भारतीय अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र
भाजपानीत राजग सरकार ने 2014 में जब केंद्र में सत्ता संभाली, तब देश की अर्थव्यवस्था बेहद नाजुक दौर से गुजर रही थी तथा भारत विश्व की पांच कमजोर अर्थव्यवस्था में गिना जाता था। सार्वजनिक वित्त व्यवस्था चरमरा गयी थी तथा चारों ओर आर्थिक कुप्रबंधन, वित्तीय अनियमितता और व्यापक भ्रष्टाचार का बोलबाला था। यह संप्रग सरकार द्वारा विरासत के रूप में छोड़ी गई अत्यंत विकट स्थिति थी। फिर भी भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने विरासत में मिली हर चुनौती का बेहतर आर्थिक प्रबंधन और सुशासन के जरिए डटकर मुकाबला किया, जिसके परिणामस्वरूप अब देश प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में निरंतर उच्च विकास के मार्ग पर अग्रसर है। यह उचित नीतियों, सच्चे इरादों और सही निर्णयों से संभव हुआ। केंद्रीय िवत्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने संप्रग सरकार (2004-2014) के आिर्थक कुप्रबंधन एवं भ्रष्टाचार तथा राजग सरकार (2014 से अब तक) की बेहतर आिर्थक नीितयों, सुधारों एवं इसके प्रभाव पर प्रकाश डालने के लिए संसद में आठ फरवरी को एक श्वेत पत्र पेश किया। यह ‘श्वेत पत्र’ 2014 से पहले और बाद में देश के आर्थिक व राजकोषीय प्रबंधन तथा प्रशासन की प्रकृति के बारे में स्पष्ट प्रकाश डालता है तथा यह भी बताता है कि कैसे भाजपानीत राजग सरकार ने अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने और ‘अमृत काल’ में लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के अनेक प्रयास किये हैं। इस ‘श्वेत पत्र’ की मुख्य बातें निम्न हैं:
विरासत में 8% की विकास दर की एक मजबूत अर्थव्यवस्था मिलने के बावजूद, संप्रग सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन तथा व्यापक भ्रष्टाचार के कारण भारत को ‘कमजोर-पांच अर्थव्यवस्था’ (फ्रैजाइल-फाइव) में गिना जाने लगा।
• बैंकिंग क्षेत्र पूरी तरह चरमरा गया, जिसके कारण मार्च, 2004 में ₹6.6 लाख करोड़ रुपए से मार्च, 2012 तक ₹39 लाख करोड़ रुपए तक ऋणों में तीव्र वृद्धि देखी गई। इसके अतिरिक्त, लगातार उच्च राजकोषीय घाटा, जो लगातार छह वर्षों (वित्तीय वर्ष 2009-2014) तक सकल घरेलू उत्पाद के 4.5% से ऊपर रहा, ने समग्र आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया। बाजार के उधार पर सरकार की निर्भरता ने पूंजीगत व्यय में बाधा उत्पन्न की तथा कुल व्यय के रूप में पूंजीगत व्यय की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2004 में 31% से घटकर वित्त वर्ष 2014 में 16% तक हो गई।
• जुलाई, 2011 में विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 294 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर अगस्त, 2013 में लगभग 256 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो सितंबर, 2013 तक मुश्किल से 6 महीने के आयात को कवर कर सकता था।
• यूपीए सरकार ने मुख्यतः राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अत्यधिक राजस्व व्यय को उचित ठहराने के लिए वैश्विक वित्तीय संकट का फायदा उठाया था।
• यूपीए सरकार द्वारा लगाए गए सख्त तटीय नियमों ने 83 तटीय जिलों में आर्थिक वृद्धि और विकास को अवरुद्ध कर दिया। इसके अतिरिक्त, मुख्य घोटाले– जैसेकि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला आवंटन घोटालों के कारण भारत में गंभीर राजनीतिक अनिश्चितता का वातावरण बना और वैश्विक रूप से निवेश स्थल के रूप में भारत की प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
• यूपीए सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने में कई अड़चने पैदा की, जिसकी वजह से उसे आलोचना का सामना करना पड़ा और एकीकृत बाजार की पहल बाधित हुई। इसके अतिरिक्त, 2006 में पेश किया गया ‘आधार’ एक से दूसरे मंत्रालयों के बीच मतभेदों से जूझ रहा था और इसमें एक समान उद्देश्य का अभाव था, जो अपने इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल रहा।
• यूपीए के कार्यकाल वाले दशक को एक विफल दशक माना जाता है, क्योंकि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मजबूत बुनियादी अर्थव्यवस्था और वाजपेयी सरकार द्वारा शुरू किए गए सुधारों को आगे बढ़ाने का अवसर गंवा दिया।
• यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान अकुशल नीति नियोजन के कारण 2004 से 2014 तक 14 प्रमुख सामाजिक और ग्रामीण क्षेत्र के मंत्रालयों में ₹94,060 करोड़ रुपये खर्च नहीं हुए। इसके विपरीत, मोदी सरकार के अंतर्गत 2014 से 2024 तक केवल ₹37,064 करोड़ रुपये खर्च नहीं हुए, जो कि संचयी बजट अनुमान का 1% से भी कम था।
• यूपीए सरकार के अंतर्गत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था, जिसमें कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, 2जी घोटाला और एंट्रिक्स-देवास डील से लेकर शारदा चिट फंड घोटाला तक शामिल था। विकास को प्राथमिकता देने की बजाय यूपीए सरकार ने हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार किया और कोई भी क्षेत्र नहीं छोड़ा।
• मोदी सरकार के कार्यकाल में खुले में शौच को खत्म करने, पूरी योग्य आबादी को स्वदेशी टीकों के साथ सफलतापूर्वक टीकाकरण करने और डिजिटल क्रांति का नेतृत्व करने जैसी उपलब्धियां शामिल हैं। यूपीए सरकार की अक्षमताओं और अकुशल नीतियों की वजह से भारत पांच कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया।
• मोदी सरकार के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण ने केवल एक दशक में भारत को शीर्ष पांच देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है, और अब वर्ष 2027 तक भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर अग्रसर है।
• व्यापक अर्थव्यवस्था में यूपीए का कुप्रबंधन नकारात्मक चालू खाता शेष से स्पष्ट हो जाता है, जहां वर्ष 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद की दर -4.8% थी और साल-दर-साल सकल घरेलू उत्पाद 5.5 प्रतिशत की धीमी रफ्तार से ही चल रही थी। जबकि इसकी तुलना में मोदी सरकार के कार्यकाल के वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 9.1 प्रतिशत हो गई थी।
• मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 24 में 28% हो गया है जो कांग्रेस की सरकार के दौरान वर्ष 2014 के वित्त वर्ष में केवल 16 प्रतिशत था। यही नहीं, यूपीए की लापरवाही के कारण वित्त वर्ष 2015 में राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण केवल 12 किलोमीटर प्रतिदिन था, जबकि मोदी सरकार के कार्यकाल मे यह वित्तीय वर्ष 2023 में 2.3 गुना से अधिक बढ़कर 28 किमी/दिन हो गया था। इसके अतिरिक्त, प्रमुख बंदरगाहों पर कार्गो यातायात भी 581 मीट्रिक टन से बढ़कर 784 मीट्रिक टन हो गया। इसके साथ ही, वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2022 तक विद्युतीकृत रेल मार्ग और हवाई अड्डों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई थी।
• मोदी सरकार ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के दर्शन को सही मायने में अपनाया है:
यूपीए सरकार ने वर्ष 2011-2014 तक केवल 1.8 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया, वहीं मोदी सरकार ने वर्ष 2014-2024 तक उल्लेखनीय 11.5 करोड़ घरेलू शौचालयों का निर्माण किया है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2005-12 से 2014-2024 तक न्यूनतम जीरो बैलेंस वाले बैंक खाते 500 गुना बढ़े हैं।
यूपीए सरकार ने केवल 164 जन औषधि स्टोर खोले, जिनमें से केवल 87 ही चालू थे। हालांकि, मोदी सरकार के कार्यकाल वर्ष 2014-2023 तक 10,000 जन औषधि स्टोरों का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है।
• वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2023 तक औसत हेडलाइन मुद्रास्फीति गिरकर 5% हो गई, जबकि वित्त वर्ष 2004 से वित्त वर्ष 2014 तक यह 8.2% थी। मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत के सेवा क्षेत्र में 97% की वृद्धि हुई है, जो 36% की वैश्विक सेवा निर्यात वृद्धि को पार कर गया है, जो दुनिया भर में इस क्षेत्र में भारत के नेतृत्व को दर्शाता है।
• वित्तीय वर्ष 2015 और 2023 के बीच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगभग दोगुना हो चुका है, इसे पी.एल.आई के माध्यम से रणनीतिक उदारीकरण के द्वारा सक्षम बनाया गया जिसने कई क्षेत्रों में स्वचालित मार्गों के माध्यम से 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई) की अनुमति दी।
• मोदी सरकार ने सफलतापूर्वक जीएसटी को लागू करके यूपीए सरकार के एक दशक लंबे संघर्ष का सामाधान किया है। हस्तांतरण हिस्सेदारी का 30-32% से 41-42% तक बढ़ना, सहकारी संघवाद के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को स्पष्ट करता है। राज्यों को समर्पित संसाधनों की कुल मात्रा लगभग चार गुना तक बढ़ गई है जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1% है।
• वित्तीय वर्ष 2023 में भारत ने 893.19 मिलियन टन का ऐतिहासिक कोयला उत्पादन स्तर प्राप्त किया और वित्तीय वर्ष 2014 की तुलना में कुल कोयला उत्पादन में 57.8% की वृद्धि हुई है।
• मोदी सरकार के अंतर्गत सितंबर, 2023 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित संपत्ति कम होकर 3.2% हो गई, जबकि संपत्ति पर रिटर्न 2013-14 में 0.50% से बढ़कर 2022-23 में 0.79% हो गया और इक्विटी पर रिटर्न बढ़कर 12.35% हो गया है।
• भारत ने घोटालों और आधुनिक तकनीकों तक सीमित पहुंच के युग से लेकर सस्ते दरों पर व्यापक 4जी कवरेज और 2023 में दुनिया के सबसे तेजी से 5जी लागू करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। इसी प्रकार, देश का संसाधन आवंटन में अपारदर्शी प्रथाओं, जैसेकि कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला आदि से निकलकर पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ नीलामी प्रणाली की ओर परिवर्तन हुआ है, जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक वित्त को मजबूत करना है। इसके अतिरिक्त, जी.आई.एफ.टी, आई.एफ.एस.सी में एक पारदर्शी बुलियन एक्सचेंज स्थापित करने के लिए विशेष सोने के आयात लाइसेंस देने में बदलाव लाना सभी के लिए निष्पक्ष और सुलभ आर्थिक प्लेटफार्मों को बढ़ावा देने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
यूपीए सरकार ने एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था को कमजोर अर्थव्यवस्था में बदला
•• यूपीए सरकार को अधिक सुधारों के लिए तैयार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी, लेकिन उसने अपने 10 वर्षों में इसे लचर अर्थव्यवस्था बना दिया।
•• विडंबना यह है कि यूपीए नेतृत्व, जो शायद ही कभी 1991 के सुधारों का श्रेय लेने में विफल रहता है, उसने 2004 में सत्ता में आने के बाद उन्हें छोड़ दिया।
•• 2014 में बैंकिंग संकट बहुत बड़ा था और दांव पर लगी कुल राशि बहुत बड़ी थी। मार्च 2004 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा सकल अग्रिम केवल 6.6 लाख करोड़ रुपये था। मार्च 2012 में, यह 39.0 लाख करोड़ रुपये था।
•• 2013 में जब अमेरिकी डॉलर तेजी से बढ़ा। यूपीए सरकार ने बाहरी और व्यापक आर्थिक स्थिरता से समझौता किया था और 2013 में मुद्रा में गिरावट आई थी। 2011 और 2013 के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 36 प्रतिशत गिर गया।
•• प्रवासी भारतीयों के लिए ‘फॉरेन करेंसी नॉन-रेसिडेंट’ (एफसीएनआर (बी)) डिपॉजिट विंडो वास्तव में मदद के लिए एक गुहार थी, जब विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी हुई थी।
•• यूपीए सरकार के तहत विदेशी मुद्रा भंडार जुलाई, 2011 में लगभग 294 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर अगस्त, 2013 में लगभग 256 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था। सितंबर, 2013 के अंत तक आयात के लिए विदेशी मुद्रा भंडार 6 महीने से थोड़े अधिक समय के लिए ही पर्याप्त था, जबकि यह मार्च, 2004 के अंत में 17 महीने के लिए पर्याप्त था।
•• 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट पर यूपीए सरकार की प्रतिक्रिया- स्पिल-ओवर प्रभावों से निपटने के लिए एक राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज, उस समस्या से कहीं अधिक खराब थी जिसका वह समाधान करना चाहती थी।
•• यह वित्त पोषण और रखरखाव की केंद्र सरकार की क्षमता से कहीं परे था। दिलचस्प बात यह है कि इस प्रोत्साहन का उन परिणामों से कोई संबंध नहीं दिख रहा है, जो इसे हासिल करने की कोशिश की गई थी। इसका कारण यह था कि हमारी अर्थव्यवस्था संकट से अनावश्यक रूप से प्रभावित नहीं हुई थी। जीएफसी के दौरान वित्त वर्ष 2009 में भारत की वृद्धि धीमी होकर 3.1 प्रतिशत हो गई, लेकिन वित्त वर्ष 2010 में तेजी से बढ़कर 7.9 प्रतिशत हो गई।
•• यूपीए सरकार द्वारा तेल विपणन कंपनियों, उर्वरक कंपनियों और भारतीय खाद्य निगम को नकद सब्सिडी के बदले जारी की गई विशेष प्रतिभूतियां (तेल बॉन्ड) वित्त वर्ष 2006 से वित्त वर्ष 2010 तक पांच वर्षों में कुल 1.9 लाख करोड़ रुपये से अधिक की थीं।
•• प्रत्येक वर्ष के लिए सब्सिडी बिल में उन्हें शामिल करने से राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा बढ़ जाता, लेकिन उन्हें छुपाया गया।
•• अपने राजकोषीय कुप्रबंधन के परिणामस्वरूप यूपीए सरकार का राजकोषीय घाटा उसकी अपेक्षा से कहीं अधिक हो गया, और बाद में उसे 2011-12 के बजट की तुलना में बाजार से 27 प्रतिशत अधिक उधार लेना पड़ा।
•• अर्थव्यवस्था के लिए राजकोषीय घाटे का बोझ सहन करना बहुत भारी हो गया। वैश्विक वित्तीय और आर्थिक संकट के प्रभाव को निर्मूल करने के बहाने यूपीए सरकार ने अपनी उधारी का विस्तार किया और इसी बात पर अड़ी रही। यूपीए सरकार ने न केवल बाजार से भारी मात्रा में उधार लिया, बल्कि जुटाई गई धनराशि का उपयोग अनुत्पादक तरीके से किया।
•• बुनियादी ढांचे के निर्माण की गंभीर उपेक्षा की गई, जिससे औद्योगिक और आर्थिक विकास में गिरावट आयी।
•• एक जनहित याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए हलफनामे में यूपीए सरकार ने कहा कि लगभग 40,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग जोड़े गए।
•• 1997 से 2002 तक एनडीए शासन के दौरान 24,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग जोड़े गए।
•• इसके बाद, यूपीए के पिछले दस वर्षों (2004-14) में लगभग 16,000 किलोमीटर ही जोड़े गए।
•• रिजर्व बैंक की रिपोटों ने यूपीए सरकार द्वारा अत्यधिक राजस्व व्यय की ओर भी इशारा किया। खराब नीति नियोजन और कार्यान्वयन के कारण यूपीए के वर्षों के दौरान कई सामाजिक क्षेत्रों की योजनाओं के लिए बड़ी मात्रा में धन खर्च नहीं किया गया।
•• यूपीए सरकार के तहत स्वास्थ्य व्यय भारतीय परिवारों के लिए एक चिंता का विषय बना रहा।
•• यह है कि वित्त वर्ष 2014 में आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (ओओपीई) भारत के कुल स्वास्थ्य व्यय (टीएचई) का 64.2 प्रतिशत था (वित्त वर्ष 2005 में टीएचई के प्रतिशत के रूप में 69.4 प्रतिशत ओओपीई से थोड़ा सुधार के साथ) इसका मतलब है कि स्वास्थ्य व्यय भारतीय नागरिकों की जेब खाली करता रहा।
•• दीर्घकालिक राष्ट्रीय विकास के प्रति विचार की ऐसी कमी थी कि रक्षा तैयारियों का महत्वपूर्ण मुद्दा भी नीतिगत पंगुता के कारण बाधित हो गया था।
•• यूपीए सरकार के शासन का दशक (या उसका अभाव) नीतिगत दुस्साहस और 2-जी घोटाले और कोयला घोटाले जैसे कांडों से भरा रहा।
•• यूपीए सरकार को जुलाई 2012 में हमारे इतिहास की सबसे बड़ी बिजली कटौती के लिए हमेशा याद किया जाएगा, जिसने 62 करोड़ लोगों को अंधेरे में छोड़ दिया और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल दिया।
•• कोयला और गैस जैसे ईंधन की कमी के कारण 24,000 मेगावाट से अधिक उत्पादन क्षमता बेकार पड़ी होने के बावजूद देश में ऐसा अंधेरा छा गया।
•• 2जी घोटाले और नीतिगत पंगुता के कारण भारत के दूरसंचार क्षेत्र ने एक कीमती दशक गंवा दिया। यूपीए शासन में स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव था और 2008-09 तक के वर्षों में इसका अक्सर दुरुपयोग किया गया, जिसके परिणामस्वरूप ‘2जी घोटाला’ हुआ।
•• यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई 80:20 स्वर्ण निर्यात-आयात योजना इस बात का उदाहरण है कि कैसे अवैध आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए विशेष हितों की पूर्ति के वास्ते सरकारी प्रणालियों और प्रक्रियाओं को तबाह कर दिया गया।
•• यूपीए सरकार का कार्यकाल नीतिगत गतिहीनता के उदाहरणों से भरा रहा। कैबिनेट सचिव ने 2013 में इसकी चर्चा की थी। यूपीए सरकार साझा उद्देश्यों को समझ नहीं पाई और दायरे, उद्देश्य और कार्यान्वयन की जिम्मेदारियों में व्यापक अंतर-मंत्रालयी मतभेद थे।
घरेलू निवेशक भी विदेश जाने लगे
•• दुनिया भर में निवेशक व्यापार करने में आसानी चाहते थे, जबकि यूपीए सरकार ने नीतिगत अनिश्चितता और परेशानी प्रदान की। यूपीए सरकार के अंतर्गत निराशाजनक निवेश माहौल के कारण घरेलू निवेशक विदेश जाने लगे।
•• यूपीए सरकार ने पिछली सरकार द्वारा लाए गए सुधारों का लाभ उठाया, लेकिन उन महत्वपूर्ण सुधारों को पूरा करने में असफल रही जिनका उसने वादा किया था। भारत में
डिजिटल सशक्तीकरण के प्रतीक ‘आधार’ को भी यूपीए के हाथों नुकसान उठाना पड़ा है।
•• बड़ी संख्या में विकास कार्यक्रम और परियोजनाएं खराब तरीके से लागू की गईं।
•• जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली, तो अर्थव्यवस्था में कोई अर्थपूर्ण, अपेक्षित या उपयोगी निष्कर्ष निकलता नहीं दिखाई दे रहा था। भारत के नीति नियोजकों और देश की प्राथमिकताओं के बीच संबंध इस कदर टूटा हुआ था कि लोगों ने 2014 के आम चुनावों में एनडीए को बागडोर संभालने के लिए भारी जनादेश दिया।
•• वित्त वर्ष 2011 से 2014 के दौरान कौशल विकास के लिए 57 से 83 प्रतिशत भागीदार अपना लक्ष्य पूरा करने में विफल रहे।
•• यूपीए सरकार का दशक एक गंवा दिया गया दशक था क्योंकि वह मजबूत बुनियादी अर्थव्यवस्था और वाजपेयी सरकार द्वारा छोड़ी गई सुधारों की गति का लाभ उठाने में विफल रही। यूपीए सरकार में बार-बार नेतृत्व का संकट पैदा होता रहा।
•• यूपीए सरकार के आर्थिक और राजकोषीय कुप्रबंधन ने अंततः अपने कार्यकाल के अंत तक भारत की विकास संभावना को खोखला कर दिया था।
•• जैसे ही 2014 में हमारी सरकार ने सता संभाली, हमने व्यवस्थाओं और प्रक्रियाओं में सुधार और बदलाव की तत्काल आवश्यकता को पहचाना, ताकि भारत को विकास के पथ पर आगे बढ़ने में मदद मिल सके और साथ ही, इसकी व्यापक आर्थिक नींव को भी सहारा दिया जा सके।
•• शासन के हमारे नए प्रतिमान के अंतर्गत भारत ने डिजिटल क्रांति का नेतृत्व करने से लेकर खुले में शौच के उन्मूलन और स्वदेशी टीकों का उपयोग करके पूरी पात्र आबादी का सफलतापूर्वक टीकाकरण करने से लेकर निर्यात में व्यापक विविधता लाने तक उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं।
•• साथ-साथ, हमने अर्थव्यवस्था और व्यापार क्षेत्र को भी मजबूत किया है। हमारी सरकार के शुरुआती वर्षों में ही एक व्यापक सुधार प्रक्रिया की नींव रखी गई।
•• आईएमएफ आर्टिकल IV रिपोर्ट (2015) में उल्लेख किया गया है— “भारत के निकट अवधि के विकास संभावना में सुधार हुआ है और जोखिमों का संतुलन अब अधिक अनुकूल है, बढ़ी हुई राजनीतिक निश्चितता, कई नीतिगत कार्रवाइयों, व्यापार आत्मविश्वास में सुधार, वस्तुओं के आयात की कीमतों में कमी और बाहरी अति संवेदनशीलता में कमी से मदद मिली है।”
•• दो साल बाद अपनी 2017 आर्टिकल IV रिपोर्ट में आईएमएफ ने भारत के बारे में अपने आशावाद को और उन्नत करते हुए कहा कि प्रमुख सुधारों के कार्यान्वयन, आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को कम करने और उचित राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों के कारण मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं में सुधार हुआ है जिसने व्यापक आर्थिक स्थिरता बढ़ाई है।
•• सुधार प्रक्रिया की शुरुआत ने हमारी सरकार के शुरुआती वर्षों में निवेश माहौल में सुधार और अर्थव्यवस्था के लिए अनुकूल दृष्टिकोण तैयार करके सकारात्मक परिणाम देना शुरू कर दिया।
निवेशक की भावनाओं को फिर से जगाना
•• हमारी सरकार ‘प्रकृति’ और ‘प्रगति’ को संतुलित करने की सच्ची भावना को समझती है जो 2011 के नियमों में पूरी तरह से गायब थी। हमारी सरकार द्वारा किए गए सुधार उपायों ने अर्थव्यवस्था की मध्यम अवधि की निवेश संभावनाओं को काफी हद तक बढ़ा दिया है।
•• प्रसिद्ध निवेशक और फंड मैनेजर मार्क मोबियस का एक डालिया बयान, जिन्होंने यह टिप्पणी की— “भारत निवेशकों को लुभाकर और उन्हें बड़े नतीजों के वादे से अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। मैं भी इसकी विशाल विकास संभावना से मंत्रमुग्ध हूं।”
सशक्त और प्रभावी संवितरण के माध्यम से लोक कल्याण
• कल्याण के माध्यम से सशक्तीकरण हमारी सरकार का ध्येय रहा है। हमने बुनियादी
एक दशक में फ़ैजाइल-फाइव से शीर्ष-पांच पर
•• आर्थिक कुप्रबंधन ने विकास की संभावनाओं को अवरुद्ध कर दिया और भारत एक ‘फ़ैजाइल’ अर्थव्यवस्था बन गया।
•• मॉर्गन स्टेनली ने भारत को ‘फ्रैजाइल फाइव’ के स्तर पर रखा था— एक समूह जिसमें कमजोर व्यापक आर्थिक बुनियादी नींव वाली उभरती अर्थव्यवस्थाएं शामिल थीं। इनमें अन्य बातों के साथ-साथ निम्न वृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति, उच्च बाहरी घाटा और सार्वजनिक वित्त की खराब स्थिति शामिल है।
•• सच्चाई यह है कि अर्थव्यवस्था 2004 में 12वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से 2014 में 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकी, जो कि अल्पकालिक, गुणात्मक रूप से हीन स्थिति को उजागर करती है।
•• 2014 में जब से हमारी सरकार ने सत्ता संभाली है, तब से भारतीय अर्थव्यवस्था में कई संरचनात्मक सुधार हुए हैं, जिससे अर्थव्यवस्था के व्यापक आर्थिक बुनियादी सिद्धांत मजबूत हुए हैं।
•• इन सुधारों के परिणामस्वरूप भारत लगभग एक दशक में ही ‘फैजाइल फाइव’ के स्तर से ‘टॉप फाइव’ के स्तर में आ गया, क्योंकि चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल के बीच अर्थव्यवस्था कहीं अधिक लचीले अवतार में बदल गई थी।
•• हमारी सरकार की “राष्ट्र प्रथम” की कल्पना ने भारत के बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम की गुणवत्ता को बदल दिया है, जो देश के लिए निवेश आकर्षित करने और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए निर्णायक होगा।
•• उदाहरण के लिए, जब हमारी सरकार ने वित्त वर्ष 2015 में कार्यभार संभाला था, तब राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण की गति 12 किमी/प्रतिदिन थी। वित्त वर्ष 2023 में निर्माण की गति 2.3 गुना से अधिक बढ़कर 28 किमी/प्रतिदिन हो गई।
•• इसके अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सर्वोपरि रक्षा क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण उपकरणों की खरीद को यूपीए सरकार द्वारा प्राथमिकता नहीं दी गई थी। हमारी सरकार द्वारा इन पर बल दिया गया है।
सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुंच को प्राथमिकता देते हुए ‘सबका साथ, सबका विकास’ की विचारधारा को अपनाया और इस विचारधारा को साकार करने में भागीदारी, मिशन-मोड दृष्टिकोण अपनाया।
• हमारी सरकार ने प्रौद्योगिकी-आधारित लक्ष्यीकरण और निगरानी तंत्र लागू करके यूपीए सरकार से त्रस्त चुनौतियों का समाधान किया है।
• यूपीए सरकार के कार्यक्रम वितरण में काफी सुधार करने के अलावा, हमारी सरकार ने भारत की विकास क्षमता को उभारने के लिए कई नीतिगत नवाचार भी किए।
• पीएम-किसान सम्मान निधि ने किसानों को सशक्त बनाया और उधारकर्ता-ऋणदाता संबंधों को नुकसान पहुंचाए बिना उनकी आय में सुधार किया।
• वर्ष 2014 में यूपीए सरकार से प्राप्त उच्च मुद्रास्फीति की स्थायी चुनौती से निपटने के लिए, हमारी सरकार ने जवाबदेह राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों के कार्यान्वयन के द्वारा कार्यनीतिक रूप से समस्याओं मूल कारणों का पता लगाया था।
• राजकोषीय सुधार से सरकार के व्यय निर्णय को सीमित किया गया है। वर्ष 2016 में सरकार ने लक्षित मुद्रास्फीति को 2 प्रतिशत से 6 प्रतिशत के बैंड के अंदर रखने के लिए आरबीआई को अधिदेश दिया था। वित्त वर्ष 2014 और वित्त वर्ष 2023 के बीच औसत वार्षिक मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2004 और वित्त वर्ष 2014 के बीच 8.2 प्रतिशत की औसत मुद्रास्फीति से 5.0 प्रतिशत कम हो गई थी।
• हमारी सरकार द्वारा यूपीए सरकार से प्राप्त उच्च विदेशी भेद्यता को नियंत्रित करने के लिए अनुकूल प्रयास किए गए हैं।
• हमारी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था के मजबूत बुनियादी सिद्धांतों को बहाल किए जाने के कारण रुपये ने वैश्विक आघातों के दौरान लचीलापन प्रदर्शित किया।
• वर्ष 2013 में फेडरल रिजर्व की घोषणा के चार महीनों के भीतर ही रुपये में डॉलर के मुकाबले 14.9 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
• इसके विपरीत टेपर 2 की घोषणा के बाद चार महीनों के भीतर 2021 में रुपये में 0.7 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई।
• हमारी सरकार ने न केवल चालू खाते को विवेकपूर्ण ढंग से प्रबंधित किया, बल्कि आसान और सुविधापूर्ण वित्त पोषण के माध्यम से अधिक स्थिर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को सुनिश्चित किया।
• वित्त वर्ष 2005 और वित्त वर्ष 2014 के बीच जुटाए गए 305.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सकल एफडीआई के विपरीत हमारी सरकार ने वित्त वर्ष 2015 और वित्त वर्ष 2023 के बीच नौ वर्षों में इस राशि का लगभग दोगुना (596.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) संग्रह किया है।
• परिणामस्वरूप, भारत का बाह्य क्षेत्र मार्च 2014 में 303 बिलियन अमेरिकी डॉलर (आयात के 7.8 महीनों के बराबर) से जनवरी 2024 में 617 बिलियन अमेरिकी डॉलर (आयात के 10.6 महीने) तक वृद्धि विदेशी मुद्रा प्रारेक्षित निधि (फॉरेक्स रिजर्व) के साथ अधिक सुरक्षित है।
लोक वित्तः खराब स्थिति से मजबूत स्थिति तक की यात्रा
• जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो लोक वित्त अच्छी अवस्था में नहीं था। लोक वित्त को अच्छी अवस्था में लाने के लिए हमारी सरकार ने भारत की राजकोषीय प्रणाली को बदलने के लिए संवर्धित करों और व्यय परितंत्र में बहुत अधिक बदलाव किए हैं।
• पिछली परिपाटी से हटकर, सीमा से नीचे (बिलो-दी-लाइन) वित्तपोषण का अब पारदर्शी रूप से खुलासा किया जा रहा है। अब तक इस सरकार ने 2014 से पहले सब्सिडी के नकद भुगतान के बदले में तेल विपणन कंपनियों, उर्वरक कंपनियों और भारतीय खाद्य निगम को जारी की गई विशेष प्रतिभूतियों के लिए मूलधन और ब्याज के पुनर्भुगतान की दिशा में पिछले दस वर्षों में लगभग 1.93 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
• 2025-2027 के दौरान यह सरकार शेष बकाया देयताओं और उस पर ब्याज के लिए आगे 1.02 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी।
• केंद्र सरकार के बाजार उधार, जो यूपीए के कार्यकाल के दौरान अभूतपूर्व दरों पर बढ़े थे, को हमारी सरकार द्वारा नियंत्रित किया गया था।
• हमारी सरकार द्वारा व्यय की गुणवत्ता में किए गए सुधार हमारी राजकोषीय नीति की आधारशिला है।
• बजटीय पूंजीगत व्यय में अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाए बिना वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2024 (आरई) तक पांच गुना से अधिक वृद्धि हुई है।
पिछले दशक में मजबूत राजस्व वृद्धि के साथ कर-इकोसिस्टम में सुधार
• जीएसटी व्यवस्था की शुरुआत एक बेहद ही जरूरी संरचनात्मक सुधार था। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत से पहले, 440 से अधिक कर की दरों व उत्पाद शुल्क का प्रावधान था और इन दरों को प्रशासित करने वाली विभिन्न एजेंसियों की अनुपालन आवश्यकताओं का मतलब था कि भारत का आंतरिक व्यापार न तो स्वतंत्र था और न ही एकीकृत था।
•• सुधारों के कार्यान्वयन से उन 29 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों को एकीकृत करना संभव हुआ था, जो अपनी अलग-अलग कर संरचनाओं के कारण अपने आप में आर्थिक क्षेत्र थे। नई कर संरचना की विशेषता राजनीतिक सर्वसम्मति निर्माण और जीएसटी परिषद् की संप्रभुता है, जो सहकारी संघवाद के प्रमुख उदाहरण हैं। पिछले एक दशक में हुए दूरगामी कर सुधारों ने प्रभावी प्रणालियां स्थापित की हैं जिनसे राजस्व संग्रह और अनुपालन में सुधार हुआ है।
•• वित्तीय वर्ष 2015 से वित्तीय वर्ष 2024 तक संशोधित अनुमान के लिए औसत कर-जीडीपी अनुपात लगभग 10.9 प्रतिशत है, जो 2004-14 के दौरान के दस वर्ष के 10.5 प्रतिशत के औसत से अधिक है। ऐसा कम कर दरों और कोविड-19 महामारी के दौरान दी गई व्यापक राहतों के बावजूद संभव हुआ है।
•• इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि राज्य विकास में समान भागीदार है, हमारी सरकार ने सहकारी संघवाद की भावनाओं के अनुरूप 14वें और 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार किया।
दोनों व्यवस्थाओं में राज्यों को किए गए अंतरण की तुलना
(क) कर अंतरण और एफसी अनुदान के माध्यम से राज्यों को 3.8 गुना अधिक संसाधन
(ख) कर अंतरण और एफसी अनुदान के माध्यम से राज्यों को सकल घरेलू उत्पाद के एक प्रतिशत अंक के अतिरिक्त संसाधन
•• बदलते परिवेश के काल में केंद्र ने राज्यों का भरपूर सहयोग किया है। कोयला क्षेत्र में अक्षमताओं को दूर करने और प्रतिस्पर्धा एवं पारदर्शिता बढ़ाने हेतु हमारी सरकार द्वारा पिछले दस वर्षों में कई सुधार किए गए हैं।
•• सत्ता में आने के बाद हमारी सरकार ने देश के कोयला संसाधनों और ऊर्जा सुरक्षा के पारदर्शी आवंटन को सुनिश्चित करने हेतु कोयला खान विशेष प्रावधान (सीएमएसपी) अधिनियम 2015 को तेजी से लागू किया। किए गए कई अन्य उपायों में पहली बार कोयला ब्लॉक की नीलामी, वाणिज्यिक कोयला खनन, कोयला लिंकेज का युक्तीकरण, कोयले की ई-नीलामी के लिए एकल खिड़की आदि शामिल हैं।
•• हमारी सरकार ने देश के बिजली क्षेत्र में मौजूद कई समस्याओं को हल किया है, इस प्रकार इसे बिजली की कमी वाली स्थिति से पर्याप्त बिजली वाली स्थिति में बदल दिया है।
दूरसंचार क्षेत्र में बेहतर प्रशासन की शुरुआत
•• 2014 के बाद से हमारी सरकार ने दूरसंचार के बाजार में स्थितियों को ठीक करने और इस क्षेत्र में नीतिगत स्पष्टता की कमी के कारण उत्पन्न विफलताओं को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसने स्पेक्ट्रम नीलामी, व्यापार और साझाकरण के पारदर्शी तरीके लाए जिससे स्पेक्ट्रम का अधिकतम उपयोग संभव हो सका। 2022 में 5जी नीलामी के आयोजन ने अब तक के उच्चतम नीलामी मूल्य पर स्पेक्ट्रम की उच्चतम मात्रा यानी 52 गीगाहर्ट्ज़ आवंटित करके दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) के लिए समग्र स्पेक्ट्रम उपलब्धता में वृद्धि की।
•• इसके अलावा, टीएसपी के लिए पर्याप्त नकदी प्रवाह ने उन्हें 5जी तकनीक में पूंजी निवेश करने में सक्षम बनाया, जिससे देश में 5जी नेटवर्क की शुरुआत हुई, जिसे दुनिया में सबसे तेज 5जी शुरुआत के रूप में स्वीकार किया गया है।