क्या कांग्रेस विचारधाराविहीन है ? क्या मोदी का विरोध ही मात्र विचारधारा है

| Published on:


अरुण जेटली

कुछ हफ्ते पहले यूपीए सरकार के पूर्व वित्त मंत्री एवं कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम ने कहा था कि पकौड़े तलना कोई रोजगार सृजन नहीं है। अपने बाकी संगी साथियों में चतुर होते हुए, वह (चिदंबरम) शायद मुद्रा योजना की सफलता को कमतर आंकने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके तहत समाज के कमजोर तबकों को 12.90 करोड़ कर्ज दिए गए हैं। मुद्रा योजना स्पष्ट रूप से लाखों हाथों के लिए नए काम पैदा कर रहा है और साथ ही लोगों को रोजगार भी दे रहा है।

दो दिन पहले, राहुल गांधी अपने ओबीसी समर्थकों को सम्बोधित करते हुए मोदी की नीतियों पर प्रहार के लिए अमेरिका के सफल उद्योगपतियों का हवाला दिया था। उन्होंने कोका-कोला के संस्थापक को ‘शिकंजी बेचने वाला’ व मैक्डोनाल्डस के संस्थापक को ‘ढाबेवाला’ बताया था। राहुल गांधी ने जो कुछ कहा वह तथ्यात्मक रूप से गलत था, लेकिन बड़ा बिंदु यही है कि उन्होंने उन कामों में ऐसे गुण देखे जो अनेक स्टार्टअप शुरू करने का आधार बन सकते हैं। ‘भारत एक खोज’ जैसी महान् रचना के लेखक (जवाहरलाल नेहरू) के ये पड़नाती अपनी ‘त्रुटियों’ की इसी प्रथा पर चलते हुए इस देश को ‘कोका कोला की पुन: खोज’ शीर्षक एक महान् कृति दे सकते हैं।

यह प्रधानमंत्री मोदी की एनडीए सरकार ही है, जिसने वर्ष 2015 में इस तरह के स्वरोजगार के अवसरों के महत्व को महसूस किया उसके लिए मुद्रा योजना शुरू की गई। अधिकांश लाभार्थियों ने छोटे ऋण ले लिए, छोटे उद्यम स्थापित किए और खुद को, और शायद एक या दो लोगों को रोजगार दिया। यूपीए ने ऐसा कभी नहीं किया। मैं दोहराता हूं कि यह यूपीए ही थी, जिसने 2008-2014 के दौरान संप्रग सरकार ने बैंकों के जरिए 15 बड़े कर्ज चूककर्ता कर्जदारों को बिना सोचे विचारे पैसा दिया। राहुल गांधी गोएबल्स का तरीका अपनाते हुए ‘तथ्य से विपरीत बातें कर रहे हैं।’ लोगों के सामने उन्होंने जो दावा किया वह ठीक है जिसे हमने सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया है।

कांग्रेसियों का मानना है कि 2.5 लाख करोड़ बैंक ऋण माफ कर दिए गए हैं? क्या यह समझने में असमर्थता के कारण है कि देनदार द्वारा निष्पादित संपत्ति की सेवा नहीं की जाती है, नब्बे दिनों के बाद यह गैर निष्पादित संपत्ति बन जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार वसूली की संभावना में गिरावट आई है। कॉलम में एक बदलाव होता है और बैंक को इस आधार पर प्रावधान करना पड़ता है कि वसूली की संभावना कम हो जाती है, लेकिन देनदार देयता बनी हुई है। कोई छूट नहीं है। जब या तो आईबीसी के माध्यम से या कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से ऋण वापस वसूल किया जाता है, तो प्रविष्टि उलट जाती है। ‘एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष के लिए बैंक परिचालन की प्राथमिक प्रक्रिया की समझ नहीं होना पूरी पार्टी ही नहीं देश के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए। वंशवाद आधारित राजनीतिक दलों में राजनीतिक पद वंशानुगत होते हैं। दुर्भाग्य से बुद्धिमानी वंशानुगत नहीं होती है। यह सीखकर हासिल की जाती है।

अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए यह अचानक प्यार क्यों?

1990 के शुरुआत में ओबीसी ने कांग्रेस  पार्टी का साथ छोड़ दिया। कांग्रेस हमेशा ओबीसी विरोधी रही है, स्वर्गीय राजीव गांधी ने संसद में मंडल आयोग के खिलाफ आक्रामक भाषण दिया था। हाल ही में कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने का भी विरोध किया, उन्होंने संसद में संवैधानिक संशोधन के खिलाफ मतदान किया। कांग्रस हमेशा अवसर देख कर आरक्षण का समर्थन करती है। यह स्पष्ट रूप से ओबीसी के लिए कोटा को कम करना चाहती है, यह जानते हुए कि न्यायपालिका आरक्षण पर 50 प्रतिशत से अधिक छूट की अनुमति नहीं देगी, नए दावेदार ओबीसी कोटा में खा जाएंगे।

राहुल के कुछ और कमाल

कुछ हफ्ते पहले सिंगापुर में अपने साक्षात्कारकर्ता के साथ बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने दर्शकों को यह कहकर भौंचक्का कर दिया कि भारत में एमआरआई मशीनें जोड़ने से चिकित्सा में क्रांति होगी। कैसे? सिवाय अन्य अस्पतालों के साथ अपना विवरण साझा करके एक रोगी की गोपनीयता का उल्लंघन करने के अलावा और क्या हासिल होगा?
राहुल गांधी कर्नाटक की एक सभा लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा की उनकी पार्टी का मानना है कि सिंगापुर में केवल एक जीएसटी दर है, जबकि सिंगापुर सभी खाद्य पदार्थों, सस्ते कपड़ों और जूते, चिकित्सा और शिक्षा पर 7% जीएसटी चार्ज करता है, विलासिता वस्तुओं- बीएमडब्ल्यू कार, अल्कोहल और पांच सितारा होटल के रूप में खर्च करता है। भारत ने अधिकांश खाद्य पदार्थों को छूट दी है। क्या हमारे पास खाद्य वस्तुओं, हवाई चप्पल और बीएमडब्ल्यू कारों के लिए समान दर होनी चाहिए? सिंगापुर में भारत के विपरीत, कोई बीपीएल या कम आय वाले समूह नहीं हैं।

शिक्षा पर उनका मानना है कि हमारे पास 200 आईआईटी होना चाहिए। क्या यूपीए ने ऐसा कभी किया? नहीं। यह एनडीए की सरकार है, जो अब पूरे देश में आईआईटी, आईआईएम और एम्स का गठन कर रही है, उपरोक्त सभी बयानों में, कोई विचारधारा नहीं है। सारे बयान अज्ञानता या जान बूझकर मोदी विरोध के कारण दिए गए है।

वंशवाद आधारित राजनीतिक दलों में ‘व्यक्ति व परिवार’ विशेष की चलती है और विचारधारा को कोई नहीं पूछता। अपनी सुविधा अनुसार चीजें तय करके कभी आप ओबीसी का विरोध करते है कभी पकौड़ा तलने का मजाक उड़ाते है, कभी इन्हीं लोगों के लिए घड़ियाली आंसू भी बहाते हैं, कभी ढाबा चलाना आपको उपयोगी दिखने लगता है। यह केवल उन दलों के साथ होता है, जो विचारधाराविहीन हो और जो अपने आपको सीमांत में संकुचित रखती है, या फिर क्षेत्रीय दलों के पिछलग्गू बनने के लिए तैयार हो। इनका सबसे बड़ा लक्ष्य नरेन्द्र मोदी का विरोध है।

(लेखक भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं)