लोकतंत्र की विरासत को हमें और सशक्त करना है: नरेंद्र मोदी

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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून को ‘मन की बात’ कार्यक्रम से देश को संबोधित किया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि मौसम बदल रहा है। इस बार गर्मी भी बहुत रही, लेकिन अच्छा हुआ कि वर्षा ऋतु समय पर अपने नक्शे कदम पर आगे बढ़ रही है। जीवन में कितनी ही आपाधापी हो, तनाव हो, व्यक्तिगत जीवन हो, सार्वजनिक जीवन हो, बारिश का आगमन मनःस्थिति को बदल देता है।

श्री मोदी ने कहा कि आज भगवान जगन्नाथ जी की रथ-यात्रा देश के कई भागों में बहुत ही श्रद्धा और उल्लासपूर्वक देशवासी मनाते हैं। अब तो विश्व के भी कुछ भागों में भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा का उत्सव सम्पन्न होता है और भगवान जगन्नाथ जी के साथ देश का ग़रीब जुड़ा हुआ है। जिन लोगों ने डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर का अध्ययन किया होगा, उन्होंने देखा होगा कि भगवान जगन्नाथ जी का मन्दिर और उसकी परंपराओं की वो बड़ी तारीफ़ करते थे, क्योंकि उसमें सामाजिक न्याय, सामाजिक समरसता अंतर्निहित थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि रमजान का पवित्र महीना सब दूर इबादत में पवित्र भाव के साथ मनाया। अब ईद का त्योहार है ईद उल फित्र के अवसर पर मेरी तरफ से सबको शुभकामनाएं। रमजान खुशिया बांटने का महीना है। हम इन पवित्र अवसरों से खुशियां बांटते चलें।

उन्होंने कहा कि व्यक्ति के जीवन में, समाज के जीवन में कुछ भी अच्छा करना है, तो बड़ी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। अगर हमारी लिखावट ख़राब है, अगर उसको ठीक करना है, तो लंबे अरसे तक बहुत जागरूक रहकर के प्रयास करना पड़ता है। तब जाकर के शरीर की, मन की आदत बदलती है। स्वच्छता का भी विषय ऐसा ही है। ऐसी बुरी आदतें हमारे स्वभाव का हिस्सा बन गई हैं। हमारी आदतों का हिस्सा बन गई हैं। इससे मुक्ति पाने के लिये अविरत रूप से हमें प्रयास करना ही पड़ेगा। हर किसी का ध्यान आकर्षित करना ही पड़ेगा।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अच्छी प्रेरक घटनाओं का बार-बार स्मरण भी करना पड़ेगा और मुझे खुशी है कि आज स्वच्छता ये सरकारी कार्यक्रम नहीं रहा है। ये जन समाज का, जन-सामान्य का एक आन्दोलन बनता चला जा रहा है और शासन में बैठे हुए लोग भी जब जनभागीदारी से इस काम को आगे बढ़ाते हैं, तो कितनी ताक़त बढ़ जाती है।

आपातकाल की याद करते हुए प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि 1975-25 जून, वो ऐसी काली रात थी, जो कोई भी लोकतंत्र प्रेमी भुला नहीं सकता है। कोई भारतवासी भुला नहीं सकता है। एक प्रकार से देश को जेलखाने में बदल दिया गया था। विरोधी स्वर को दबोच दिया गया था। जयप्रकाश नारायण सहित देश के गणमान्य नेताओं को जेलों में बंद कर दिया था। न्याय व्यवस्था भी आपातकाल के उस भयावह रूप की छाया से बच नहीं पाई थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अख़बारों को तो पूरी तरह बेकार कर दिया गया था। आज के पत्रकारिता जगत के विद्यार्थी, लोकतंत्र में काम करने वाले लोग, उस काले कालखंड को बार-बार स्मरण करते हुए लोकतंत्र के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहे हैं और करते भी रहने चाहिए। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जी भी जेल में थे। जब आपातकाल को एक वर्ष हो गया, तो अटल जी ने एक कविता लिखी थी और उन्होंने उस समय की मनःस्थिति का वर्णन अपनी कविता में किया है।

झुलसाता जेठ मास, शरद चांदनी उदास,
झुलसाता जेठ मास, शरद चांदनी उदास।
सिसकी भरते सावन का, अंतर्घट रीत गया,
एक बरस बीत गया, एक बरस बीत गया ।।
सीखचों में सिमटा जग, किंतु विकल प्राण विहग,
सीखचों में सिमटा जग, किंतु विकल प्राण विहग।
धरती से अम्बर तक, धरती से अम्बर तक,
गूंज मुक्ति गीत गया, एक बरस बीत गया, एक बरस बीत गया ।।
पथ निहारते नयन, गिनते दिन पल-छिन,
पथ निहारते नयन, गिनते दिन पल-छिन।
लौट कभी आएगा, लौट कभी आएगा,
मन का जो मीत गया, एक बरस बीत गया ।।

श्री मोदी ने कहा कि लोकतंत्र के प्रेमियों ने बड़ी लड़ाई लड़ी और भारत जैसा देश, इतना बड़ा विशाल देश, जब मौका मिला तो भारत के जन-जन की रग-रग में लोकतंत्र कैसा व्याप्त है, चुनाव के माध्यम से उस ताक़त का प्रदर्शन कर दिया। जन-जन की रग-रग में फैला हुआ ये लोकतंत्र का भाव ये हमारी अमर विरासत है। इस विरासत को हमें और सशक्त करना है।