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समावेशी ऊर्जा

भारत के सभी गांवों तक बिजली की पहुंच हो जाना निश्चय ही एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। देश के विकास के सफर में यह मुकाम हासिल हुआ अट्ठाईस अप्रैल की शाम को, जब मणिपुर के सेनापति जिले में आने वाला लाइसंग गांव नेशनल पॉवर ग्रिड से जुड़ने वाला आखिरी गांव बना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर जहां इसे भारत की विकास यात्रा में एक ऐतिहासिक दिन कहा, वहीं गांवों तक बिजली पहुंचाने का काम करने वाली नोडल एजेंसी आरईसी यानी ग्रामीण विद्युतीकरण निगम ने एलान किया कि देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचा दी गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए एक हजार दिनों के भीतर संपूर्ण ग्राम विद्युतीकरण का वादा किया था। तब कोई 18,450 गांव ही रह गए थे जहां बिजली नहीं पहुंची थी। उन तक बिजली पहुंचाने के लिए सरकार ने दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत 75,893 करोड़ रुपए आबंटित किए। बाद में पता चला कि कोई बारह सौ गांव और भी हैं, जहां बिजली नहीं पहुंची थी। इस तरह इस योजना ने अपनी मंजिल पा ली है, और इसमें वैसी देरी या ढीलमढाल भी नहीं हुई जो कि अमूमन सारी सरकारी योजनाओं में दिखती है।

शायद प्रधानमंत्री की दिलचस्पी के कारण संबंधित महकमों ने इस योजना को लेकर एक मिशन की तरह काम किया। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि पहले हुए कामों को नजरअंदाज कर दिया जाए। जब देश आजाद हुआ तब विद्युतीकरण के दायरे में केवल पंद्रह हजार गांव थे। वर्ष 1991 तक विद्युतीकृत गांवों की संख्या 4 लाख 81 हजार से ज्यादा हो गई। सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 31 मार्च 2015 तक देश के 97 फीसद गांवों का विद्युतीकरण हो चुका था। यानी जब प्रधानमंत्री ने बिजली से वंचित गांवों तक एक हजार दिनों के भीतर बिजली पहुंचा देने का वायदा किया, तब सिर्फ तीन फीसद गांव ही रह गए थे जहां बिजली नहीं पहुंची थी। अगर राज्यों के हिसाब से देखें, तो बहुत-से राज्यों ने पहले ही संपूर्ण ग्राम विद्युतीकरण का लक्ष्य पा लिया था। लेकिन विद्युतीकरण का यह बचा-खुचा दौर काफी चुनौतियों भरा था, क्योंकि विद्युतीकृत होने से रह गए गांव काफी दूरदराज के और दुर्गम इलाकों के थे; उन तक साज-सामान और कर्मचारियों को पहुंचाना आसान नहीं था। लेकिन समग्र ग्राम विद्युतीकरण का लक्ष्य दोनों तरीकों से हासिल किया गया- नेशनल ग्रिड से जोड़ कर भी, और उसके बगैर भी। ग्राम विद्युतीकरण का यह अर्थ नहीं है कि गांव के हरेक घर में बिजली पहुंच गई।
(जनसत्ता)

महत्त्वपूर्ण उपलब्धि

सरकार ने रविवार को कहा कि देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य पूरा हो चुका है। यह लक्ष्य मई 2017 तक पूरा किया जाना था, बहरहाल यह ऐसी उपलब्धि है जिस पर गौर किया ही जाना चाहिए। कई स्तरों पर यह बहुत खेद की बात है कि देश के गांवों तक बिजली पहुंचाने में इतना अधिक वक्त लग गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने उचित ही इसे प्राथमिकता में लिया और एक ऐसी व्यवस्था तैयार की जिसके तहत गांवों तक बिजली पहुंचाने के काम को ऑनलाइन ट्रैक करना संभव हुआ।

सरकार ने इस दौरान काफी हद तक समय-सीमा का भी ध्यान रखा। यह काम आसान नहीं था। बल्कि यह काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि विद्युतीकरण के आखिरी दौर में उन गांवों तक बिजली पहुंचानी थी जो दूरदराज के इलाकों में थे और ऐसे पहाड़ी इलाकों में थे, जहां लोगों और सामग्री को पहुंचाना काफी मुश्किल काम था। ऐसे में इस उपलब्धि के लिए सरकार को बधाई देनी तो बनती है। परंतु फिर भी पूर्ण विद्युतीकरण की उपलब्धि का वह तात्पर्य नहीं है जो होना चाहिए। विद्युतीकरण की परिभाषा बेहद कमजोर है। इसके लिए गांव के आसपास बिजली का मूलभूत ढांचा उपलब्ध होना ही पर्याप्त है।

मसलन पंचायत कार्यालय में बिजली की व्यवस्था होना। इसके अलावा गांव के कम से कम 10 फीसदी परिवारों तक बिजली की पहुंच हो। इसमें सब तक पहुंच जैसी कोई बात नहीं है। न ही बिजली की उपलब्धता या निरंतर उपलब्धता से इसका कोई लेना-देना है। एक गांव को तब भी बिजली वाला माना जाएगा जब उसके आसपास से बिजली की लाइन गुजरती हो, पंचायत कार्यालय माइक्रो ग्रिड से संबद्ध हो और गांव के 10 फीसदी घरों में चंद घंटों के लिए ही बिजली आती हो। जाहिर सी बात है दूरदराज स्थित हर घर को ग्रिड से जोड़ने का काम अभी बाकी है। विभिन्न अनुमानों पर यकीन करें तो देश के 20 से 25 फीसदी घरों में अभी भी बिजली नहीं है। इसमें जो क्षेत्रवार अंतर है वह भी ध्यान देने लायक है।

आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में जिन घरों में अभी बिजली पहुंचनी है उनकी तादाद नगण्य है। जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और असम जैसे राज्यों में तकरीबन आधे घरों को अभी बिजली ग्रिड से जोड़ा जाना बाकी है। अभी कुछ महीने पहले तक उत्तर प्रदेश और बिहार में ही करीब 2.1 करोड़ परिवारों तक बिजली नहीं पहुंच सकी थी। ग्रामीण विद्युतीकरण के लक्ष्य की इस प्राप्ति को समय की कसौटी पर भी कसना होगा और इसकी पुष्टि करनी होगी।
(बिजनेस स्टैंडर्ड)