केरल में कम्युनिस्ट हिंसा का तांडव

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पूरा देश भली–भांति जानता है कि कम्युनिस्टों का राजनैतिक हिंसा में अटूट विश्वास रहा है। जहां भी इन्हें सत्ता प्राप्त हुई, इन्होंने अपने राजनैतिक विरोधियों का सफाया करने तथा सभी लोकतांत्रिक आवाज को दबाने में कोई कोर–कसर नहीं छोड़ी। पूरे विश्व में इनके द्वारा किये गये जनसंहारों में जहां लाखों निरपराध मारे गये, वहीं इससे भी कई गुणा अधिक लोग उजाड़ दिये गये। केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ–भाजपा कार्यकर्ताओं पर हो रही हिंसा भी कोई अपवाद नहीं है। तिरुवंतपुरम में 34 वर्षीय युवा राजेश की जघन्य हत्या से प्रमाणित होता है कि कम्युनिस्ट जब सत्ता में आते हैं, तब सरकारी मशीनरी के सहारे वे और भी अधिक हिंसक हो जाते हैं। जिस बर्बर तरीके से इस कायरतापूर्ण हत्या को अंजाम दिया गया, उससे कम्युनिस्टों की हिंसक विचारधारा का पता तो चलता ही है, साथ ही इनका भयानक चेहरा उजागर होता है। जिस क्रूरता के साथ राजेश की हत्या हुई है उसकी देश के सभी लोकतांत्रिक आवाजों को मिलकर भर्त्सना कर कम्युनिस्ट हिंसा को बेनकाब करना चाहिए।

राजेश की हत्या कम्युनिस्टों द्वारा जनता को भयाक्रांत करने के व्यापक षड्यंत्र का एक हिस्सा है। जिस निर्दयतापूर्वक यह लोमहर्षक कृत्य किया गया है, उससे स्पष्ट है कि कम्युनिस्ट जन–जन के मन में डर बिठाकर उनकी आवाज को दबाना चाहते हैं। इसी प्रकार से 12 मई 2017 को बीजू तथा 18 जनवरी 2017 को संतोष की हत्या हुई, जिससे इनके खतरनाक इरादों का पता चलता है। जैसे ही कम्युनिस्टों को केरल में सत्ता प्राप्त हुई, संघ–भाजपा के विरुद्ध इनके हमले तेज हो गये। 2016 में सुजीथ, सीके रामचंद्रन, बीनीश एवं रामीथ की हत्या राजनैतिक विरोध को नेस्तनाबूद करने के कम्युनिस्टों की मानसिकता का ही एक हिस्सा है। स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि मुख्यमंत्री तक के क्षेत्र में हत्या की जा रही है। कम्युनिस्टों को सुनियोजित तरीके से राजनैतिक विरोधियों की हत्या करने की घटनाओं को इनके नेता ही अपने भाषणों में कई बार स्वीकार कर चुके हैं। भाकपा के पूर्व सांसद एपी अब्दुल्लाकुट्टी ने बताया कि वर्तमान मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने 2008 में अपनी पार्टी की बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि किस प्रकार से राजनैतिक विरोधियों का सफाया करना चाहिए, यह बंगाल से सीखना चाहिये। उन्होंने कहा था, ‘‘वे इसे बिना एक भी बूंद खून बहाये करते हैं। उन्हें (विरोधियों को) अगवा कर गहरे गड्ढे में एक बोरी नमक के साथ दफना दिया जाता है। दुनिया को ना तो खून का, ना फोटो (हत्या) का, ना कोई खबर मिल पाती है।’’ अब्दुल्लाकुट्टी के अनुसार उस बैठक में सांसद पी. करूणाकरण एवं पी. साथीदेवी तथा कन्नूर के विधायक उपस्थित थे। इसमें अब कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि जब स्वयं पिनराई मुख्यमंत्री हैं तब विरोधियों की हत्याएं हाेंगी ही। इससे यह वास्तविकता भी सामने आती है कि भारत जैसे लोकतंत्र में भी कम्युनिस्ट हिंसक राजनीति पर अामादा हैं।

केरल की हिंसक घटनाओं तथा निरंतर हो रही जघन्य हत्याओं से पूरा देश विचलित है। ऐसा लगता है कि पूरे विश्व में अपनी दुर्दशा से कम्युनिस्ट कोई सबक नहीं ले पाये हैं। भारत में भी उन्हें पश्चिम बंगाल में हुई अपनी पराजय से सबक लेना चाहिये, जब प्रदेश की जनता ने उन्हें उनकी करनी की सजा दी।

त्रिपुरा में भी इनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई है और आने वाले चुनावों में ये हार का मुंह देखने वाले हैं। परन्तु सबसे दुर्भाग्यजनक है इन घटनाओं पर मीडिया के एक वर्ग, मानवाधिकार की दुहाई देने वाले तथा सिविल सोसाईटी का दावा रखने वाले इस विशेष वर्ग की चुप्पी। इतने वीभत्स हत्याकांड पर भी इस प्रकार की चुप्पी इस वर्ग की राजनैतिक कुंठा को उजागर करती है। अब जबकि कम्युनिस्ट देश में एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं, वे कितनी भी हिंसा करें अब उनका पतन तय है। लोकतंत्र में हिंसा के लिये कोई जगह नहीं, पर कम्युनिस्ट इस सच्चाई को समझ नहीं पाये। कम्युनिस्ट हिंसा में हुए बलिदानियों का खून व्यर्थ नहीं जायेगा, अपने कुकृत्यों का हिसाब उन्हें जनता को देना ही पड़ेगा।

 

                                                                                                                                                                                                                                                      shivshakti@kamalsandesh.org