प्रगति की समीक्षा और अग्रगामी चर्चा

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विनय सहस्त्रबुद्धे
धीरज नय्यर

ऐसा कभी–कभार होता है कि कोई प्रधानमंत्री परियोजना के कार्यान्वयन और निगरानी पर इतनी बारीकी से नजर रखता है, परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए यह सामान्य सी बात है। दरअसल, भारत में सरकारों का इतिहास अच्छे विचारों, लेकिन गलत कार्यान्वयन से भरा पड़ा है। ऐसी स्थिति इस बार नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परियोजनाओं के समय पर कार्यान्वयन के प्रति गंभीरता से जिम्मेदारी लेते हैं।

15 मार्च 2015 से हर महीने प्रधानमंत्री सरकारी कार्यान्वयन मशीनरी के सम्मेलन करते रहते हैं, जिसमें विभिन्न विभागों के मंत्रालय और विभाग तथा 29 राज्यों और सात केन्द्र–शासित क्षेत्रों के मुख्य सचिव/प्रशासक शामिल रहते हैं। एक या दो घण्टों से भी ज्यादा समय में प्रधानमंत्री सीधे सामाजिक शिकायतों के सम्बन्ध में चर्चा करते हैं, इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की समीक्षा करते हैं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की जांच करते हैं।

प्रगति का समन्वयन मंत्रालयों, केन्द्रीय सरकारी विभागों और राज्य सरकारों के बीच एक पूर्ण नए स्तर पर रहता है। कुल मिलाकर वीडियो कांफ्रेंसिंग, डिजिटल डाटा प्रबंधन और भौगोलिक सूचना व्यवस्था से प्रधानमंत्री कार्यालय केन्द्रीय और राज्य सरकारों के कारनामों को सही समय पर खोज निकालती है, जिससे जमीनी स्थिति के वर्तमान सूचना और नवीनतम विजुअल का पता लगता रहता है। अधिकारीगण एक दूसरे से सूचनाओं का आदान–प्रदान करते हैं और रुकावटों पर चर्चा होती है और इस बात की तैयारी की जाती है कि कैसे इनका समाधान हो सके। प्रधानमंत्री द्वारा सीधा हस्तक्षेप करने से परिणाम सामने आते हैं।

इस व्यवस्था पारदर्शिता और जिम्मेदारी का अहसास होता है और जो सहकारी संघवाद की भावना के अनुकूल होता है। इससे राज्य स्तरीय अधिकारीगण केन्द्रीय सरकार के आमने सामने आते हैं और केन्द्रीय सरकार के सचिवों और प्रधानमंत्री कार्यालय तीनों पक्षों के बीच इसके कार्यान्वयन और डिलीवरी के विषय पर विचार करने में समर्थ होते हैं। इससे जटिल, बहु–आयामी निर्णय लेने की स्थिति से बचा जा सकता है और स्टेकहोल्डरों की एक–दूसरे की प्राथमिकताओं के बीच समाधान किया जा सकता है।

जरा इससे पहले की ‘प्रगति’ बैठकों पर ध्यान दीजिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिजिटल छवि सम्मेलन कक्ष पर प्रभावी रहती है, जहां जम्मू–कश्मीर के वरिष्ठ अधिकारी बांदीपुरा जिले में कृष्णगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना पर विचार करने के लिए जमा हुए थे। मुख्य सचिव ब्रजराज शर्मा और उनकी टीम सूट और जैकेटों में थी, प्रधानमंत्री ‘मोदी कुर्ता’ में थे जबकि अभी भी दिल्ली में लम्बी बांह का कुर्ता पहनने की स्थिति थी।

मुख्य सचिव की अध्यक्षता में दस लोगों का समूह था जो सीधे प्रधानमंत्री के सामने था। दस और भागीदारी भी डिजिटल रूप से उनके साथ भागीदार बने हुए थे। 2015 की बात है और प्रधानमंत्री इस बात के लिए उत्सुक थे कि कृष्णगंगा संयंत्र अविलम्ब शुरू किया जा सके। अभी तक, यह परियोजना की स्थिति खराब रही थी और पाकिस्तान ने ‘हेग’ में अपील की थी, परन्तु जैसे–तैसे भारत ने अपना बन्दोबस्त बनाए रखा।

330 मैगावाट परियोजना की स्थिति का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को बताया था कि 382 हेक्टेयर में से केवल तीन का अधिग्रहण किया जा सकता है, जिससे 185 परिवारों को विस्थापित करना पड़ा है। उनके पुनर्वास की योजना तैयार की गई है, परन्तु दुर्भाग्य से यह असफल रहा है और इसमें संशोधन किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने विद्युत सचिव को जम्मू–कश्मीर के साथ समन्वय करने की सलाह दी, ताकि परियोजना पर शीघ्र काम शुरू हो सके और विस्थापित लोगों को वहां आराम से बसाया जा सके।

कई परियोजनाओं में किशनगंगा भी एक परियोजना थी, जिसकी प्रधानमंत्री ने 30 सितंबर 2015 की छठी बैठक में चर्चा की। देशभर के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री के अपने सामने सीधे इस परियोजनाओं के समक्ष समाधान प्रस्तुत किया।

‘प्रगति’ से पूर्व, केन्द्र और राज्य स्तर के अधिकारी संघर्ष करते रहे जिनमें संचार सम्बन्धी अनेक कमियां थीं और इन कमियों से यह प्रमुख योजनाएं प्रभावित हो रही थीं। इन कमियों के कारण प्रमुख परियोजनाओं को हानि हो रही थी और विलम्ब भी हो रहा था। इन कमियों के कारण योजनाओं की लागत बढ़ रही थी, जिससे अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव बन रहा था। इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं समय न रहते नुकसान उठा रहीं थीं और लागत बढ़ती जा रही थी और लागत बढ़ रही थी, जिससे अन्य अर्थव्यवस्था के अन्य सेक्टरों पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ा।

समन्वय, सूचना और समयोगत संचार की कमी के कारण कुसंस्कृति पैदा हो गई। इस प्रस्ताव से कोई भी विचार स्पष्ट रूप में सामने नहीं आ सका और न ही तेजी से उसका कार्यान्वयन हो सका। इस प्रकार परियोजनाओं का नियमित समीक्षा नहीं हो सकी, जिससे विलम्ब की जिम्मेदारी कभी भी निश्चित नहीं हो पाई।

परियोजना की लगातार समीक्षा और समाधान की तत्काल आवश्यकता थी, ताकि सरकार कार्यक्रमों का विस्तार कर सके। इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए वर्तमान डाटा हेतु वीडियो कांफ्रेंसिंग की व्यापक आवश्यकता थी। एक बार प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा इंटरएक्टिव मानीटरिंग प्लेटफॉर्म की आवश्यकता जताने पर नेशनल इंफोरमेटिक्स सेंटर ने ‘प्रगति’ का डिजाइन तैयार कर लिया। पहला कदम यह सुनिश्चित करना था कि सभी सचिवों और मुख्य सचिवों को वीडियों कांफ्रेंसिंग की सुविधा मिले। यह तय किया गया कि हर महीने चौथे बुधवार को 3.30 बजे इसका आयोजन हो, जिसे ‘प्रगति’ का नाम दिया जाए।

यह प्रक्रिया इस प्रकार से है: वीडियो कॉफ्रेंस से एक सप्ताह पूर्व पीएमओ और राज्य सरकारें अपलोड करें। प्रत्येक सचिव मुख्य सचिव के पास उपयोगकर्ता आईडी और पासवर्ड होता है, जिससे वह अपने विभाग से संबंधित मुद्दे जमा करता है और इन्हें तीन दिन के अंदर कमेंट पोस्ट या अपडेट करना होता है। बैठक से पहले जीएम उनकी प्रविष्टि की समीक्षा करते हैं।

जब प्रधानमंत्री किसी परियोजना की समीक्षा करते हैं, तो सम्बंधित अधिकारी व्यापक डिटेल और नवीनतम स्थिति का व्यापक व्याख्या सामने रखते हैं और पीएमओ कांफ्रेंस चैम्बर में तीन स्क्रीनों में से एक पर उसे चढ़ाते हैं, जहां अधिकारीगण यू–आकार की मेज पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बैठे होते हैं। बैठक में एजेंडा के प्रत्येक मद को दोहराया जाता है।

उदाहरणार्थ, कृष्णगंगा परियोजना की चर्चा करने के बाद, प्रधानमंत्री ने प्रोसेसिंग पेटेंट और ट्रेडमार्क आवेदनों में ‘अनुचित’ विलम्ब की बात की। उन्होंने कहा कि विश्वस्तरीय और अनुकूल स्थिति बैठाने और ओवरहाल करने की आवश्यकता है, जिसमें कई फार्मों की संख्या कम करना आवश्यक है। इन्होंने सत्रह राज्यों में सोलर ऊर्जा कम करने की आवश्यकता पर जोर दिया और अध्यक्षीय अधिकारियों से कहा कि उनके लिए समुचित हालात तैयार करना जरूरी है, ताकि इनका तेजी से कार्यान्वयन हो सके।

अफगानिस्तान में भारतीय परियोजना पर बात करते हुए उन्होंने संसद भवन और सलमा बांध की प्रगति को जोरदार ढंग से पूरा करने की बात की। उन्होंने ‘सार्क’ क्षेत्र में सभी भारतीय कारनामों पर तेजी से काम करने के महत्व पर जोर दिया।

दरअसल, ‘प्रगति’ के दौरान प्रमुख इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं जैसे- मेट्रो रेल, कोयला और लौह खनन, सड़क, विद्युत और उड़ान क्षेत्र भी चर्चा में आए। इनमें लखनऊ मेट्रो रेल परियोजना (फेज ए) शामिल रहा जिसे प्रधानमंत्री का अनुमोदन प्राप्त है। इसके अलावा समीक्षा में खुर्दा–बोलंगीर ब्रॉड गेज लिंक, मुम्बई मेट्रो परियोजनाओं लाइन 3 (कोलाबा–बांद्रा–सीटज) और सिक्किम में पाकयंग हवाई अड्डा शामिल रहा, जिसे उन्होंने टूरिज्म कनेक्टिविटी और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक माना। जारी…

(उपरोक्त सामग्री सद्य: प्रकाशित पुस्तक
‘द इनोवेशन रिपब्लिक’ से साभार प्रस्तुत है)