‘बंगाल’ हिंसा, बूथ-कैप्चरिंग और उत्पीड़न का शिकार

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डाॅ. अनिर्बान गांगुली 

श्चिम बंगाल में हाल ही में संपन्न हुए स्थानीय निकाय चुनावों में हिंसा, बूथ-कैप्चरिंग और आम मतदाताओं सहित विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं को डराने एवं धमकाने की घटनाओं को देखा गया। टीएमसी की हमला करने और व्यवधान की रणनीति का खामियाजा सबसे ज्यादा भाजपा कार्यकर्ताओं एवं उसके समर्थकों ने भुगता है। अदालतों में भाजपा की यह दलील कि नगर निगम चुनाव सीएपीएफ की निगरानी में कराए जाएं, को नकार दिया गया।

न्यायालयों ने राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) में यह कहते हुए अपना विश्वास व्यक्त किया था कि स्वतंत्र, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से स्थानीय चुनाव कराना संविधान द्वारा प्रदत्त एसईसी की जिम्मेदारी है और इसलिए इसे अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। अदालतों को दिया गया एसईसी का आश्वासन महज एक दिखावा था। चुनाव कराने में राज्य चुनाव आयुक्त का पिछला रिकॉर्ड बेहद निराशाजनक रहा है और इस बार भी चुनावों को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराने के लिए एसईसी की संवैधानिक शक्तियों को लागू करने में वह अक्षम और अनिच्छुक नजर आए।

इस बार भी उनका प्रदर्शन कुछ अलग नहीं था। वह पूरी तरह से अक्षम नजर आये और राज्य चुनाव आयोग को पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी के दबाव में काम करते हुए देखा गया। एसईसी को बार-बार इस बात से अवगत करवाया गया कि भाजपा उम्मीदवारों को परेशान किया जा रहा है, प्रचार से रोका जा रहा है, उनके पोस्टर और पार्टी के झंडे को टीएमसी की हिंसक ब्रिगेड नष्ट किया जा रहा है, लेकिन इन सभी शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया गया। सत्ताधारी दल के दबाव में एसईसी ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की और स्थिति को लगातार खराब होने दिया गया। कई मामलों में टीएमसी और टीएमसी के स्थानीय नेताओं ने भाजपा उम्मीदवारों पर अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए दबाव डाला और उन्हें इसके लिए मजबूर किया गया। इसलिए, कई स्थानीय निकायों में टीएमसी को बिना किसी विरोध के सफलता हासिल हुई।

मतदान से एक दिन पूर्व टीएमसी ने राज्य भर में अपनी मशीनरी का उपयोग करते हुए अपने सशस्त्र गुंडों को तैनात कर दिया। इन दस्तों को विभिन्न इलाके में देखा गया, लेकिन सूचना दिये जाने के बाद भी पुलिस मूकदर्शक बनी रही और इसको लेकर कोई कार्रवाई नहीं की। इन असामाजिक तत्वों ने राज्य भर में कई वारदातों को अंजाम दिया, जैसाकि कोन्नगर, हुगली में भाजपा की वरिष्ठ नेता कृष्णा भट्टाचार्य के मामले में देखा गया। भट्टाचार्य को चुनाव प्रचार के अंतिम दिन घर लौटते समय इन असामाजिक तत्वों द्वारा बुरी तरह से पीटा गया। यह हमले विशेष तौर पर सक्रिय एवं लोकप्रिय भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ अंजाम दिये गये और इस तरह के बेहद हिंसक राजनीतिक माहौल में चुनावों को संपन्न करवाया गया।

मतदान के दिन कई लोगों को मतदान केंद्र पहुंचने पर पता चला कि उनका वोट पहले ही डाला जा चुका है, कुछ को वापस लौटा दिया गया और अन्य बिना मतदान किये वापस जाने को मजबूर थे। यह हालात उस वक्त देखने को मिले जब टीएमसी के सशस्त्र गुंडों ने मतदान केंद्रों को अपने कब्जे में लेना आरंभ किया। इस दौरान अन्य दलों के बूथ एजेंटों पर हमला किया गया और मतदान अधिकारियों को भी केंद्रों से बाहर निकाल दिया गया। भाजपा बूथ एजेंटों को बूथों से दूर कर दिया गया। टीएमसी का संरक्षण प्राप्त इन बाहरी उपद्रवी तत्वों ने सभी बूथों का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था। ये गुंडे कभी हवा में बंदूक लहराते और कभी फायरिंग करते भी नजर आये। वास्तविकता यह है कि मतदान केंद्रों के सामने कोई कतार नहीं थी और फिर भी एसईसी ने दावा किया कि इन चुनावों में अस्सी प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ और ‘कुल मिलाकर’ मतदान शांतिपूर्ण और व्यवस्थित रहा।

ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हिमायती होने का दिखावा तो किया, लेकिन इन प्रक्रियाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज किया और पश्चिम बंगाल में अब तक के सबसे अधिक हिंसा स्थानीय निकाय चुनावों में से एक को संपन्न करवाया। पश्चिम बंगाल नगर निकाय चुनाव दो पड़ोसी राज्यों— असम और त्रिपुरा में हुए स्थानीय निकाय चुनावों से बिल्कुल विपरीत थे, जो पूरी तरह से शांतिपूर्ण थे। यह स्पष्ट है कि केवल भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारें ही लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की रक्षा कर सकती हैं और इसकी भावना को संरक्षित करने के साथ संवैधानिक ढांचे की रक्षा भी कर सकती हैं। वाम मोर्चा और और अब टीएमसी सरकारों के शासन ने पश्चिम बंगाल के लोकतंत्रिक ढांचे पर बार-बार अघात करने का काम किया है। ममता बनर्जी ने जनता के बीच से उठने वाली लोकतांत्रिक आवाज को बार-बार दबाने का काम किया है, उन्होंने बार-बार जनता को उनके अधिकारों का उपयोग करने से रोका है और हाल ही में संपन्न स्थानीय निकायों के चुनाव इसका नवीनतम उदाहरण है। यह चुनावी प्रक्रिया उसकी असहिष्णुता को दर्शाती है।

इन हिंसक घटनाओं पर कोई खेद व्यक्त करने के बजाय ममता बनर्जी ने जोर देकर कहा कि यह चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हुए और यह आम जनता की राय को दर्शाते हैं। इन चुनावों के परिमाण जब आये तो यह स्पष्ट हो गया था कि जनादेश लोगों का नहीं था, बल्कि टीएमसी की दादागिरी का परिणाम थे। जो धर्मनिरपेक्ष उदारवादी श्री नरेन्द्र मोदी के शासन में भारत के ‘बिगड़ते’ लोकतांत्रिक मूल्यों जैसी काल्पनीक बातों को लेकर चिंता जाहिर करते है, वही ममता बनर्जी द्वारा लोकतंत्र की हत्या पर मौन बैठे हैं। शायद ही किसी अखबार का संपादकीय इसको लेकर लिखा गया है, ऐसे ही बहुत कम स्तंभकारों ने इस घटना का जिक्र अपनी लेखनी में किया और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि पश्चिम बंगाल में मुख्यधारा के मीडिया ने भी इन घटनाक्रम को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए इससे ममता बनर्जी में लोगों के विश्वास की ‘जीत’ बताया है।

हाल ही में बीरभूम जिले में रामपुरहाट में सामूहिक हत्याकंड हुआ, जिसमें टीएमसी के दो गुटों ने एक-दूसरे पर हमला किया। इस घटना में महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया और स्थानीय लोगों के घरों को आग के हवाले कर दिया गया, जिसमें उनकी निर्मम हत्या हुई। इस घटना ने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस दु:खद घटना पर चिंता व्यक्त की और जनता को ऐसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने वालों को नहीं बख्शने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि कैसे एक सप्ताह से अधिक समय के दौरान पश्चिम बंगाल में 26 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। इन घटनाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों की भी हत्या की गयी, जो यह दर्शाता है कि तीसरी बार जीत हासिल करने के बाद टीएमसी अहंकार से भरी हुई है। इन घटनाओं से स्पष्ट है कि राज्य में कानून लागू करने वाली एजेंसियों को भी निष्प्रभावी कर दिया गया है। ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के नेताओं और उनके सशस्त्र और हिंसक गुटों पर लगाम लगाने का कोई प्रयास नहीं किया है।

यह पश्चिम बंगाल को भय और हिंसा की गिरफ्त में रखने के लिए उसकी रणनीति का हिस्सा है, जिससे स्थानीय लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं और इच्छाशक्ति को दबाकर उन पर एकछत्र शासन किया जा सके। रामपुरहाट नरसंहार हाल की राजनीतिक हत्याओं के इतिहास में से सबसे क्रूर घटना है।
यह स्पष्ट होता जा रहा है कि भारत का लोकतांत्रिक वर्तमान और भविष्य भाजपा के पास ही सुरक्षित है।

भाजपा द्वारा शासित प्रत्येक राज्य ने एक नया शासन प्रतिमान और ढांचा पेश किया है। सुशासन, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना, जमीनी स्तर पर अधिक से अधिक लोकतांत्रिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पहचान बन गया है। यह एक बढ़ती हुई वैश्विक स्वीकृति है कि भारत सभी मानकों पर बदल रहा है और प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में विश्व मंच पर एक प्रमुख लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। भाजपा के राजनीतिक विरोधियों और उसके बौद्धिक सहयोगियों के पास इसका मुकाबला करने के लिए कोई मॉडल, कोई योजना, कोई आख्यान नहीं है। उनका एकमात्र कार्य प्रधानमंत्री श्री मोदी को लेकर कुप्रचार करना और एक हिंसक राजनीतिक एजेंडा चलाना है जिसका उद्देश्य मतदाताओं को किसी एक तरफ वोट देने के लिए बाध्य करना है, लेकिन हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों और चार राज्यों में भाजपा की ऐतिहासिक जीत ने इस अलोकतांत्रिक और हिंसक मानसिकता को गंभीर चुनौती दी है। टीएमसी की राजनीति और लोकतंत्र को लेकर उसके बनावटी चेहरे का पर्दाफाश हो चुका है। उम्मीद है कि समय के साथ पश्चिम बंगाल के लोग भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के ‘नए भारत’ के दृष्टिकोण के लिए अपनी वास्तविक लोकतांत्रिक पसंद और वरीयता का प्रयोग करने में सक्षम होंगे।

             (लेखक सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, भाजपा निदेशक, एसपीएमआरएफ हैं)