प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 25 नवंबर को ‘मन की बात’ कार्यक्रम की 50वीं कड़ी के दौरान कहा कि जब मैंने मई 2014 में एक ‘प्रधान-सेवक’ के रूप में कार्यभार संभाला तो मेरे मन में इच्छा थी कि देश की एकता, हमारे भव्य इतिहास, उसका शौर्य, भारत की विविधताएं, हमारी सांस्कृतिक विविधताएं, हमारे समाज के रग-रग में समायी हुई अच्छाइयां, लोगों का पुरुषार्थ, जज़्बा, त्याग, तपस्या इन सारी बातों को भारत की यह कहानी जन-जन तक पहुंचनी चाहिये।
श्री मोदी ने कहा कि देश के दूर-सुदूर गावों से लेकर मेट्रो सिटीज तक किसानों से लेकर के युवा प्रोफेशनल्स तक और बस उसी में से ये ‘मन की बात’ की यात्रा प्रारंभ हो गयी। हर महीने लाखों की संख्या में पत्रों को पढ़ते, फ़ोन कॉल्स सुनते, एप्प और MyGov पर कमेंट देखते और इन सबको एक सूत्र में पिरोकर के, हल्की-फुल्की बातें करते-करते 50 एपिसोड का एक सफ़र हम सबने मिलकर के तय कर ली है। हाल ही में आकाशवाणी ने ‘मन की बात’ पर सर्वे भी कराया। मैंने उनमें से कुछ ऐसे फीडबैक को देखा जो काफी दिलचस्प हैं। जिन लोगों के बीच सर्वे किया गया है, उनमें से औसतन 70% नियमित रूप से ‘मन की बात’ सुनने वाले लोग हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अधिकतर लोगों को लगता है कि ‘मन की बात’ का सबसे बड़ा योगदान ये है कि इसने समाज में पाॅजिटिविटी की भावना बढ़ायी है। ‘मन की बात’ के माध्यम से बड़े पैमाने पर जन-आन्दोलनों को बढ़ावा मिला है। # इंडियापॉजिटिव को लेकर व्यापक चर्चा भी हुई है। ये हमारे देशवासियों के मन में बसी पाॅजिटिविटी की भावना की, सकारात्मकता की भावना की भी झलक है। लोगों ने अपना ये अनुभव भी शेयर किया है कि ‘मन की बात’ से स्वेच्छा से कुछ करने की भावना बढ़ी है। एक ऐसा बदलाव आया है जिसमें समाज की सेवा के लिए लोग बढ़चढ़ करके आगे आ रहे हैं।
श्री मोदी ने कहा कि मुझे यह देखकर के खुशी हुई कि ‘मन की बात’ के कारण रेडियो, और अधिक लोकप्रिय हो रहा है। लेकिन यह केवल रेडियो ही नहीं है जिसके माध्यम से लोग इस कार्यक्रम में जुड़ रहे हैं। लोग टी.वी., एफ़.एम. रेडियो, मोबाइल, इन्टरनेट, फ़ेसबुक लाइव, और पेरिस्कोप के साथ-साथ NarendraModiApp के माध्यम से भी ‘मन की बात’ में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मोदी आएगा और चला जाएगा, लेकिन यह देश अटल रहेगा, हमारी संस्कृति अमर रहेगी। 130 करोड़ देशवासियों की छोटी-छोटी यह कहानियां हमेशा जीवित रहेंगी। इस देश को नयी प्रेरणा में उत्साह से नयी ऊंचाइयों पर लेती जाती रहेंगी। मैं भी कभी-कभी पीछे मुड़कर के देखता हूं तो मुझे भी बहुत बड़ा आश्चर्य होता है। कभी कोई देश के किसी कोने से पत्र लिखकर कहता है – हमें छोटे दुकानदारों, ऑटो चलाने वालों, सब्जी बेचने वालों ऐसे लोगों से बहुत ज़्यादा मोल-भाव नहीं करना चाहिये। मैं पत्र पढता हूं, ऐसा ही भाव कभी किसी और पत्र में आया हो उसको साथ गूंथ लेता हूं।
श्री मोदी ने कहा कि कभी-कभी ‘मन की बात’ का मजाक भी उड़ता है, लेकिन मेरे मन में हमेशा ही 130 करोड़ देशवासी बसे रहते हैं। उनका मन मेरा मन है। ‘मन की बात’ सरकारी बात नहीं है – यह समाज की बात है। ‘मन की बात’ एक महत्वाकांक्षी भारत की बात है। भारत का मूल-प्राण राजनीति नहीं है, भारत का मूल-प्राण राजशक्ति भी नहीं है। भारत का मूल-प्राण समाजनीति है और समाज-शक्ति है। समाज जीवन के हजारों पहलू होते हैं उनमें से एक पहलू राजनीति भी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राजनीति सब कुछ हो जाए, यह स्वस्थ समाज के लिए एक अच्छी व्यवस्था नहीं है। कभी-कभी राजनीतिक घटनाएं और राजनीतिक लोग इतने हावी हो जाते हैं कि समाज की अन्य प्रतिभाएं और अन्य पुरुषार्थ दब जाते हैं। भारत जैसे देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए जन-सामान्य की प्रतिभाएं पुरुषार्थ को उचित स्थान मिले, यह हम सबका एक सामूहिक दायित्व है और ‘मन की बात’ इस दिशा में एक नम्र और छोटा सा प्रयास है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि कल ‘संविधान दिवस’ है। उन महान विभूतियों को याद करने का दिन जिन्होंने हमारा संविधान बनाया। 26 नवम्बर, 1949 को हमारे संविधान को अपनाया गया था। संविधान ड्रॉफ्ट करने के इस ऐतिहासिक कार्य को पूरा करने में संविधान सभा को 2 वर्ष, 11 महीने और 17 दिन लगे। कल्पना कीजिये 3 वर्ष के भीतर ही इन महान विभूतियों ने हमें इतना व्यापक और विस्तृत संविधान दिया।
श्री मोदी ने कहा कि संविधान सभा देश की महान प्रतिभाओं का संगम थी, उनमें से हर कोई अपने देश को एक ऐसा संविधान देने के लिए प्रतिबद्ध था, जिससे भारत के लोग सशक्त हों, ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति भी समर्थ बने।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे संविधान में खास बात यही है कि अधिकार और कर्तव्य के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। नागरिक के जीवन में इन्हीं दोनों का तालमेल देश को आगे ले जाएगा। अगर हम दूसरों के अधिकार का सम्मान करेंगे, तो हमारे अधिकारों की रक्षा अपने आप हो जायेगी और इसी तरह अगर हम संविधान में दिए अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे तो भी हमारे अधिकारों की रक्षा अपने आप हो जायेगी।
उन्होंने कहा कि मुझे अभी भी याद है 2010 में जब भारत के गणतंत्र को 60 साल हुए थे, तब गुजरात में हमने हाथी पर रखकर संविधान की शोभा-यात्रा निकाली थी। युवाओं में संविधान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए और उन्हें संविधान के पहलुओं से जोड़ने के लिए यह एक यादगार प्रसंग था। वर्ष 2020 में एक गणतंत्र के रूप में हम 70 साल पूरे करेंगे और 2022 में हमारी आज़ादी के 75 वर्ष पूरे हो जायेंगे।