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कश्मीर में बड़ी पहल

तंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से यह घोषणा किए जाने के बाद कश्मीर में राजनीतिक पहल की संभावना बढ़ गई थी कि घाटी की समस्या का हल गाली और गोली से नहीं, बल्कि कश्मीरियों को गले लगाने से होगा। कुछ देर से ही सही, केंद्रीय सत्ता ने सभी पक्षों से बात करने के लिए खुफिया ब्यूरो के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को अपने प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त कर यह स्पष्ट कर दिया कि वह कश्मीर समस्या के स्थाई समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। इस प्रतिबद्धता की झलक इससे मिलती है कि दिनेश्वर शर्मा को कैबिनेट सचिव का दर्जा देने के साथ ही यह तय करने का अधिकार भी दिया गया है कि वह जिससे चाहें उससे वार्ता कर सकते हैं।
— (दैनिक जागरण, 24 अक्टूबर)

आयुर्वेद को संजीवनी

धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्थिति से जुड़ा एक और अहम सवाल उठाया। पूछा कि जो लोग आज आयुर्वेद पढ़कर निकलते हैं, क्या वे सचमुच 100 प्रतिशत इसमें आस्था रखते हैं? आम अनुभव है कि मरीज जब जल्द ठीक होने पर जोर देते हैं, तब कई मौकों पर आयुर्वेदिक चिकित्सक उन्हें एलोपैथी दवाएं दे देते हैं. दरअसल, ऐसा होने की कुछ ऐतिहासिक वजहें हैं। उनकी तरफ मोदी ने भी इशारा किया। प्राचीन भारतीय ऋषि परंपरा, आचार्यों, किसानों, देसी विज्ञान, योग, आयुर्वेद आदि का गुलामी के दौर में उपहास किया गया। प्रधानमंत्री ने ‘आयुर्वेद दिवस के मौके पर इस संस्थान को राष्ट्र को समर्पित किया। धन्वंतरि जयंती के दिन ये दिवस मनाने की शुरुआत इसी सरकार के कार्यकाल में हुई। ऐसे में आयुर्वेद विशेषज्ञ, निजी क्षेत्र और समग्र समाज अगर इस मौके का भरपूर लाभ उठाएं, तो बेशक आयुर्वेद का युग फिर से लौट सकता है।
— नई दुनिया (18 अक्टूबर)

बढ़े देश का धन

ईएमएफ प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड ने नोटबंदी और जीएसटी को ऐतिहासिक प्रयास बताते हुए कहा कि इतने बड़े सुधार के कदमों के कारण कुछ समय तक आर्थिक सुस्ती की स्थिति बनना कोई ताज्जुब की बात नहीं है। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था ज्यादा मजबूती हासिल करने की ओर बढ़ रही है। घाटा कम हुआ है और महंगाई भी नीचे बनी हुई है। इन संकेतों को अगर नीतिगत सुधारों से जोड़कर देखें तो भविष्य में वे नतीजे निकलते दिखेंगे, जिनकी उम्मीद भारत का युवा कर रहा है।
— (नवभारत टाइम्स, 17 अक्टूबर)

बढ़ती हुई मुहिम

च्छ भारत अभियान के तीन साल पूरे हो गए। इन तीन वर्षों में स्वच्छता को लेकर समाज में एक सकारात्मक माहौल बना है। सफाई देश के अजेंडे पर आ गई है। एक सोशल मीडिया साइट ‘लोकल सर्किल्स’ द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार शहरों और कस्बों के करीब आधे लोगों ने माना है कि पिछले तीन वर्षों में स्वच्छ भारत स्कीम का ठीक-ठाक असर उन्हें अपने आसपास देखने को मिला है। लोग मान रहे हैं कि चीजें एकदम से तो नहीं बदली हैं, मगर सही दिशा में जा रही हैं। भारत जैसे देश में, जहां सफाई कभी मुद्दा ही नहीं रही, इसे एक जन अभियान का रूप लेने में वक्त तो लगेगा ही। असल में हमारे अचेतन में यह भाव कहीं न कहीं बैठा रहा कि सफाई करना हमारा नहीं दूसरों का काम है। इस मानसिकता पर महात्मा गांधी ने प्रहार किया था। उन्होंने स्वच्छता को एक नैतिक जवाबदेही और एक मूल्य बताया था। पर आजादी के बाद दुर्भाग्य से महात्मा गांधी के स्वप्न को भुला दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके महत्व को स्वीकार किया है और इसे अपना एक प्रमुख अजेंडा बनाया है।
— (नवभारत टाइम्स, 2 अक्टूबर)