इस चुनाव ने दिलों को जोड़ने का काम किया : नरेन्द्र मोदी

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मैं हृदय से आप सबका आभार व्यक्त करता हूं। भाजपा ने संसदीय दल के नेता के रूप में सर्वसम्मति से मुझे चुना। एनडीए के भी सांसदों और दलों ने इसका समर्थन किया। इसके लिए मैं आपका हृदय से बहुत-बहुत आभारी हूं। आज नए भारत के संकल्प को एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाने के लिए यहां से एक नई यात्रा को आरंभ करने वाले हैं। विशेष रूप से जो पहली बार चुनकर आए हैं, वे विशेष अभिनंदन के अधिकारी हैं। इसलिए मैं उनको अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं।

जनता ने हमें सेवाभाव के कारण स्वीकार किया : भारत में तो चुनाव अपने आप में उत्सव था। मतदान भी अनेक रंगों से भरा हुआ था, लेकिन विजयोत्सव उससे भी शानदार था। प्रचंड जनादेश जिम्मेदारियों को भी बहुत बढ़ा देता है। जिम्मेदारियों को हम सहर्ष स्वीकार करने के लिए निकले हुए लोग हैं। उसके लिए नई ऊर्जा, नई उमंग के साथ हमें आगे बढ़ना है। भारत का लोकतंत्र, भारत का मतदाता, भारत का नागरिक उसका जो नीर-क्षीर विवेक है, शायद किसी मापदंड से उसे मापा नहीं जा सकता है। सत्ता का रुतबा भारत के मतदाता को कभी प्रभावित नहीं करता है। सत्ता-भाव न भारत का मतदाता स्वीकार करता है न पचा पाता है। इस देश की विशेषता है कि बड़े से बड़े सत्ता सामर्थ्य के सामने भी सेवाभाव को वो सिर झुकाकर स्वीकार करता है। हम चाहे भाजपा या एनडीए के प्रतिनिधि बनकर आए हों, जनता ने हमें स्वीकार किया है सेवाभाव के कारण।

वरिष्ठ साथियों ने दिया आशीर्वाद : रामकृष्ण परमहंस का एक ही संदेश रहता था कि जीव में ही शिव है, ये सेवा भाव हमारे लिए और देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए इससे बड़ा कोई मार्ग नहीं हो सकता। आज एनडीए के भी सभी वरिष्ठ साथियों ने आशीर्वाद दिया है। आप सबने मुझे नेता के रूप में चुना है। मैं इसे एक व्यवस्था का हिस्सा मानता हूं। मैं भी बिल्कुल आप में से एक हूं, आपके बराबर हूं। हमें कंधे से कंधा मिलाकर चलना है। एनडीए की यही तो ताकत है, विशेषता है।

सामाजिक एकता का आंदोलन बना यह चुनाव : आम तौर पर चुनाव बांट देता है, दूरियां पैदा करता है, दीवार बना देता है, खाई पैदा कर देता है, लेकिन 2019 के चुनाव ने दीवारों को तोड़ने का काम किया है। दिलों को जोड़ने का काम किया है। 2019 का चुनाव सामाजिक एकता का आंदोलन बन गया, समता भी, ममता भी, समभाव भी, ममभाव भी। इस वातावरण ने इस चुनाव को एक नई ऊंचाई दी। भारत के लोकतांत्रिक जीवन में, चुनावी परंपरा में देश की जनता ने एक नए युग का प्रारंभ किया है। हम सब उसके साक्षी हैं। 2014 से 2019 तक देश हमारे साथ चला है, कभी-कभी हमसे दो कदम आगे चला है, इस दौरान देश ने हमारे साथ भागीदारी की है। सरकार | को हमने जितना चलाया है, उससे ज्यादा सवा सौ करोड़ देशवासियों ने किया है। विश्वास की डोर जब मजबूत होती है, तो सत्ता समर्थक लहर पैदा होती है। यह लहर विश्वास की डोर से बंधी है। ये चुनाव पॉजिटिव वोट का चुनाव है। फिर से सरकार को लाना है, काम देना है, जिम्मेवारी देनी है। इस सकारात्मक सोच ने इतना बड़ा जनादेश दिया है।

देश परिश्रम की पूजा करता है : हिंदुस्तान के मतदाता में जो नीर-क्षीर विवेक है, उसकी ताकत देखिए। परिश्रम की अगर पराकाष्ठा है और ईमानदारी पर रत्ती भर भी संशय न हो तो देश उसके साथ चल पड़ता है। ये देश परिश्रम की पूजा करता है, ये देश ईमान को सिर पर बैठाता है। यही इस देश की पवित्रता है। जनता ने हमें इतना बड़ा जनादेश दिया है। स्वाभाविक है कि सीना चौड़ा हो जाता है, माथा ऊंचा हो जाता है। जनप्रतिनिधि के लिए ये दायित्व होता है, उसके लिए कोई भेदरेखा नहीं हो सकती है। जो हमारे साथ थे, हम उनके लिए भी हैं और जो भविष्य में हमारे साथ चलने वाले हैं, हम उनके लिए भी हैं। जनप्रतिनिधियों से मेरा आग्रह रहेगा कि मानवीय संवेदनाओं के साथ अब हमारा कोई पराया नहीं रह सकता है। इसकी ताकत बड़ी होती है। दिलों को जीतने की कोशिश करेंगे।

ट्रंप को जितने वोट मिले थे, उतने हमारे बढ़े : 2014 में भाजपा को जितने वोट मिले और 2019 में जो वोट मिले, उनमें जो वृद्धि हुई, यह वृद्धि करीब-करीब 25 प्रतिशत है। हालांकि ग्लोबल परिदृश्य में देखें तो अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जितने वोट मिले थे, उतना हमारा इंक्रीमेंट है। मेरे जीवन के कई पड़ाव है, इसलिए मैं इन चीजों को भली-भांति समझता हूं, मैंने इतने चुनाव देखे, हार-जीत सब देखे, लेकिन मैं कह सकता हूं कि मेरे जीवन में 2019 का चुनाव एक प्रकार की तीर्थयात्रा थी। जो शब्दों में कहते हैं कि जनता-जनार्दन ईश्वर का रूप होती है, इसे मैंने चुनाव के दौरान अनुभव किया है।
माताओं-बहनों ने कमाल कर दिया : आजाद के बाद पहली बार इतने प्रतिशत वोटिंग हुई। इस बार माताओं-बहनों ने कमाल कर दिया है। इस बार महिला सांसदों का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। आजादी के बाद संसद में इतनी महिला सांसदों के बैठने की पहली घटना होगी। भारत की आजादी के बाद संसद में सबसे ज्यादा महिला सांसद चुनकर आई हैं, ये अपने-आप में बहुत बड़ा काम हमारी मातृशक्ति के लिए हुआ है।

एनडीए के पास एनर्जी और सिनर्जी दोनों हैं : देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए गठबंधन की राजनीति को हमें अपने आदर्शों और सिद्धांतों का हिस्सा बनाना ही पड़ेगा। मैं भारत का जो भावी चित्र देख रहा हूं। इन शक्तियों को जोड़ने के पीछे मेरी सीधी-सीधी समझ है। रीजनल एस्पिरेशन और नेशनल एंबिशन की दो पटरियों पर देश विकास की गति को पकड़ता है। नेशनल एंबिशन यानी एनए प्लस रीजनल एस्पिरेशन यानी आर मिलकर ‘नारा’ बनता है और इसी को लेकर हमें आगे बढ़ना है। एनडीए के पास दो महत्वपूर्ण चीजें हैं। एक है एनर्जी और दूसरा है सिनर्जी। ये एनर्जी और सिनर्जी एक ऐसा केमिकल है, जिसको लेकर हम सशक्त और सामर्थ्यवान हुए हैं।

छपास और दिखास से बचना चाहिए : छपास और दिखास से बचना चाहिए। इससे अगर बचकर चलते हैं तो बहुत कुछ बचा सकते हैं। हमारा मोह हमें संकट में डालता है। इसलिए हमारे नए और पुराने साथी इन चीजों से बचें क्योंकि अब देश माफ नहीं करेगा। हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारियां हैं। हमें इन्हें निभाना हैं। वाणी से, बर्ताव से, आचार से, विचार से हमें अपने आपको बदलना होगा। हम याद रखें कि लाखों कार्यकर्ताओं की वजह से हमें ये अवसर मिला है। इसलिए हमारे भीतर का कार्यकर्ता जिंदा रहना चाहिए। थोड़ा सा भी अहंकार अपने आसपास के लोगों को दूर कर देता है। अहंकार को जितना हम दूर कर सकते हैं, करना चाहिए।

अखबार के पन्नों से मंत्री नहीं बनते : हमें कोई वर्ग-विशेष, जाति, मोदी नहीं जिताता है। हमें सिर्फ और सिर्फ इस देश की जनता जिताती है। हम जो कुछ भी हैं, मोदी के कारण नहीं, जनता-जनार्दन के कारण हैं। हमें जनादेश मिला है, हमें उस जन का सम्मान करना है और उसके आदेश का पालन करना है। इस देश में बहुत ऐसे नरेन्द्र मोदी पैदा हो गए हैं, जिन्होंने मंत्रिमंडल बना दिया है। जो भी जीतकर आए हैं, सब मेरे हैं। दायित्व कुछ ही लोगों को दे सकते हैं। सरकार और कोई बनाने वाला नहीं है, जिसकी जिम्मेदारी है वही बनाने वाले हैं। अखबार के पन्नों से न मंत्री बनते हैं और न मंत्रिपरिषद जाते हैं।
ये सरकार गरीबों ने बनाई : वीआइपी कल्चर से देश को नफरत है, एयरपोर्ट पर चेकिंग होती है तो हमें बुरा नहीं लगना चाहिए। लालबत्ती को हटाने में कोई पैसा नहीं लगा, लेकिन इसे हटाने से देश में अच्छा मैसेज गया। महात्मा गांधी का सरल रास्ता है कि आप कोई भी निर्णय करें और आप उलझन में हों तो पल भर में आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति को याद कर सोचें कि आप जो कर रहे हैं, वह उसका भला करेगा या नहीं। 2014 में मैंने कहा था, मेरी सरकार इस देश के दलित, पीड़ित, शोषित, आदिवासी को समर्पित है। मैं आज फिर से कहना चाहता हूं कि पांच साल तक उस मूलभूत बात से अपने आपको ओझल नहीं होने दिया। 2014 से 2019 सकार हमने प्रमुख रूप से गरीबों के लिए चलाई है और आज मैं ये गर्व से कह सकता हूं कि ये सरकार गरीबों ने बनाई। गरीबों के साथ जो छल चल रहा था, उस छल में हमने छेद किया है और सीधे गरीब के पास पहुंचे हैं। देश पर इस गरीबी को जो टैग लगा है। उससे देश को मुक्त करना है। गरीबों के हक के लिए हमें जीना-जूझना है, अपना जीवन खपाना है। संविधान को साक्षी मानकर हम संकल्प लें कि देश के सभी वर्गों को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। पंथ-जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

हम बहुत कुछ करने के लिए आए हैं : हम सबको मिलकर के 21वीं सदी में हिंदुस्तान को ऊंचाइयों पर ले जाना है। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास ये हमारा मंत्र है। स्वच्छता अगर जन आंदोलन बन सकता है तो समृद्ध भारत भी जन आंदोलन बन सकता है। हम कुछ करने के लिए नहीं, बहुत कुछ करने के लिए आए हैं। 21वीं सदी भारत की सदी बने, ये हम लोगों का दायित्व है। जिस समाज में एस्पिरेशन नहीं होता है, वो समाज कुछ भी नहीं कर सकता है। विश्व एक ऐसे त्रिकोण पर खड़ा है, जहां विश्व को भारत से बहुत सारी अपेक्षाएं हैं। आप सबने मुझे दायित्व दिया है, लेकिन ये कोई कांटैक्ट नहीं है, ये हमारी संयुक्त जिम्मेदारी है। चोट झेलने की जिम्मेवारी मेरी है, सफलता का हक आपका है, भारत का संविधान हमारे लिए सर्वोपरि है। (दैनिक जागरण से साभार)