बनेगी विकासमाला

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देश और दुनिया के अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि ‘‘भारतमाला परियोजना’ भारतीय अर्थव्यवस्था की नई जीवन रेखा बनने जा रही है।

जयंतीलाल भंडारी

हाल ही में केंद्र सरकार ने देश के राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाईवे) के विकास से संबंधित महत्त्वाकांक्षी ‘‘भारतमाला प्रोजेक्ट’ के तहत 83 हजार किलोमीटर की राजमार्ग परियोजनाओं के निर्माण को मंजूरी दी है। इन राजमार्ग का निर्माण वर्ष 2022 तक पूरा होगा और इन पर 6.92 लाख करोड़ रुपये का व्यय निर्धारित है। “भारतमाला परियोजना” के लिए 70 फीसद हिस्सा केंद्र सरकार खर्च करेगी और 30 फीसद हिस्सा निजी भागीदारी से आएगा। “भारतमाला परियोजना” से बड़े पैमाने पर रोजगार के नये अवसर निर्मित होंगे। अनुमान है कि इस योजना से अगले पांच वर्षो में लोगों को 14.2 करोड़ कार्य दिवस का रोजगार मिल सकेगा। गौरतलब है कि ‘‘भारतमाला परियोजना’ देश में ‘‘स्वर्णिम चतुर्भुज योजना’ के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी राजमार्ग विकास परियोजना है।

देश के जिन राज्यों की सीमाएं इस परियोजना की परिधि में आएगी, उनमें गुजरात, राजस्थान, पंजाब, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, सिक्किम, असम, अरुणाचल, मणिपुर और मिजोरम में भारत-म्यांमार सीमा शामिल है। “भारतमाला परियोजना” के तहत कुल 44 आर्थिक गलियारों की पहचान की गई है। 26,200 किलोमीटर लंबे आर्थिक गलियारों को चिह्नित किया गया है। इसमें से 9000 किलोमीटर आर्थिक गलियारे का विकास पहले चरण में होगा। गलियारे के तहत बेंगलुरू-मेंगलुरू, मुंबई-कोचीन-कन्याकुमारी, हैदराबाद-पणजी, संबलपुर-रांची के मार्ग शामिल हैं।

निश्चित रूप से अच्छी सड़कें किसी भी राष्ट्र की जीवनरेखा मानी जाती हैं। जहां आर्थिक विकास के लिए यह महत्त्वपूर्ण है, वहीं सामाजिक विकास का भी यह अहम हिस्सा है। देश में यात्रियों की कुल संख्या में से 80 प्रतिशत से ज्यादा सड़क परिवहन से यात्रा करते हैं। देश के विकास के लिए उचित सड़क नेटवर्क की आवश्यकता को बहुत पहले ही समझ लिया गया था। 1943 में बनाई गई नागपुर योजना के नाम से विख्यात, पहली सड़क विकास योजना में पहली बार देश में सड़कों की जरूरत को दीर्घकालिक आधार पर देखा गया और पहली बार ही सड़क प्रणाली को कार्यात्मक अनुक्रम में वर्गीकृत किया गया, जिनमें राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच), राज्य राजमार्ग (एसएच), प्रमुख जिला सड़कें (एमडीआर) अन्य जिला सड़कें (अडीआर) और ग्राम सड़कें (वीआर) शामिल थीं। राष्ट्रीय राजमार्ग के विकास की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होती है।

यद्यपि देश में लगभग 46.90 लाख किलोमीटर लंबाई की सड़कों का विशाल नेटवर्क है, लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग की कुल लंबाई 82,803 किलोमीटर ही है, जो सड़कों के कुल नेटवर्क के दो प्रतिशत से कम है। राष्ट्रीय राजमार्ग के विकास के लिए देश में ‘‘राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम’ की 1998 में शुरुआत की गई थी। इसके तहत ‘‘स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना’ के नेटवर्क से चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को जोड़ा गया है। यह भारत में सबसे बड़ी राजमार्ग परियोजना है और दुनिया में पांचवां क्रम रखती है। हालांकि इसे पूरा होने में काफी वक्त लग गया। ऐसे में यह शुभ संकेत है कि केंद्र सरकार ने “भारतमाला योजना” को “स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना” में हुए विलंब के परिदृश्य से बचाते हुए समय पर पूरा करने का लक्ष्य सुनिश्चित किया है।

सरकार को उम्मीद है कि इस परियोजना पर निजी क्षेत्र की ओर से जबरदस्त समर्थन मिलेगा। इस परियोजना के तहत सभी परियोजनाओं की तकनीकी, वित्तीय, आर्थिक मंजूरी एनएचएआई और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के तहत आने वाली परियोजना मंजूरी और तकनीकी जांच की अधिकार प्राप्त समिति करेगी। परियोजनाओं की जांच के लिए दिशा-निर्देश पहले ही तैयार कर लिये गए हैं। निसंदेह “भारतमाला परियोजना” से मौजूदा राजमार्ग बुनियादी ढांचे के अंतर को पाटने में मदद मिलेगी, जिससे यात्रियों व माल की आवाजाही सुगम हो जाएगी।

“भारतमाला परियोजना” से आर्थिक गलियारों में यातायात तेज होगा। इससे ग्रामीण इलाकों में भी सड़कों के विकास को गति मिलेगी। राजमार्ग के तेजी से विकास से निजी क्षेत्र के लिए अवसर बढ़ेंगे। इस योजना को लागू किए जाने से भारत में विनिर्माण क्षेत्र में बहुप्रतीक्षित लागत प्रतिस्पर्धात्मकता आएगी, क्योंकि इससे लॉजिस्टिक लागत में उल्लेखनीय कमी आएगी। इसके साथ ही प्रमुख शहरों के बीच तय किए जाने वाले समय में भी काफी कमी आएगी। इस परियोजना से छोटे शहरों में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी। ग्रामीण इलाकों से उपज की बेहतर परिवहन व्यवस्था के कारण किसानों के लिए आर्थिक सम्पन्नता और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। चूंकि भारत दुनिया में फल व सब्जी का दूसरा सबसे बड़ा देश है, लेकिन अच्छी सड़कों व भंडारण की कमी के कारण करीब 35 फीसद फल व सब्जी खराब हो जाती है। ऐसे में भारतमाला परियोजना से फल व सब्जी उत्पादों का अच्छा इस्तेमाल होगा और देश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को भी प्रोत्साहन मिलेगा। इस परियोजना से पिछड़े और आदिवासी इलाकों में आर्थिक गतिविधियां तेज होगी। इस परियोजना से सीमा वाले इलाकों, तटीय इलाकों और पड़ोसी देशों के लिए कारोबारी मार्ग संबंधी लाभ भी बढ़ जाएंगे।

हम आशा करें कि केंद्र सरकार शुरुआत से ही भारतमाला परियोजना के क्रियान्वयन के हर कदम पर उपयुक्त निगरानी रखेगी। साथ ही इस परियोजना के लिए समय प्रबंधन और लागत प्रबंधन के सिद्धांतों का पालन किया जाएगा। यह भी उपयुक्त होगा कि सरकार द्वारा भारतमाला परियोजना के तहत समय से पहले ठेके पूरा करने वाले ठेकेदारों को कुल परियोजना लागत का 10 फीसद तक बोनस दिया जाना सुनिश्चित किए जाने से सड़क निर्माण को रफ्तार मिलेगी। ऐसा किए जाने पर निश्चित रूप से भारतमाला परियोजना देश के ढांचागत विकास में मील का पत्थर साबित होगी। साथ ही यह परियोजना देश की विकास रेखा सिद्ध होगी और इससे अर्थव्यवस्था तेजी से गतिशील होगी।

लेखक आर्थिक विश्लेषक हैं
(राष्ट्रीय सहारा से साभार)