जीएसटी: गरीबों के उत्थान में सहायता प्रदान करने का महान साधन

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प्रकाश चावला

संसद के भव्य केंद्रीय कक्ष में वस्तु एवं सेवा कर के शुभारम्भ के लिए राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उद्घाटित लघु और संक्षिप्त वीडियो में देश के अब तक के सबसे महत्वपूर्ण कर सुधार के स्पष्ट उद्देश्य को दर्शाया गया। जीएसटी किस तरह देश के सकल घरेलू उत्पाद को प्रोत्साहन देगा और व्यापार एवं उद्योग के लिए जीवन आसान बनाएगा, इस बारे में अर्थशास्त्रियों और अन्य टीकाकारों द्वारा हमें जो बताया जा रहा था, उसके विपरीत शुभारम्भ के अवसर पर प्रदर्शित फिल्म में आधुनिक कराधान के व्यापक पहलू को दिखाया गया, जिसके केंद्र में देश की जनता विशेषकर आर्थिक रूप से वंचित लोग हैं।

30 जून की मध्य रात्रि को, जीएसटी का शुभारम्भ करने से पहले अपने प्रेरक भाषण में, प्रधानमंत्री ने जीएसटी का उल्लेख गरीबों, विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश और अन्य पूर्वी राज्यों तथा पूर्वोत्तर के गरीबों के जीवन में बदलाव लाने के साधन के तौर पर किया। प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद, ये राज्य उन संसाधनों का उपयोग अपने विकास के लिए कर पाने में विफल रहे हैं।

इस पर गौर करते हुए प्रारंभ में यह पूछा जा सकता है कि जीएसटी देश के गरीबों के लिए किस तरह बेहद लाभकारी होगा या क्या यह पुराने ‘‘ट्रिकल डाउन’’ सिद्धांत की तरह व्यापार और उद्योग के जरिए भूमिका निभाने वाला होगा। कुछ हद तक ऐसा हो सकता है, लेकिन जीएसटी का स्वरूप उस बात को साकार करना सुनिश्चित करेगा, जो प्रधानमंत्री ने देश के बेहद विशिष्ट दर्शकों के समक्ष कही थी। देश की परिपक्व राजव्यवस्था और सहयोगपूर्ण संघवाद ने आखिरकार एक ऐसी प्रणाली प्रदान की है, जो आवश्यक तौर पर विनिर्माता केंद्रित न होकर लोक-केंद्रित है।

उत्पाद शुल्क या अन्य शुल्कों के विपरीत जीएसटी, जिसमें सात केंद्रीय और आठ राज्य कर सम्मिलित हैं’- स्रोत या विनिर्माता आधारित नहीं, बल्कि गंतव्य या उपभोक्ता केंद्रित है। स्पष्ट और सरल भाषा में कहें, तो जिन राज्यों में उपभोक्ताओं की संख्या अधिक होगी, उन्हें कराधान में होने वाले लचीलापन के संदर्भ में अपार लाभ प्राप्त होगा, जिसे बाद में जनता और राज्यों के समग्र आर्थिक विकास के लिए कल्याणकारी योजनाओं में लगाया जाएगा। निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तथा पूर्वोत्तर राज्य, जहां ज्यादा विनिर्माण आधार नहीं है और जिन्हें राजस्व की हानि हो रही है, उन्हें लाभ प्राप्त होगा, जबकि विकसित और विनिर्माण केंद्रों को जीएसटी के प्रारंभ के कम से कम पांच वर्षों के लिए क्षतिपूरित किया जाएगा। राज्य में जितने ज्यादा उपभोक्ता, उतना अधिक कर संग्रह, हालांकि उपभोक्ताओं को आर्थिक रूप से अधिकार सम्पन्न बनाने की जरूरत होगी!

विनिर्माण में महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु या कर्नाटक जैसे राज्यों के साथ कदमताल नहीं मिला सके इन राज्यों में व्यापार से वृद्धि को प्रोत्साहन प्राप्त होगा, बदले में बड़े पैमाने पर संसाधनों का सृजन होगा, ताकि उन्हें फिर से विकास के प्रयासों में लगाया जा सके। ऐसी जीवंतता आगे चलकर घरेलू और वैश्विक दोनों के निवेशकों की विनिर्माण और उससे संबंधित सेवा क्षेत्रों में दिलचस्पी का मार्ग प्रशस्त होगा, जिससे लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसरों का सृजन की संभावनाएं बनेंगी।

प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में कहा, ‘‘जीएसटी ऐसी व्यवस्था है, जो देश के व्यापार में मौजूद अंसंतुलनों को समाप्त करेगी। यह देश के निर्यात को भी प्रोत्साहन देगी। यह व्यवस्था के पहले से विकसित राज्यों को ही बल नहीं प्रदान करेगी, बल्कि पिछड़े राज्यों को भी विकास का अवसर प्रदान करेगी। हमारे राज्य प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं- बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर और ओडिशा की ओर देखिए। उन सभी में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। जब उन्हें एकल कर व्यवस्था मिलेगी, तो मैं स्पष्ट रूप से देख सकता हूं कि उनके यहां जो भी कमी है, उसे दूर कर दिया जाएगा और देश की यह कला आगे बढ़ेगी। भारत के समस्त राज्यों को विकास का समान अवसर प्राप्त होगा।’’

‘गंगानगर से लेकर ईटानगर तक’ एक देश-एक कर के अलावा, श्री मोदी के शब्दों में कहें, तो इससे आर्थिक लेन-देन के ईमानदार तरीके को प्रोत्साहन देते हुए निश्चित तौर पर उद्योग, व्यापार और आम आदमी के लिए अलग-अलग तरह से जीवन आसान होगा। इसीलिए जीएसटी को ‘‘गुड एंड सिम्पल टैक्स’’ करार दिया गया है, जो शासन की नई संस्कृति लेकर आएगा।

प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों ने ही जीएसटी को अमली जामा पहनाने का पूरा श्रेय विभिन्न राजनीतिक दलों और केंद्र तथा राज्यों की सरकारों को दिया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘’य़ह किसी एक सरकार या दल की सिद्धी नहीं है. ये हम सबके साझे प्रयासों का परिणाम है।‘’ पिछली सरकार में वित्त मंत्री के रूप में उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर जीएसटी की यात्रा में अहम भूमिका निभाने वाले राष्ट्रपति ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा : “कर व्यवस्था का नया युग…… केन्द्र और राज्यों के बीच बनी व्यापक सहमति का परिणाम है। इस सहमति को बनने में केवल समय ही नहीं लगा, बल्कि इसके लिए अथक प्रयास भी करने पड़े। ये प्रयास राजनीतिक दलों की ओर से किए गए जिन्होंने संकीर्ण पक्षपातपूर्ण सोच को दरकिनार कर राष्ट्र हित को तरजीह दी। यह भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और विवेक का प्रमाण है।”

नई कर व्यवस्था के प्रमुख फायदों में से एक ‘कर पर कर’ के कारण होने वाले व्यापक प्रभावों से मुक्त होना है। सुदृढ़ आईटी अवसंरचना के माध्यम से, इनपुट क्रेडिट की व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि वह कर-देयताओं के खिलाफ पारित और समायोजित की जाएं। इससे सिर्फ उपभोक्ताओं की मदद होगी। जाने-माने कर विशेषज्ञ श्री बृज भूषण का कहना है, ‘‘वस्तुओं और सेवाओं के दामों में गिरावट आएगी। पिछली व्यवस्था में, उत्पाद शुल्क, सेवा कर, वैट और अन्य अप्रत्यक्ष करों के लिए क्रेडिट अंतिम वेंडर तक नहीं पहुंचता था, लेकिन जीएसटी में, ऐसा क्रेडिट मूल्य शृंखला की अंतिम अवस्था में आपूर्तिकर्ता तक जाता है, जो बाद में उपभोक्ताओं को हस्तांतरित होता है।

वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली भी उद्योग जगत को समझाते आ रहे हैं कि वह जीएसटी लागू होने के बाद प्राप्त हो रहे किसी भी प्रकार के लाभ को आगे बढ़ाए। उन्होंने आशा व्यक्त की कि फायदों को आम नागरिकों तक पहुंचाने के लिए सरकार को लाभ-विरोधी प्राधिकरण के माध्यम से संभवत: अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा।
यहां तक कि राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने कहा कि प्रारंभिक अवस्था में कुछ रुकावटें हो सकती हैं, ये रचनात्मक रुकावट होगी। एक बार जब हम इन शुरूआती कठिनाइयों और समायोजन की आरंभिक अवधि को पार कर लेंगे, जीएसटी लोक-केंद्रित, जीवन में बदलाव लाने में सक्षम साबित होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)