पूंजीपतियों का कर्ज माफ करने की अफवाह

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अरुण जेटली 

पूर्ववर्ती सरकार ने ऐसे बकाएदारों के सम्बंध में कड़े फैसले लेने की बजाय बैंकों द्वारा कर्ज वर्गीकरण में राहत देते हुए ऐसे बकाएदारों को नॉन-एनपीए खाताधारक बनाए रखा गया। इससे इन कर्जों का पुनर्गठन हो गया और बैंकों का नुकसान छिपा रह गया। बैंक ऐसे कर्जदारों को लगातार कर्ज देते रहे और यह प्रक्रिया चलती रही। वर्तमान सरकार ने इस गठजोड़ को पहचाना और बकाएदारों के लिए कड़े फैसले लिए।

छले कुछ दिनों से बैंकों द्वारा पूंजीपतियों का कर्ज माफ किये जाने की अफवाह फैलाई जा रही है। अब समय आ गया है कि देश को इस सम्बंध में सही तथ्यों का पता चलना चाहिए। साल 2008 से 2014 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बेहिसाब पैसा कर्ज के रूप में कई उद्योगों को बांटा। जनता को उन अफवाह फैलाने वालों से पूछना चाहिए कि किसके कहने पर या किसके दबाव में इतना कर्ज बांटा गया। उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि जब इन कर्ज लेने वालों ने अपने कर्ज और ब्याज के भुगतान में देरी की तो उस समय की सरकार ने क्या कदम उठाए।

उस समय की सरकार ने ऐसे बकाएदारों के सम्बंध में कड़े फैसले लेने की बजाय बैंकों द्वारा कर्ज वर्गीकरण में राहत देते हुए ऐसे बकाएदारों को नॉन-एनपीए खाताधारक बनाए रखा गया। इससे इन कर्जों का पुनर्गठन हो गया और बैंकों का नुकसान छिपा रह गया। बैंक ऐसे कर्जदारों को लगातार कर्ज देते रहे और यह प्रक्रिया चलती रही। वर्तमान सरकार ने इस गठजोड़ को पहचाना और बकाएदारों के लिए कड़े फैसले लिए। इनसोल्वेन्सी एंड बैंकरप्टसी कोड़ लागू किया गया और इसमें संशोधन करते हुए यह निर्णय लिया गया कि जिन कम्पनियों का पैसा बैंकों को वापस नहीं किया गया, उनसे सम्बंधित देनदारों को ऐसी कंपनियों के कारोबार में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। साथ ही बैंकों को आवश्यक पूंजी भी मुहैया कराई गई, ताकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक मज़बूत हो सकें और देश के विकास में अपना योगदान दे सकें। बैंकों को पूंजी देने के पीछे कारण यह था कि ये बैंक मजबूर नहीं मज़बूत बन सकें। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को इससे पहले भी पूंजी मुहैया कराई गई हैं। 2010-11 से 2013-14 के दौरान भी सरकार ने पुनर्पूंजीकरण के लिए बैंकों को 44,000 करोड़ रुपए दिए थे। क्या वह भी पूंजीपतियों के कर्ज माफ करने के लिए थे?

आक्रामक उधार की विरासतः

2008 से 2014 के बीच आक्रामक उधार की अवधि के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के सकल अग्रिम लगभग 34,00,000 करोड़ रुपये बढ़े थे। इन पर भुगतान नियमित रूप से नहीं हो रहा था, इसके बावजूद बैंकों ने ऋण वर्गीकरण में राहत देते हुए बकाएदारों को नॉन-एनपीए खाताधारक बनाए रखा। इसके द्वारा बैंकों को हुए नुकसान और उनकी अनिश्चित स्थिति को दबाकर रखा गया।

एनपीए की पारदर्शी और वास्तविक पहचान करना:

पूर्ण रूप से प्रावधानों के अनुरूप और सही बैलेंसशीट्स के लिए 2015 में संपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा की गई थी, जिसमें बड़ी संख्या में एनपीए का खुलासा हुआ। एनपीए की सही पहचान होने से सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों की एनपीए रकम मार्च 2015 के 2,78,000 करोड़ से बढ़कर जून 2017 में 7,33,000 करोड़ हो गई। इसका मतलब है कि संपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा के तहत गहन जांच में करीब 4,54,466 करोड़ रुपये के ऐसे कर्ज का पता चला, जो असल में एनपीए की श्रेणी में रखे जाने चाहिए थे और जिन्हें दबाकर रखा गया था।

अपेक्षित नुकसान के लिए प्रावधान:

पहले पुनर्गठित कर्जों के लिए उपलब्ध राहत के तहत लंबित ऋणों से होने वाले संभावित नुकसान के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं बनाए गए थे। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने सफाई और एनपीए की पहचान करने की पहल की और अपेक्षित नुकसान के लिए अग्रिम प्रावधान बनाया। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 तक 1,80,000 करोड़ रुपये पूंजी की परिकल्पना की है। इसी के आधार पर सरकार ने 70,000 करोड़ रुपए उपलब्ध कराए हैं। बड़ी संख्या में एनपीए और परिणामपरक प्रावधानों की जरूरत के बावजूद इंद्रधनुष के परिणाम स्वरूप सार्वजनिक बैंक बेसल III मानदंडों का पालन करने में सफल रहे। 2013-14 और वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही के बीच अपेक्षित नुकसान के लिए 3,79,080 करोड़ रुपये के प्रावधान किये गए, जबकि उससे पहले के 10 सालों में 1,96,937 करोड़ रुपये के ही प्रावधान हुए थे।

कोई कर्जमाफी नहीं:

सरकार ने किसी भी बड़े एनपीए बकाएदार का कर्ज माफ नहीं किया है। इसके उलट, सरकार द्वारा लाए गए नए इनसोल्वेन्सी एंड बैंकरप्टसी कोड़ के तहत, 1,75,000 करोड़ रूपए के एनपीए के मामलों में 12 बड़े बकाएदारों से 6 से 9 महीनों में समय पर रिकवरी के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में मामले दर्ज कराए गए हैं। इन बड़े बकाएदारों की संपत्ति से एनपीए बकाया की रिकवरी करने के लिए चल रहे मामले अलग-अलग चरणों में हैं।

जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों पर शिकंजा:

बेईमान और अवांछनीय व्यक्तियों द्वारा कानूनी प्रक्रिया के दुरूपयोग को रोकने के लिए, एक अध्यादेश के जरिये, सरकार ने एनपीए खातों से जुड़े व्यक्तियों के एनसीएलटी में चल रही प्रक्रिया में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन कदमों के द्वारा, देश में पहली बार, सरकार ने एक साफ और प्रभावी प्रणाली लागू की है। इसके द्वारा जानबूझकर बैंकों का कर्ज न चुकाने वाले बकाएदारों को उनके व्यवसाय के प्रबंधन और उनसे प्रभावित होने वाली समयबद्ध रिकवरी से दूर रखा जा सकेगा।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का अभूतपूर्व पूंजीकरण:

क्रेडिट ऑफ-टेक में वृद्धि और नौकरियों का निर्माण करने के उद्देश्य से सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पूंजीकरण का निर्णय लिया है। इसके तहत, चालू वर्ष में अधिकतम आवंटन के साथ, अगले दो वित्त वर्षों के भीतर 2,11,000 करोड़ रुपये की पूंजि वृद्धि प्रभावित होगी। यह पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड्स के 1,35,000 करोड़ रुपये, बजट प्रावधान के 18,139 करोड़ रुपये, पूंजी को बढ़ाने और सरकारी शेयरहोल्डिंग को कम करने के कारण बाजार से आने वाले लगभग 58,000 करोड़ रुपये के बकाया के जरिये इसका बंदोबस्त किया जाएगा। पूंजी लगाने के माध्यम से एनपीए के कारण कमजोर हुए बैंक मजबूत बनेंगे और बाजार से पर्याप्त पूंजी बढ़ाने में सक्षम होंगे। यह पूंजि प्राप्त करने के लिए बैंकों को कई सुधार करने होंगे, ताकि दोबारा ऐसी स्थितियां न आएं।

ईमानदार व्यवसायियों को ऋण:

पिछले तीन सालों में उठाए गए इन मजबूत कदमों के माध्यम से न केवल विरासत में मिली समस्याएं हल हुई हैं बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ताकत के पुनर्निमाण के लिए किए जा रहे सुधारों को भी बल मिला है। मजबूत और बड़े बैंकों के निर्माण के लिए भारतीय स्टेट बैंक के एकीकरण से शुरू हुई प्रक्रिया को यह घोषित पुनर्पूंजीकरण और आगे बढ़ाएगा। जहां ईमानदार व्यवसायी मजबूत और सुधरे हुए बैंकों से ऋण ले सकेंगे वहीं सख्त और साफ कानून तथा सरकार के चौतरफा सफाई अभियान के परिणाम स्वरूप देश में एक साफ-सुथरी प्रणाली विकसित होगी।

— लेखक केंद्रीय वित्त मंत्री हैं