें से अधिकांश जनसंघ ने ही किए। सभी आंदोलन राष्ट्रीय एकता-अखण्डता को अक्षुण्ण रखने, सीमाओं की सुरक्षा व भारतीय मान बिंदुओं की रक्षा के लिए हुए।

जम्मू-कश्मीर में प्रवेश, गोवा मुक्ति, कच्छ का आंदोलन, बेरूवाड़ी आंदोलन व शिमला समझौते के विरुद्ध आंदोलन आदि इसके उदाहरण हैं।

इसमें से पार्टी की राष्ट्रवादी छवि निर्माण हुई। भारत के करोड़ों राष्ट्रवादी मन रखने वालों को लगा कि राजनैतिक दलों में कोई तो है, जो हमारी बात कह रहा है।

जनसंघ ने अपनी राजनीति संगठन बनाने और चुनाव लड़कर सरकार बनाने मात्र के लिए नहीं की। संगठन व सरकार को साध्य नहीं, साधन माना। साध्य रहा लोक कल्याण व समर्थ भारत का निर्माण। ‘सशक्त भाजपा-समर्थ भारत’ यह पार्टी का ध्येय वाक्य ही बन गया।

1975 में आपातकाल लगने के बाद अटलजी, आडवाणीजी सहित कई प्रमुख नेता व हजारों कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए। अनेक कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह करके अपने को गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत किया। कार्यकर्ता व उनके परिवारों को कई प्रकार की यातनाओं से गुजरना पड़ा। कई कार्यकर्ताओं की जेल में ही मृत्यु हो गई। लोकतंत्र की रक्षा की इस लड़ाई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व अन्य विपक्षी दलों ने साथ मिलकर हिम्मत से लड़ा। चुनावों की घोषणा होने पर विभिन्न विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई। बड़ा दल होने के बाद भी लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनसंघ ने जनता पार्टी में अपना विलय स्वीकार किया। तानाशाही को समाप्त कर लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह प्रयत्न सफल हुआ तथा मार्च 1977 में जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत की सरकार बनी। दुर्भाग्य से यह प्रयोग लम्बा नहीं चल पाया। दोहरी सदस्यता के विषय को लेकर जनसंघ के सभी नेता जनता पार्टी से अलग हुए तथा 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में हुई। उन्होंने मुम्बई में घोषणा की ‘‘अंधेरा छटेगा – सूरज निकलेगा – कमल खिलेगा’’।

इसी मध्य राम जन्मभूमि का आंदोलन पूज्य संतों के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ। भारत की राजनीति में से छद्म धर्मनिरपेक्षता के चेहरे को उजागर करने तथा राष्ट्रीय मान बिन्दुओं के प्रति आस्था निर्माण करने के लिए आडवाणीजी ने सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा प्रारम्भ की। इसे प्रचंड जन समर्थन मिला। इस यात्रा से जहां प्रबल जन-जागरण हुआ वहीं राजनीति की दिशा ही बदल दी। उसका परिणाम आगे के चुनावों में हुआ। 1989 से लेकर आज तक (2009 छोड़कर) भाजपा के सांसदों की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई है। 1989 के पश्चात् भाजपा कई प्रदेशों में भी सरकार में आई तथा केन्द्र में भी पुनः पहले 13 दिन, बाद में 13 महीने और फिर पूरे 5 वर्ष के लिए ए.डी.ए. की सरकार बनी।

भाजपा सरकारों ने जहां अनेक जन कल्याणकारी काम किए वहीं राष्ट्रीय गौरव व सम्मान को बढ़ाने के प्रयत्न भी चलते रहे।

डाॅ़ मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में कन्याकुमारी से लेकर लाल चौक (श्रीनगर) तक एकता यात्रा निकालना राष्ट्रभाव के जागरण का अनूठा प्रयास था। पूरा भारत तिरंगा हाथ में लेकर राष्ट्रगौरव के भाव के साथ खड़ा हो गया।

भारत ही नहीं पूरे विश्व में राष्ट्रगौरव का भाव उस समय हिलोरें लेने लगा जब पोखरण में परमाणु परीक्षण हुआ तथा अटल जी अनेक बड़े देशों की आर्थिक पाबंदियों के समक्ष झुके नहीं। किसी भी देश के नागरिकों का अपने देश की सेना व सुरक्षाबलों के प्रति सम्मान हमेशा ही रहना चाहिए। कारगिल युद्ध के पश्चात् शहीद सैनिकों के पार्थिव शरीर जिस सम्मान के साथ सरकार ने उनके घरों तक पहुंचाए, उससे भारतीय सेना के शौर्य-पराक्रम के प्रति पूरा भारत नतमस्तक हो गया।

राजनीति में पारदर्शिता व गुणवत्ता लाने हेतु NDA-1 में अनेक सुधारात्मक उपाय हुए। राज्य सभा चुनाव में खुला मतदान, सरकारों में मंत्रिमंडल की संख्या को 15 प्रतिशत पर रोकना आदि। देश को कई प्रकार से जोड़ने के प्रयास हुए, Air, Rail, Road, Mobile connectivity, सबके बाद भी 2004 में पुनः विजय श्री नहीं मिल सकी। फिर भी 2004 से 2014 तक शांत होकर नहीं बैठे। पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध लम्बी लड़ाई लड़ी। जनहित के अनेक मुद्दों पर स्थानीय इकाई से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक आंदोलन हुए।

इसी मध्य गुजरात सुशासन व विकास की दृष्टि से माॅडल प्रदेश बना तथा गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए श्री नरेन्द्र मोदी की छवि राष्ट्रीय स्तर पर उभरी। पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। उनकी अगुवाई में, सभी ने कड़ा परिश्रम किया। जनता के मन में कांग्रेस की विश्वसनीयता समाप्त हो गई थी। लोगों ने कांग्रेस को घोटाले और भ्रष्टाचार का प्रतीक मान लिया। स्वच्छ व पारदर्शिता के प्रतीक के रूप में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्रदान किया। 26 मई 2014 को 30 वर्ष बाद किसी एक दल की पूर्ण बहुमत की सरकार श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में बनी।

इन चार वर्षों में संगठन का चहुंमुखी विस्तार हुआ। नये-नये आयाम संगठन में जुडे। पं़ दीनदयाल उपाध्याय जी से प्ररेणा लेकर हमारी केन्द्र सरकार व प्रदेश सरकारों ने गरीब कल्याण को केन्द्र में रख कर काम किया।

इन योजनाओं का परिणाम हुआ कि देश की गरीब जनता को लगा कि पहली बार हमारे बारे में कोई सरकार ईमानदारी से सोच रही है। योजनाएं गांव, शहर, कस्बे सहित समाज के सभी वर्गों के लिए बनीं। एक तरफ स्मार्ट सिटी की योजना बनी, तो दूसरी और Soil Health Card के साथ फसल बीमा की चर्चा हुई।

किसानों को लागत मूल्य के 1.5 गुना दाम देने की चर्चा हुई है, तो देश के 10 करोड़ परिवारों को आयुष्मान योजना के अन्तर्गत 5 लाख के वार्षिक स्वास्थ्य बीमा में लाया जा रहा है। किसानों व मजदूरों के हित में इस प्रकार की अनेक योजनाएं चल रहीं हैं। अगले कुछ वर्षों में सभी गांवों में तथा सभी घरों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसी तरह जहां स्वच्छता जन-अभियान बन गया है, वहीं सभी घरों में शौचालय निर्माण का कार्य भी तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। सभी घरों तक गैस चूल्हा पहुंचाने का कार्य तेजी से चल रहा है, जिससे पूरा घर धुंआ मुक्त होकर सभी का स्वास्थ्य रक्षण हो सके। सामान्य व्यक्ति के जीवन में खुशहाली लाने के साथ-साथ एक साथ 100 उपग्रह छोड़ने की उपलब्धि इस सरकार के खाते में है। भारत की जनता को यह भरोसा बन रहा है कि एक पार्टी व उसकी सरकार जहां भ्रष्टाचार से मुक्त होकर सुशासन के साथ विकास के रास्ते पर चल रही है, वहीं राष्ट्र की रक्षा के प्रति संकल्पित होकर दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ाने में भी सफल हो रही है।

राजनैतिक दल 2000 रुपये से अधिक चंदा नकद नहीं ले सकते जैसा निर्णय स्वच्छ राजनीति की ओर एक कदम है। जनता को अच्छे लगें ऐसे नहीं, जनता के लिए अच्छे हों ऐसे कठोर निर्णय भी सरकार ने लिये हैं। नोटबंदी व जी. एस. टी. (एक देश-एक टैक्स) ऐसे ही फैसले हैं जो देश के दीर्घकालीन हित में हैं। राजनैतिक नेतृत्व की स्वीकृति से सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक से देश का मनोबल ऊंचा हुआ है।

इसी का परिणाम है पार्टी भी बढ़ रही है तथा चुनावी राजनीति में भी निरंतर अच्छी सफलता मिल रही है। अभी-अभी त्रिपुरा की जीत तो ऐतिहासिक है जहां शून्य से बढ़ कर 3/4 बहुमत की सरकार बनी है। कई राज्यों में पार्टी को मतदाताओं का 50 प्रतिशत के निकट समर्थन मिलना भी महत्वपूर्ण है। यह विजय अभियान निरंतर चलता रहे यही प्रयास सबका है।

दीनदयाल उपाध्याय जन्मशताब्दी वर्ष में पार्टी के विस्तार की महत्वाकांक्षी योजना बनी। 1 वर्ष व 6 माह हेतु 3730 विस्तारक व 15 दिन हेतु 272958 अल्पकालीन विस्तारक निकले, जिन्होंने 613947 बूथों पर सम्पर्क किया। 15 करोड़ से अधिक पत्रक बंटे तथा 4 करोड़ पुस्तिकाएं वितरित कीं। नीचे तक पार्टी की विचारधारा व भाजपा सरकारों की उपलब्धियों की चर्चा घर-घर तक की गई।

इसके परिणामस्वरूप पार्टी संगठन को बूथ स्तर पर सक्रिय व प्रभावी बनाने के साथ मतदाता सूची के एक-एक पन्ने का प्रमुख बनाने का कार्य भी तेजी से आगे बढ़ा है। बूथ समिति व पन्ना प्रमुख पार्टी की ऐसी आंतरिक शक्ति है जो किसी भी चुनौती का उत्तर बनने की सामर्थ्य रखती है।

पार्टी ने हमेशा देश की राजनीति में राष्ट्र-रक्षा, लोकतंत्र रक्षा, संस्कृति व मानबिंदुओं की रक्षा, राष्ट्र गौरव के साथ सुशासन व विकास का एजेंडा सेट किया है। भाजपा के कारण वशंवाद, जातिवादी व तुष्टीकरण की नीति समाप्ति की ओर चली गई। 38 वर्ष की पार्टी की यात्रा कई कठिन दौर से गुजरी है। अनेक कार्यकर्ताओं का बलिदान हुआ है।

पार्टी के सभी पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षों सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं की पुण्याई व सैकड़ों कार्यकर्ताओं के बलिदान को स्मरण करते हुए सभी सदस्यों के लिए संकल्प लेने का दिन है कि सफलता हमें प्रसन्नता देने वाली तो है, किन्तु हम संतोष मानकर बैठेंगे नहीं।

अधिक ऊर्जा के साथ पार्टी को सर्वदूर पहुंचाकर राष्ट्रभाव का जागरण करेंगे तथा ‘सबका साथ-सबका विकास’ की भावना के साथ जनसेवा व राष्ट्रसेवा के लिए हमेशा अपने को समर्पित रखेंगे।

लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) हैं