-विकास आनन्द
यूक्रेन संकट और कोरोना महामारी के कारण मंद वैश्विक अर्थव्यवस्था के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर प्रदर्शन कर रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के रूप में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही है। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग ने 2022 में वैश्विक आर्थिक विकास के लिए एक रिपोर्ट जारी करके देशों के अर्थव्यस्थाओं पूर्वानुमान लगाया है। रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन संकट ने महामारी से त्रस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था को और हानि पहुचाई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था का 2022 में औसतन 3.1 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। वहीं, भारतीय अर्थव्यवस्था के 6.4 प्रतिशत दर से बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र ने 2022 में भारत की विकास दर जनवरी में 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था।
यूक्रेन संकट के कारण इसमें 0.3 प्रतिशत की कमी की गई है। भारत ने पिछले साल 8.8 प्रतिशत की दर से प्रदर्शन किया था। वैश्विक स्तर पर तमाम बाधाओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर प्रदर्शन कर रही है। संशोधित रिपोर्ट के अनुसार 2022 में संयुक्त राज्य की अर्थव्यवस्था के 2.6 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है, चीन के 4.5 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है, यूरोपीय संघ के 2.7 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है, और यूनाइटेड किंगडम और उत्तरी आयरलैंड 3.2 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है।
रिपोर्ट के अनुसार विश्व अर्थव्यवस्था लगातार मुद्रास्फीति के दबाव का सामना कर रही है। 2022 में वैश्विक मुद्रास्फीति के बढ़कर 6.7 प्रतिशत होने का अनुमान है, जो पिछले एक दशक के दौरान 2.9 प्रतिशत के औसत से दोगुना है। संयुक्त राज्य अमेरिका में हेडलाइन मुद्रास्फीति चार दशकों में उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। पश्चिमी एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन और सीआईएस देशों के कई देशों में मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है। 41 साल के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका में मुद्रास्फीति 8.4% तक पहुंच गई है। यह दिसंबर, 1981 के बाद सबसे अधिक है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप बढ़ती गैस की कीमतें संयुक्त राज्य की उच्च मुद्रास्फीति दर का प्राथमिक कारण रही हैं। उच्च गैस की कीमतों ने माल की परिवहन लागत में वृद्धि की है, जिससे मुद्रास्फीति की दर बढ़ गई है। यूनाइटेड किंगडम भी इसी मुद्दे से निपट रहा है। यूनाइटेड किंगडम में
मुद्रास्फीति भी 8.4 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो चार दशकों में उच्चतम स्तर है। यह जी-7 देशों में सबसे ज्यादा है। ब्रिटेन में मुद्रास्फीति उन्हीं कारकों के कारण है— बढ़ती गैस और पेट्रोल-डीजल की कीमतें। भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका आजादी के बाद से अपने सबसे खराब आर्थिक संकटों में से एक का सामना कर रहा है। महामारी से प्रभावित श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को 30 प्रतिशत मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कुछ महीनों में 40 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है।
वैश्विक परिदृश्य के संबंध में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति खाद्य असुरक्षा को बढ़ा दी है और कई विकासशील देशों में लाखों लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल दी है जो अभी भी महामारी से आई आर्थिक गिरावट से जूझ रहे हैं। बढ़ती गरीबी अनिवार्य रूप से अल्पावधि के लिए, देशों के भीतर और देशों के बीच असमानता को और बढ़ा देगी। दूसरी ओर, भारत में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेवाई) जैसे चल रहे कार्यक्रमों के माध्यम से अत्यधिक गरीबी का उन्मूलन किया गया है। इस साल अप्रैल में जारी ‘महामारी, गरीबी और असमानता: भारत से साक्ष्य’ शीर्षक से आईएमएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘पीएमजीकेवाई के कारण 2020 में अत्यधिक गरीबी 1 प्रतिशत से नीचे रही है।’
धुंधली वैश्विक आर्थिक तस्वीर के बीच मोदी सरकार ने अपने बेहतर मौद्रिक और राजकोषीय उपायों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास पथ को बनाए रखा है।