मैंने भी एक पेड़ अपनी ‘मां’ के नाम लगाया है : नरेन्द्र मोदी

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धरती ‘मां’ ही हम सबके जीवन का आधार है, इसलिए हमारा भी कर्तव्य है कि हम धरती ‘मां’ का भी ख्याल रखें

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 30 जून को ‘आकाशवाणी’ के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 111वीं कड़ी के प्रारंभ में हालिया संपन्न लोकसभा चुनाव में देशवासियों की सक्रिय भागीदारी के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि आज देशवासियों को धन्यवाद भी करता हूं कि उन्होंने हमारे संविधान और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर अपना अटूट विश्वास दोहराया है। 24 का चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव था। दुनिया के किसी भी देश में इतना बड़ा चुनाव कभी नहीं हुआ, जिसमें 65 करोड़ लोगों ने वोट डाले हैं। मैं चुनाव आयोग और मतदान की प्रक्रिया से जुड़े हर व्यक्ति को इसके लिए बधाई देता हूं।

एक पेड़ ‘मां’ के नाम

‘मन की बात’ के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि हम सबके जीवन में ‘मां’ का दर्जा सबसे ऊंचा होता है। मां, हर दु:ख सहकर भी अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है। हर मां, अपने बच्चे पर हर स्नेह लुटाती है। जन्मदात्री मां का ये प्यार हम सब पर एक कर्ज की तरह होता है, जिसे कोई चुका नहीं सकता। मैं सोच रहा था, हम मां को कुछ दे तो सकते नहीं, लेकिन और कुछ कर सकते हैं क्या? इसी सोच में से इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर एक विशेष अभियान शुरू किया गया है, इस अभियान का नाम है – ‘एक पेड़ मां के नाम’। मैंने भी एक पेड़ अपनी ‘मां’ के नाम लगाया है।

उन्होंने कहा कि मैंने सभी देशवासियों से, दुनिया के सभी देशों के लोगों से ये अपील की है कि अपनी मां के साथ मिलकर या उनके नाम पर एक पेड़ जरूर लगाएं और मुझे ये देखकर बहुत खुशी है कि मां की स्मृति में या उनके सम्मान में पेड़ लगाने का अभियान तेजी से आगे बढ़ रहा है। लोग अपनी मां के साथ या फिर उनकी फोटो के साथ पेड़ लगाने की तस्वीरों को Social Media पर साझा कर रहे हैं। हर कोई अपनी मां के लिए पेड़ लगा रहा है— चाहे वो अमीर हो या गरीब, चाहे वो कामकाजी महिला हो या गृहिणी। इस अभियान ने सबको मां के प्रति अपना स्नेह जताने का समान अवसर दिया है। वो अपनी तस्वीरों को #Plant4Mother और #एक_पेड़_मां_के_नाम इसके साथ साझा करके दूसरों को प्रेरित कर रहे हैं।

श्री मोदी ने कहा कि इस अभियान का एक और लाभ होगा। धरती भी ‘मां’ के समान हमारा ख्याल रखती है। धरती मां ही हम सबके जीवन का आधार है, इसलिए हमारा भी कर्तव्य है कि हम धरती मां का भी ख्याल रखें। ‘मां’ के नाम पेड़ लगाने के अभियान से अपनी मां का सम्मान तो होगा ही होगा, धरती मां की भी रक्षा होगी। पिछले एक दशक में भारत में सबके प्रयास से वन क्षेत्र का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। अमृत महोत्सव के दौरान देशभर में 60 हजार से ज्यादा अमृत सरोवर भी बनाए गए हैं। अब हमें ऐसे ही मां के नाम पर पेड़ लगाने के अभियान को गति देनी है।

हम संस्कृत को सम्मान दें, उसे दैनिक जीवन में स्थान दें

श्री मोदी ने कहा, “मम प्रिया: देशवासिन: अद्य अहं किञ्चित् चर्चा संस्कृत भाषायां आरभे। आप सोच रहे होंगे कि ‘मन की बात’ में अचानक संस्कृत में क्यों बोल रहा हूं? इसकी वजह है आज संस्कृत से जुड़ा एक खास अवसर! आज 30 जून को आकाशवाणी का संस्कृत बुलेटिन अपने प्रसारण के 50 साल पूरे कर रहा है। 50 वर्षों से लगातार इस बुलेटिन ने कितने ही लोगों को संस्कृत से जोड़े रखा है। मैं आल इंडिया रेडियो परिवार को बधाई देता हूं।

उन्होंने कहा कि संस्कृत की प्राचीन भारतीय ज्ञान और विज्ञान की प्रगति में बड़ी भूमिका रही है। आज के समय की मांग है कि हम संस्कृत को सम्मान भी दें और उसे अपने दैनिक जीवन से भी जोड़ें। आजकल ऐसा ही एक प्रयास बेंगलुरू में कई और लोग कर रहे हैं। बेंगलुरू में एक पार्क है— कब्बन पार्क! इस पार्क में यहां के लोगों ने एक नई परंपरा शुरू की है। यहां हफ्ते में एक दिन, हर रविवार बच्चे, युवा और बुजुर्ग आपस में संस्कृत में बात करते हैं। इतना ही नहीं, यहां वाद-विवाद के कई सत्र भी संस्कृत में ही आयोजित किए जाते हैं। इनकी इस पहल का नाम है— संस्कृत weekend! इसकी शुरुआत एक वेबसाइट के जरिए समष्टि गुब्बी जी ने की है। कुछ दिनों पहले ही शुरू हुआ ये प्रयास बेंगलुरूवासियों के बीच देखते ही देखते काफी लोकप्रिय हो गया है। अगर हम सब इस तरह के प्रयास से जुड़ें तो हमें विश्व की इतनी प्राचीन और वैज्ञानिक भाषा से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

श्री मोदी ने कहा कि आज 30 जून का ये दिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इस दिन को हमारे आदिवासी भाई-बहन ‘हूल दिवस’ के रूप में मनाते हैं। यह दिन वीर सिद्धो-कान्हू के अदम्य साहस से जुड़ा है, जिन्होंने विदेशी शासकों के अत्याचार का पुरजोर विरोध किया था। वीर सिद्धो-कान्हू ने हजारों संथाली साथियों को एकजुट करके अंग्रेजों का जी-जान से मुकाबला किया और जानते हैं ये कब हुआ था? ये हुआ था 1855 में यानी ये 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से भी दो साल पहले हुआ था, तब झारखंड के संथाल परगना में हमारे आदिवासी भाई-बहनों ने विदेशी शासकों के खिलाफ हथियार उठा लिया था। हमारे संथाली भाई-बहनों पर अंग्रेजों ने बहुत सारे अत्याचार किए थे, उन पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए थे। इस संघर्ष में अद्भुत वीरता दिखाते हुए वीर सिद्धो और कान्हू शहीद हो गए। झारखंड की भूमि के इन अमर सपूतों का बलिदान आज भी देशवासियों को प्रेरित करता है।

‘मन की बात’ के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा कि अब से एक सप्ताह बाद पवित्र रथ यात्रा की शुरुआत होने जा रही है। मेरी कामना है कि महाप्रभु जगन्नाथ की कृपा सभी देशवासियों पर सदैव बनी रहे। अमरनाथ यात्रा भी शुरू हो चुकी है और अगले कुछ दिनों में पंढरपुर वारी भी शुरू होने वाली है। मैं इन यात्राओं में शामिल होने वाले सभी श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं देता हूं। आगे कच्छी नववर्ष – आषाढी बीज का त्योहार भी है। इन सभी पर्व-त्योहारों के लिए भी आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं।