‘जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र बहाल रहे, यह सर्वोच्च प्राथमिकता है’

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                                              जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक

लोकसभा

गृह मंत्री श्री अमित शाह ने विधेयक पर लोकसभा में 28 जून को विचार किए जाने का प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए कहा: आज इस महान सदन के सामने मैं दो प्रस्ताव लेकर उपस्थित हुआ हूं। एक जम्मू-कश्मीर राज्य में राष्ट्रपति शासन की अवधि को 6 माह और बढ़ाने का प्रस्ताव है और दूसरा जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्सन 5 और 9 के तहत जो आरक्षण का प्रावधान है, उसमें संशोधन करके कुछ क्षेत्रों को जोड़ने का प्रावधान है। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन का अनुमोदन 28 दिसम्बर, 2018 को इसी सदन में किया गया था। वह छ: महीने 2 जुलाई, 2019 को पूर्ण होंगे। चुनाव आयोग ने निर्णय किया है कि इस साल के अंत में वहां चुनाव कराए जाएंगे। इसलिए यह अत्यंत जरूरी हो गया है कि राष्ट्रपति शासन की कालावधि को बढ़ाया जाए। मैं इतना कहना चाहता हूं कि पिछले एक साल की अवधि के अंदर पहली बार आतंकवाद के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति को अपनाया गया है। इसी एक साल के अंदर पंचायत के चुनाव कराए गए हैं। इतना ही नहीं, 3700 करोड़ रुपये जम्मू-कश्मीर की ग्राम पंचायतों के एकाउंट में ट्रांस्फर करने का काम किया जा रहा है। वहां पंचायतों और लोकसभा के चुनाव में मत प्रतिशत भी बढ़ा है और हिंसा भी नहीं हुई है। यह यही दर्शाता है कि लॉ एण्ड ऑर्डर सरकार के कंट्रोल में है। जहां तक विकास का सवाल है, ढेर सारे नए इनिशिएटिव भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने लिए हैं। इसके कारण जम्मू-कश्मीर क्षेत्र व लद्दाख क्षेत्र के अंदर पहली बार जनता संतोष का अनुभव कर रही है। वर्षों से लंबित मामलों को निपटा दिया गया। पूर्वकाल में बंकर नहीं बनते थे, जानें चली जाती थीं, मवेशी मारे जाते थे। अब 50 हजार रुपये एक भैंस के मारे जाने पर दिया जाता है। लगभग 15 हजार बंकर बनाने का फैसला हुआ है। उनमें से 4400 बंकर बन चुके हैं। मैं इतना स्पष्ट करना चाहता हूं कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र बहाल रहे, यह भारतीय जनता पार्टी की सर्वोच्च प्राथमिकता है। मेरा दूसरा प्रस्ताव यह है कि जम्मू-कश्मीर आरक्षण कानून, 2004 के तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे क्षेत्रों के निवासियों के लिए जो 3 परसेंट आरक्षण है, उसका लाभ इंटरनेशनल बॉर्डर के नजदीक रहने वाले लोगों को भी मिलना चाहिए। चाहे एल.ओ.सी. हो, एलएसी हो, चाहे इंटरनेशनल बॉर्डर हो, सीमाओं पर जो गांव बसे हैं, उनकी हार्डशिप्स एक समान है। इससे कठुआ, सांबा और जम्मू जिले के साढ़े तीन लाख लोगों को लाभ होगा। मैं आपके माध्यम से सदन से विनती करता हूं कि इस प्रस्ताव का अनुमोदन करे।

राज्यसभा

जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक पर राज्यसभा में हुई बहस का उत्तर देते हुए श्री अमित शाह ने 1 जुलाई को कहा: आज जम्मू में एक दुखद हादसा हुआ है, जिसमें 35 लोगों की जान गयी है और 18 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इस विधेयक पर हुई चर्चा में लगभग 27 माननीय सदस्यों ने हिस्सा लिया है। मैं सभी के प्रति धन्यवाद व्यक्त करना चाहूंगा कि कम-से-कम सभी माननीय सदस्यों की बातों में एक बात सामान्य निकली कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। इस संबंध में, सदन के अंदर एकमत है। सदन ने आज जिस एकता का संदेश देश और दुनिया के सामने रखा है, आज जो बहस यहां हुई है, मैं मानता हूं कि जम्मू-कश्मीर की समस्या का हल करने में, विशेषकर घाटी की जनता के मनोबल को बढ़ाने में, वह बहुत बड़ा सहयोग करेगी। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इसे कोई हिन्दुस्तान से अलग नहीं कर सकता। इस सरकार की आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति है और हम उसे हरदम और हर पल उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध हैं। यह सरकार जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए, अपितु समविकास के लिए प्रतिबद्ध है। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीनों के समविकास के लिए काम किया जाए और तीनों के विकास के लिए योजनाएं बनें। किसी हिस्से के साथ कभी भी विकास के मामले में ऊंच-नीच का व्यवहार नहीं होना चाहिए। अनेक माननीय सदस्यों ने स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया। श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार भी अटल जी के रास्ते पर चलते हुए जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत के रास्ते पर ही चलेगी। मगर, जम्हूरियत कहने से मेरा आशय यह है कि इसे विधानसभा के 87 सदस्यों तक ही सीमित नहीं रखा जाए। आज़ाद साहब ने कहा कि 125 लोग जेल में थे। यह बात सही है कि विशिष्ट परिस्थिति के कारण 125 लोग जेल में थे, मगर मैं यह बात भी कहना चाहता हूं कि इतने साल हो गए, 40,000 लोग जो पंच सरपंच बनने का अधिकार रखते थे, 70 साल से घर में बैठे थे, किंतु चुनाव नहीं कराए गए।

नरेन्द्र मोदी सरकार ने लोकतंत्र को गांव तक पहुंचाने का काम किया। लोकतंत्र तीन परिवारों के लिए सीमित नहीं रहना चाहिए, लोकतंत्र नीचे तक, गांव तक जाना चाहिए, 40 हजार पंच, सरपंचों तक जाना चाहिए और यह काम हमने किया। आज़ाद साहब ने कहा कि यह अच्छी बात है कि चुनाव में एक भी खून का कतरा नहीं बहा। लोकसभा के चुनाव में भी खून का कतरा नहीं बहा। जहां तक कश्मीरियत की बात है, हम भी मानते हैं कि कश्मीरियत को संभालना है। जो सूफी परंपरा थी, क्या वह कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थी? पूरे देश के अंदर सूफी परंपरा का सबसे बड़ा गढ़ हमारा जम्मू और कश्मीर था। सूफी कहां चले गए। उनको किसने निकाल दिया? क्या वे कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थे? कश्मीरी पंडित अपने ही देश के अंदर दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। उनको घरों से निकाल दिया गया। इनके ढेर सारे धार्मिक स्थानों को तोड़ दिया गया। अगर आवाज़ कश्मीरी पंडितों के लिए आती, सूफी परंपरा के लिए आती, सूफी संतों के लिए आती और कश्मीरियत की बात करते, तो मैं भी मानता कि कश्मीरियत के लिए सबकी चिंता है। सारे सूफी संतों को, एक एक करके, चुन-चुन कर मार दिया गया, क्योंकि वे एकता की बात करते थे। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करते थे। कश्मीरी संस्कृति की भी बात करनी चाहिए और पूरे कश्मीर की बात करनी चाहिए। मैं सदन को आश्वासन दिलाता हूं कि नरेन्द्र मोदी सरकार की नीति है कि कश्मीर की जनता की संस्कृति का संरक्षण हम ही करेंगे और इसको फिर से पूर्व स्थिति में लाएंगे। एक समय आएगा, वहां क्षीर भवानी के मंदिर में कश्मीरी पंडित भी पूजा करते हुए दिखाई पड़ेंगे और सूफी भाई भी वहां पर दिखाई पड़ेंगे। इतने सारे स्कूल बंद कर दिए गए, बच्चे अनपढ़ हो गए, पूरी की पूरी पीढ़ियां अनपढ़ होने लगीं। हमने राष्ट्रपति शासन के अंदर स्कूल चालू करा दिये। इस प्रकार से राष्ट्रपति शासन के तहत नीचे तक योजनाओं को पहुंचाने का काम किया गया। हमने घर तक गैस पहुंचाई। हमने उनके घर में शौचालय पहुंचाया हमने उनके घरों में बिजली पहुंचाई है। यह इंसानियत की बात है। इस शासन में उन्हें खाना भी पहुंचा है। आज विधवा पेंशन, वृद्ध पेंशन डीबीटी के माध्यम से सीधी उनके बैंक एकाउंट में पहुंचती है। उनके जीवन-निर्वाह के लिए काम आता है। एक साल में पूरे देश में आयुष्मान भारत योजना का कवरेज सबसे ज्यादा जम्मू-कश्मीर में हुआ है। जो भारत को तोड़ने की बात करेगा, उसको उसी की भाषा में जवाब मिलेगा और जो भारत के साथ रहना चाहते हैं, हमें उनके कल्याण की चिंता है। जम्मू-कश्मीर की आवाम को डरने की ज़रूरत नहीं है। भारत के किसी भी सूबे में जितनी सुख-सुविधा पहुंची है, वह घाटी के लोगों को भी मिलनी चाहिए। नरेन्द्र मोदी जी की सरकार ने पहली बार आर्थिक अधिकार दिए और उनको फैसले खुद करने का अधिकार दिया। अनुच्छेद 356 का उपयोग कम-से-कम करना चाहिए। हमने तो परिस्थितिजन्य अनुच्छेद 356 का उपयोग किया।

प्रधानमंत्री जी ने सभी दलों के अध्यक्षों की बैठक बुलाई थी। लोकसभा के स्पीकर साहब ने सभी दलों के नेता, सदन को बुलाया था। इनमें एक निष्कर्ष निकला कि विधेयकों पर चर्चा समितियों में नहीं हो रही है। चाहे लोकसभा, राज्यसभा की स्थायी समीति हो या प्रवर समीति हो, समितियों के अंदर कम विधेयक ही जाते हैं। यह बात सही है। हम व्यवस्था को सुधारने का प्रयास भी करेंगे, मगर जब अाकस्मिकता होती है, तब विधेयक को सभा में लाते हैं और हम विधेयक पर चर्चा करने के लिए पर्याप्त समय देते हैं। मैं थोड़ी बातें रिकॉर्ड पर रख रहा हूं, रिकॉर्ड साफ रहना चाहिए, कम-से-कम इस सदन का रिकॉर्ड साफ रहता है। यूपीए-|| के समय लाए गए कुल 180 विधेयक में से 125 विधेयक एक भी समिति के सामने नहीं गए थे। यूपीए-1 में 248 विधेयक आए, उनमें से 207 विधेयक एक भी समिति के सामने नहीं गए। हमारे समय के अंदर 180 विधेयक आए, जिनमें से 124 विधेयक समिति के अंदर जाकर आए। चुनाव की बात की गई है। मेरे द्वार आज लाए गए संकल्प का सभी ने समर्थन किया है और कश्मीर समस्या पर हम एकमत हैं। जहां तक चुनाव का सवाल है, एक मुद्दा बार-बार उठाया गया कि पंचायतों के चुनाव हुए, खून का कतरा नहीं बहा, लोकसभा के चुनाव हुए, खून का कतरा नहीं बहा, तो स्थिति अच्छी है, चुनाव होने चाहिए। यह भी कहा गया कि लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव साथ में क्यों नहीं हुए? हम तो कहते हैं। कि देश भर की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए। यदि आप अभी “हाँ” बोल दें, मैं कल लोकसभा के अंदर बिल लेकर आऊंगा और पूरे देश भर की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ करवाएंगें। हमें कोई आपत्ति नहीं है। दूसरा मुद्दा आया है कि दोनों चुनाव साथ में क्यों नहीं हुए? मैं इस सदन के सामने स्पष्ट करना चाहता हूँ। लोकसभा के चुनाव के अंदर सिर्फ छ: सीट्स होती हैं, प्रत्याशियों की संख्या कम होती है। वहां ऐसी स्थिति का निर्माण नहीं हो पाया है कि हम प्रत्याशियों को सुरक्षा दिए बगैर चुनाव करवाएं। अगर विधानसभा के चुनाव होते हैं, तो उसके लिए 1,000 प्रत्याशी फॉर्म भरे जाते हैं। इन सबको जो सुरक्षा कवर देने का मामला है, इसके लिए सुरक्षा बलों ने चुनाव आयोग के सामने साफ शब्दों में अपनी असमर्थता जाहिर की थी कि अगर चुनाव एक साथ कराते हैं, तो देश के बाकी हिस्सों में भी चुनाव हो रहे हैं, वहां पर भी सुरक्षा बलों की तैनाती करनी है। इसलिए हम विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने की स्थिति में नहीं हैं। राष्ट्रपति शासन के ज़रिए शासन करने का किसी को शौक नहीं है। मगर सुरक्षा सरोकार के कारण ही चुनाव नहीं कराए गए थे। अब लोकसभा चुनाव के बाद अमरनाथ की यात्रा का समय आ गया था। इसलिए फिलहाल चुनाव न कराने का सुझाव सुरक्षा बलों का था, जम्मू-कश्मीर सरकार के प्रशासन का निर्णय था और यह फैसला चुनाव आयोग ने लिया है। हम चुनाव नहीं कराते हैं, चुनाव आयोग ही चुनाव कराता है, उसकी संवैधानिक ज़िम्मेदारी है, चुनाव आयोग जब भी चुनाव कराने के लिए उपयुक्त स्थिति मानेगा और सरकार को इंगित करेगा, तो हम एक दिन की भी देरी नहीं करेंगे, तुरंत चुनाव होंगे। यह कहना कि पूरा कश्मीर विवादित है, यह सही नहीं है। कुछ विवादित नहीं है, न कश्मीर विवादित है और न ही पी.ओ.के. विवादित है, ये सब भारत के अभिन्न अंग हैं।

किसी माननीय सदस्य ने एक मुद्दा उठाया है कि हमने पी.डी.पी. के साथ गठबंधन क्यों किया। पी.डी.पी. के साथ गठबंधन करने का फैसला हमारा नहीं था, यह जम्मू-कश्मीर की जनता का फैसला था। हमें एक खण्डित जनादेश मिला था और खण्डित जनादेश भी इस प्रकार का मिला था कि जिसके अन्दर अगर कोई भी दो दल इकट्ठा नहीं होते हैं, तो बहुमत की संभावना ही नहीं है। काफी समय तक राज्यपाल शासन लगा रहा था, जब कुछ नहीं हुआ, तब न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत हम आगे बढ़े और हमने सरकार बनायी थी, मगर जब हमें लगा कि अलगाववाद को बढ़ावा मिल रहा है, हमने तनिक भी देर नहीं की, समर्थन वापस ले लिया और हम सत्ता से बाहर आ गए। वहां जब राज्यपाल शासन लगाया गया, उस वक्त भी पूर्ण प्रयास किए गए थे कि सरकार बने, मगर जब कोई नहीं आया तो राष्ट्रपति शासन लगाया गया। हमने एक सप्ताह के अंदर पश्चिम बंगाल के लिए दो एडवाइज़री इश्यू कर दी है। मैं आपको सूचित करना चाहूंगा कि गृह मंत्रालय व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा के लिए ही एडवाइज़री जारी करता है। कानून और व्यवस्था की समस्याओं के लिए एडवाइजरी जारी नहीं की गयी है। राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं की हत्या के लिए एडवाइजरी जारी की गयी है, क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। जबसे उत्तर प्रदेश में हमने सत्ता की बागडोर संभाली है तबसे किसी भी राजनैतिक कार्यकर्ता की हत्या का कोई मामला सामने नहीं आया है। इस प्रकार की राजनैतिक हत्याएं स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं हैं। इसको तुरंत बंद करना चाहिए। मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि आरक्षण विधेयक के यहां से पारित हो जाने के बाद उसे विधानसभा से पारित कराने की कोई आवश्यकता नहीं है। अभी विधानसभा के सभी अधिकार इन्हीं दोनों सदनों में निहित हैं। हमारी सरकार यह मानती है कि घुसपैठ रोकी जानी चाहिए और घुसपैठियों को बाहर निकाला जाना चाहिए। हम हिन्दू शरणार्थियों के प्रति भी प्रतिबद्ध हैं। मैं यह साफ तौर पर बताना चाहूंगा कि हम नागरिक संशोधन विधेयक लाकर सारे हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने जा रहे हैं। हम नेहरू जी के बारे में कोई गलत विचार नहीं रखना चाहते हैं। हम देश और देश की जनता को गुमराह भी नहीं करना चाहते हैं। किन्तु जो इतिहास की भूलों से नहीं सीखते हैं, उनका भविष्य अच्छा नहीं होता है। हमें मकबूल शेरवानी, ब्रिगेडियर उस्मान और ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह याद हैं। देश के लिए सर्वोच्च बलिदान करने वाले ऐसे सपूतों के प्रति हमारे दिल में आदर है। मैं जनवरी, 1949 के युद्ध विराम का कारण जानना चाहता हूं। यह एक गलती थी। हम संयुक्त राष्ट्र गये। यह भी एक गलती थी। क्या हमें अपनी गलतियों से नहीं सीखना चाहिए। हमें जनमत संग्रह के लिए सहमति नहीं देनी चाहिए थी। ये सवाल इतिहास में हमेशा के लिए रहेंगे। सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत संघ में मिलाया था। शेख अब्दुल्ला एक वरिष्ठ नेता थे किन्तु उनके साथ क्या हुआ। मैं इतिहास जानता हूं पर हमें इस सभा में ऐतिहासिक तथ्यों को छिपाना नहीं चाहिए। हम टी.वी. नेटवर्क बंद करना नहीं चाहते हैं। जिसको जो दिखाना है वह दिखा सकता है।

हम घाटी के लोगों का विश्वास जीतेंगे। हम उन्हें गुमराह नहीं होने देंगे। यही बात जम्मू और लद्दाख के लोगों को खलती है। इसी तुष्टीकरण ने घाटी की मानसिकता बिगाड़ने का भी काम किया है।
मैं युद्धविराम के आंकड़ों को उस दिन प्रस्तुत करूंगा जिस दिन चर्चा कराई जायेगी। परंतु मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि जम्मू में पहले युद्धविराम नहीं होते थे। इतनी मात्रा में युद्धविराम होते हैं कि हमें सुरक्षा के लिए 15,000 बंकर बनाने का निर्णय करना पड़ा और 4,000 बंकर हमने बना दिए हैं। हमारी सरकार देश में सुरक्षा के लिए कटिबद्ध है। आतंकवाद के लिए हम शून्य सहिष्णुता की नीति लेकर चलते हैं। हमने आज तक सबसे ज्यादा सीआरपीएफ की कंपनियां भी वहां पहुंचाई हैं। जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ की जो कंपनियां हैं, उनको आधुनिक साधनों से लैस करने के लिए 2300 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। हमने बीपी वाहन, ड्रोन, सीसीटीवी कैमरा और रडार दिए हैं। सरकार ने प्रशिक्षण के भी काफी सारे काम परे किए हैं। एक बहु-विषयक आतंक निगरानी समूह की भी रचना की गई है, जिससे विभिन्न एजेन्सीज़ जैसेकि सेना, बीएसएफ, सीआरपीएफ इत्यादि के बीच में अच्छा समन्वय हो सके। इसके लिए मार्च, 2019, से एक नए ग्रुप का गठन किया गया है, जो सप्ताह में दो बार बैठता है और अच्छे तरीके से कार्य कर रहा है। सरकार ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और जमात-ए-इस्लामी, जिसे राजनैतिक संरक्षण प्राप्त था, प्रतिबंध लगाया है। आतंकवादियों को समर्थन करने वाले लोगों की निवारक गिरफ्तारी की गई। जो लोग भारत के विरोध में बात करते थे और जम्मू-कश्मीर की आवाम को गुमराह करते थे, उन लोगों को भी सुरक्षा दी गई थी और जनता की सुरक्षा नहीं हो पाती थी। लगभग दो हजार व्यक्तियों की सुरक्षा को हमने रिव्यू किया, उसमें से 919 लोगों की सुरक्षा को सरकार ने पूरी तरह वापस लेने का काम किया, जिसमें 18 अलगाववादी नेता भी हैं। अलगाववाद और आतंकवाद को रोकना के लिए यह बहुत उपयोगी कदम है। पाकिस्तान के अवैध चैनल पर लगाम लगा दी गई है। इस देश के कई दलों के कई राजनैतिक नेता आतंकवाद की बलि चढ़े हैं। एक के बाद एक सभी सरकारों ने आतंकवाद के खिलाफ अपने-अपने तरीके से लड़ाई लड़ी है। पहले पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर लगते थे और वहां उनकी ट्रेनिंग होती थी। फिर आतंकी यहां वारदातें करते थे, जिसमें वे खुद मारे जाते थे और जवान व नागरिक मारे जाते थे। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अपनी ज़मीन पर ही लड़ी जाती थी। किन्तु यह सरकार आतंकवाद की जड़ में जाकर उसे खत्म करेगी। उरी की घटना के बाद हमने सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला लिया। सर्जिकल स्ट्राइक करके दुनियाभर में एक संदेश भेजा गया कि भारत की सरकार आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति रखती है। इसके बाद आतंकवादियों ने पुलवामा के अंदर हमला कर दिया गया जिसमें 40 जवान शहीद हो गए। सबको लगता था कि सर्जिकल स्ट्राइक कैसे हो सकती है? देश के प्रधानमंत्री ने दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति का परिचय दिया और हवाई हमले करने का निर्णय किया और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी अड्डों को तबाह कर दिया। अब सुरक्षा नीति को उच्च प्राथमिकता दी जा रही है। 70 साल तक सुरक्षा नीति और विदेश नीति के बीच में घालमेल होता था। विदेश नीति के नाम पर सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया गया। पहली बार, विदेश नीति और सुरक्षा नीति को अलग कर दिया गया है। हम दुनिया भर में शांति चाहते हैं। यह तभी होगा जब हमारी सीमाओं का सम्मान किया जायेगा। हमने सड़कों को सीआरपीएफ के काफिले की आवाजाही के लिए बंद करते हैं और ऐसा पहले भी हुआ है।

कांग्रेस का शासन था, तब 365 दिनों में से 300 दिन तक कर्फ्यू रहा था। उत्तर प्रदेश के अंदर, आपके शासन में कर्फ्यू लगते रहे हैं। सिर्फ जम्मू-कश्मीर में ही ऐसा नहीं होता। जहां कानून और व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है, वहां ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं और उन्हीं नागरिकों की सुरक्षा के लिए उठाने पड़ते हैं। जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ की यात्रा चल रही है, वहां देश भर से यात्री जा रहे हैं। अब तक पूरे देश से 17 हजार और जम्मू-कश्मीर के 24 हजार लोग वहां हैं। यह जो फैसला लिया गया है, यह जम्मू-कश्मीर में रह रहे लोगों और देश भर से वहां पहुंच रहे यात्रियों के भले के लिए लिया गया है। आतंकवादियों के लिए जो पैसा आता था, उसे रोकने के लिए कभी भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। सरकार ने पहली बार एनआईए का उपयोग करके पाकिस्तान से पैसे आने के सभी चैनलों को बन्द कर दिया है। आज वहां सीबीडीटी और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के कार्यालय पूर्ण रूप से कार्य कर रहे हैं। वहां 21 मामलों की जांच चल रही है। आतंकवाद कभी भी बातों से खत्म नहीं होता है। आतंकवाद कभी जन भावनाओं से खत्म नहीं होता है, बल्कि उस पर कड़ा प्रहार करना पड़ता है। गोला-बारूद के लिए एलओसी के व्यापार का उपयोग किया जाता था। उन सभी फर्मों को निलम्बित करने का काम किया गया है। अलगाववादियों यहां स्कूलों को बन्द करा दिया। सरकार घाटी की जनता से कहना चाहती है कि इनकी बातों में आकर गुमराह होकर आप अपने हाथों में पत्थर मत उठाइए और हाथ में हथियार मत लीजिए। इन लोगों के बेटे और बेटियां विदेशों में पढ़ रहे हैं और उन्होंने यहां पर स्कूलों को बन्द करा दिया। एनआईए के मामले में भी लगभग 40 लोगों की गिरफ्तारी हुई है और अब तक 137 से ज्यादा लोगों पर हमने देश की अलग-अलग अदालतों में चालान दाखिल कर दिए हैं। विकास के बहुत सारे काम पूरे हो गए हैं। सरकार ने 80 हजार करोड़ रुपये की जो घोषणा की थी। इसके अंतर्गत भारत सरकार के पंद्रह मंत्रालय सम्मिलित थे। उसमें 63 परियोजनाएं हैं, जिनमें हमने 2 एम्स, 2 आईआईएम, 2 आईआईटी दिए हैं। उनमें से 16 परियोजनाएं समाप्त हो चुकी हैं और 80 हजार करोड़ रुपये में से 80 प्रतिशत रुपया पहुंच चुका है। बाकी सब काम चालू हैं। हमने लगभग 6 लाख से ज्यादा परिवारों तक आयुष्मान भारत की स्कीम पहुंचाई है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 15 हजार गरीबों को घर दिए हैं। फसल बीमा योजना के अंतर्गत 85 हजार किसानों को भुगतान किया है। 45 हजार लाभार्थियों को सॉयल हेल्थ कार्ड दिए गए हैं। आज असंगठित क्षेत्र के 55 हजार, 544 मजदूर पेंशन योजना के साथ जुड़कर अपनी सेविंग्स कर रहे हैं। 28 अक्टूबर, 2018 को सभी घरों में शत-प्रतिशत विद्युतीकरण का कार्य समाप्त कर दिया गया है। राज्य को ओडीएफ का दर्जा भी मिला है। राज्य में स्टार्ट-अप कार्यक्रम को सुगम बनाने के लिए नई पॉलिसी बनाई है। श्रीनगर और जम्मू के लिए लाइट रेल ट्रांजिट सिस्टम की स्थापना करने के लिए भी काम हो रहा है। कुल 126 योजनाओं में से 18 योजनाएं ऐसी हैं, जिनमें जम्मू-कश्मीर 1 से 3 नंबर पर है। पंचायती राज के चनाव हुए हैं। 73वें संविधान संशोधन के अनुरूप सारी शक्तियां उन्हें दे दी गई हैं। दूसरे चरण में तहसील और जिला परिषद के चुनावों की प्रक्रिया भी अभी शुरू की गई है। पत्थर वह गांव का बच्चा उठाता था। उसके हाथ में थोड़े रुपये पकड़ा देते थे। आज गांवों में ये 3,700 करोड़ रुपये पहुंचेंगे, तो गांवों के अन्दर विकास होगा, रोज़गार पहुंचेगा इससे भी कानून और व्यवस्था करने में बहुत बड़ा फायदा होगा। सेना ने 45 सद्भावना विद्यालय खोले हैं। सीआरपीएफ ने स्वास्थ्य हेल्पलाइन खोली है, सीआरपीएफ ने भी 17 विद्यालय खोले हैं, बीएसएफ ने भी खोले और व्यक्ति प्रतिभा पोषण में हमने बहुत सारे बच्चों को आगे ले जाने का कार्य किया है। कश्मीर समस्या बहुत पुरानी है। अगर समस्या 1947 से लेकर 2019 तक समाप्त नहीं हुई, तो नए नजरिए की ज़रूरत है, नई सोच की ज़रूरत है। घाटी हमारी है। भाई हम उनका उन्नयन करना चाहते हैं।

हिन्दुस्तान के बाकी हिस्सों की तरह वे भी आगे बढ़े जहां तक आतंकवादियों का सवाल है, अलगाववादी का सवाल है, जो भारत के साथ कश्मीर के जुड़ाव को स्वीकार नहीं कर सकते, जो भारत के संविधान को नहीं मानते। उनके लिए इस सरकार की योजना में कोई जगह नहीं है। उन पर कठोरता भी होगी और उनको कठिनाइयां भी होंगी। हम जो विस्तार लेकर आए हैं, कृपया इसको पीछे से सरकार चलाने का हथकंडा मत समझिए। किसी एक राज्य के अन्दर, एक सूबे के अन्दर सरकार चलाने के लिए हम 356 का उपयोग नहीं करेंगे।