बुद्ध की चेतना शाश्वत है : नरेन्द्र मोदी

| Published on:

विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन

अगर दुनिया ने बुद्ध की शिक्षाओं का पालन किया होता,
तो उसे जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना नहीं करना पड़ता

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 20 अप्रैल को नई दिल्ली स्थित होटल अशोक में विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने फोटो प्रदर्शनी का अवलोकन किया और बुद्ध प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए। उन्होंने उन्नीस प्रतिष्ठित भिक्षुओं को भिक्षु वस्त्र (चीवर दान) भी भेंट किया।
सभा को संबोधित करते हुए श्री मोदी ने विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में दुनिया के विभिन्न हिस्से से आए सभी लोगों का स्वागत किया। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि ‘अतिथि देवो भव’ यानी ‘मेहमान भगवान के समान होते हैं’ की भावना, बुद्ध की इस भूमि की परंपरा है और बुद्ध के आदर्शों के अनुरूप जीवन जीने वाले इतने सारे विभूतियों की उपस्थिति हमें स्वयं बुद्ध के हमारे आसपास होने का अनुभव कराती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि बुद्ध व्यक्ति से आगे बढ़कर, एक बोध हैं।

श्री मोदी ने कहा कि बुद्ध एक अनुभूति हैं जो व्यक्ति से आगे बढ़कर है, वे एक सोच हैं जो स्वरूप से आगे बढ़कर है और बुद्ध चित्रण से आगे बढ़कर एक चेतना हैं। उन्होंने कहा कि बुद्ध की यह चेतना शाश्वत है। श्री मोदी ने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े इतने सारे लोगों की उपस्थिति बुद्ध के प्रसार का प्रतिनिधित्व करती है जो मानवता को एक सूत्र में बांधती है।

‘अतिथि देवो भव’ यानी ‘मेहमान भगवान के समान होते हैं’ की भावना, बुद्ध की इस भूमि की परंपरा है और बुद्ध के आदर्शों के अनुरूप जीवन जीने वाले इतने सारे विभूतियों की उपस्थिति हमें स्वयं बुद्ध के हमारे आसपास होने का अनुभव कराती है

उन्होंने दुनिया के कल्याण के लिए वैश्विक स्तर पर भगवान बुद्ध के करोड़ों अनुयायियों की सामूहिक इच्छा और संकल्प की ताकत को भी रेखांकित किया। इस अवसर के महत्व को रेखांकित करते हुए श्री मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि यह पहला विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन सभी देशों के प्रयासों के लिए एक प्रभावी मंच तैयार करेगा। उन्होंने इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए संस्कृति मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ को धन्यवाद दिया।

श्री मोदी ने बौद्ध धर्म के साथ अपने व्यक्तिगत जुड़ाव पर प्रकाश डाला। उनका गृहक्षेत्र वडनगर एक प्रमुख बौद्ध केन्द्र रहा है। ह्वेन त्सांग ने वडनगर का दौरा किया था। बौद्ध विरासत के साथ जुड़ाव को और गहरा करते हुए श्री मोदी ने सारनाथ के संदर्भ में काशी का जिक्र भी किया।

उन्होंने कहा कि समस्या से समाधान तक पहुंचने की यात्रा ही बुद्ध की वास्तविक यात्रा है। भगवान बुद्ध की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए श्री मोदी ने दोहराया कि उन्होंने अपने महलों के जीवन और साम्राज्य को इसलिए त्याग दिया, क्योंकि उन्हें दूसरों के जीवन का दर्द महसूस हुआ। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक सुखी विश्व के लक्ष्य को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका यह है कि स्व से निकलकर संसार और संकुचित सोच को त्यागकर समग्रता के बुद्ध के मंत्र को अपनाया जाए।

बुद्ध का मार्ग भविष्य का मार्ग और स्थिरता का मार्ग है

श्री मोदी ने कहा कि बुद्ध का मार्ग भविष्य का मार्ग और स्थिरता का मार्ग है। अगर दुनिया ने बुद्ध की शिक्षाओं का पालन किया होता, तो उसे जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना नहीं करना पड़ता। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह संकट इसलिए आया, क्योंकि कुछ देशों ने दूसरों और आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचना बंद कर दिया। यह गलती विनाशकारी अनुपात में जमा हुई। बुद्ध ने व्यक्तिगत लाभ के बारे में सोचे बिना अच्छे आचरण अपनाने का उपदेश दिया, क्योंकि ऐसा व्यवहार समग्र कल्याण की ओर ले जाता है।

अपने संबोधन का समापन करते हुए श्री मोदी ने भौतिकवाद और स्वार्थ की परिभाषाओं से बाहर आने और ‘भवतु सब मंगलन’ की भावना को आत्मसात करने की जरूरत पर जोर दिया, यानी बुद्ध को प्रतीक ही नहीं बल्कि विचार भी बनाना चाहिए।

केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी, केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री श्री किरेन रीजीजू, केन्द्रीय संस्कृति राज्यमंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल एवं श्रीमती मीनाक्षी लेखी और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव डॉ. धम्मपिया इस अवसर पर उपस्थित थे।