डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी : एक शिक्षाविद्

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रत को उसके ‘स्व’ से साक्षात्कार कराने में जिन महापुरुषों ने महती भूमिका निभाई, उनमें डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी का नाम उल्लेखनीय है। उनका व्यक्तित्व‍ विराट् था। वे शिक्षाविद् थे, प्रशासक थे, समाजसेवी थे और राजनेता थे। अलग-अलग भूमिकाओं में उन्होंने अपना श्रेष्ठ योगदान किया।
सामान्य तौर पर डॉ. मुकर्जी के राजनीतिक योगदान की ही चर्चा होती है और इस पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इसलिए सद्य: प्रकाशित पुस्तक ‘डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी : एक शिक्षाविद्’ इस दिशा में महत्त्वपूर्ण है।

पुस्तक का लेखन डॉ. नंद किशोर गर्ग और नम्रता शर्मा ने संयुक्त‍ रूप से किया है। डॉ. गर्ग स्वयं राजनेता हैं और शिक्षा जगत से जुड़े हैं। वहीं नम्रता शर्मा सहायक प्राध्यापक हैं। लेखकद्वय ने डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी के शिक्षा चिंतन को सारगर्भित तरीके से प्रस्तुत किया है। यह अकादमिक पुस्तक है, जिसके लेखन में शोध और विश्लेषण का सहारा लिया गया है तथा फुटनोट का प्रयोग किया गया है।

इस पुस्तक की रचना के पीछे की मंशा जाहिर करते हुए लेखकद्वय प्रस्तावना में लिखते हैं, “डॉ. मुकर्जी के व्यक्तित्व के राजनीतिक आयाम पर बहुत कुछ लिखा गया है, परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत कुछ लिखा जाना शेष है। उनका व्यक्तित्व उनके राजनीतिक जीवन से इतर भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।”
इस पुस्तक में कुल 9 अध्याय हैं – प्रस्तावना, वंश परंपरा और विरासत, प्रारंभिक जीवन, विद्यार्थी से विचारक तक, युवा कुलपति, डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी : शिक्षा के सांप्रदायीकरण से परे, उत्कृष्ट शिक्षाविद् : डॉ. श्या‍माप्रसाद मुकर्जी, डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी के शैक्षणिक विचारों की प्रासंगिकता और उपहार; जिनके माध्यम से डॉ. श्या‍माप्रसाद मुकर्जी के शिक्षा चिंतन पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

वैसे तो इस पुस्तक में डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी के शिक्षा चिंतन के बारे में विस्तार से बताया गया है, लेकिन इसके साथ कई और मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक में यथास्थान डॉ. मुकर्जी के अनेक दुर्लभ चित्रों को भी प्रस्तुत किया गया है।

संप्रति केंद्र में भाजपानीत सरकार है। भाजपा भारतीय जनसंघ का परवर्ती संगठन हैं। गौरतलब है कि डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। सो, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह पुस्तक और अधिक प्रासंगिक है। राष्ट्रीय विचार के कार्यकर्ताओं के लिए यह पुस्तक बहुत लाभप्रद और प्रेरक सिद्ध होगी।

यह अकादमिक पुस्तक है, लेकिन भाषा सहज और सरल है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने इसे प्रकाशित किया है, इसलिए प्रिटिंग का स्तर अच्छा है।
यह पुस्तक डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी के शिक्षा चिंतन को समझने की दृष्टि से एक प्रामाणिक दस्तावेज़ है। कुल मिलाकर यह पठनीय और संग्रहणीय है। शैक्षिक जगत के अध्येताओं को तो इसे अवश्य पढ़नी चाहिए।

लेखक : डाॅ़ नंद किशोर गर्ग एवं नम्रता शर्मा
पृष्ठ : 244
मूल्य : रु. 270 (पेपरबैक)
प्रकाशक : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नेहरू भवन, 5 इंस्टीट्यूशनल एरिया, फेज-2, वसंत कुंज, नई दिल्ली-110070

डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी का शिक्षा चिंतन
-भारत के आधुिनक विद्यार्थियों को भारत के प्राचीन इितहास और सभ्यता की पुनर्याख्या करके उसे आधुनिक आवश्यकताओं से जोड़ना चाहिए।
-मातृभाषा को शिक्षण का माध्यम बनाना चािहए।
-शिक्षण संस्थानों को स्वतंत्र, स्वायत्त एवं प्रगतिशीलविचारों का अधिष्ठान बनाना, जहां सभी धर्मों, वर्णों, सम्प्रदायों, वर्गों के लोग पारस्परिक सहयोग और -सद‌्भावना के वातावरण में शिक्षा के विकास के लिए कर्तव्यबद्ध हों।

समीक्षक : संजीव कुमार सिन्हा