ब्रह्मलीन हुए जगदगुरु जयेंद्र सरस्वती

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(18 जुलाई 1935 – 28 फरवरी 2018)

कांची कामकोटि पीठ के प्रमुख जगदगुरु श्री जयेंद्र सरस्वती शंकराचार्य 28 फरवरी को ब्रह्मलीन हुए। उन्होंने तमिलनाडु के कांचीपुरम में अंतिम सांस ली। वह 83 साल के थे। 69वें शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वती ने न केवल रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ा, बल्कि मठ की गतिवधियों का विस्तार कर समाज कल्याण, ख़ासकर दलितों की शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी किये। वे वेदों के ज्ञाता थे। उन्होंने मठ को एक नई दिशा दी। पहले मठ सिर्फ आध्यात्मिक कार्यों तक सीमित होता था, लेिकन श्री जयेंद्र सरस्वती ने धार्मिक संस्थानों को सामाजिक कार्यों से जोड़ा।

दरअसल, उनका आंदोलन समाज के सबसे निचले स्तर पर खड़े लोगों को मदद पहुंचाने के लिए था। पहले मठ कांचीपुरम और राज्य के भीतर तक सीमित था। वे इसे उत्तर-पूर्वी राज्यों तक ले गए। वहां उन्होंने स्कूल और अस्पताल शुरू किए।

श्री जयेंद्र सरस्वती का वास्तविक नाम सुब्रमण्यन महादेव अय्यर था और उनका जन्म 18 जुलाई 1935 को हुआ था। 68वें शंकराचार्य श्री चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती ने सुब्रमण्यन को 22 मार्च 1954 को कांची मठ के पीठाधिपति के पद पर आसीन किया। उन्होंने ही इन्हें जयेंद्र सरस्वती का नाम दिया।

गौरतलब है कि कांची मठ तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थापित है। यह पांच पंचभूतस्थलों में से एक है यहां के मठाधीश्वर को शंकराचार्य कहते हैं। यह दक्षिण भारत के महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर लिखा, ‘जगदगुरु जयेंद्र सरस्वती शंकराचार्य के निधन से गहरा दुख हुआ है। वह लाखों भक्तों के लिए अनुकरणीय रहेंगे। उनकी आत्मा को ओम शांति।’ अगले ट्वीट में श्री मोदी ने लिखा, ‘जगतगुरु शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती सेवा कार्यों में सबसे आगे थे। उन्होंने कई ऐसे संस्थान शुरू किए जिसके चलते गरीबों और दलितों का जीवन बदल गया।’

भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने अपने शोक-संदेश में कहा कि कांची कामकोटि पीठम के शंकराचार्य परम पूज्य श्री जयेंद्र सरस्वती की महासमाधि का समाचार प्राप्त हुआ। मैं उनके आकस्मिक निधन से अत्यंत दुखी और स्तब्ध हूं। अपने उपदेशों, अपनी विद्वता, प्रज्ञता और गरीबों को शिक्षित करने एवं वंचितों के कल्याण हेतु किये गये अनुकरणीय कार्य के लिए वे हमेशा याद किये जायेंगे।

श्री शाह ने कहा कि शंकराचार्य पूज्यपाद श्री जयेंद्र सरस्वती अध्यात्म के एक जाज्वल्यमान प्रकाश स्तंभ थे, जिन्होंने समाज की भलाई एवं उनके उत्थान के लिए अतुलनीय योगदान दिया और मानव जाति की अनंत सेवा की। उनका निधन सम्पूर्ण मानव जाति के लिये एक अपूरणीय क्षति है। मानव कल्याण और आध्यात्मिकता के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान समाज के लिये सतत प्रेरणा का काम करेगा। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि परम पूज्य शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वती जी पांच पंचभूतस्थलों में से एक कांची कामकोटि मठ के 69वें शंकराचार्य थे। केवल 19 वर्ष की आयु में 1954 में वे कांची कामकोटि मठ के शंकराचार्य पद पर आसीन हुये थे।

यही नहीं, हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम रोल निभाने वाले श्री जयेंद्र सरस्वती ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए विभिन्न पक्षों के साथ बातचीत की। उन्होंने सहमति के जरिए राम मंदिर निर्माण के रास्ते निकालने की भी कोशिश की।

@narendramodi

जगदगुरु जयेंद्र सरस्वती शंकराचार्य के निधन से गहरा दु:ख हुआ है। वह लाखों भक्तों के लिए अनुकरणीय रहेंगे। उनकी आत्मा को ओम शांति। जगतगुरु शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती सेवा कार्यों में सबसे आगे थे। उन्होंने कई ऐसे संस्थान शुरू किए, जिसके चलते गरीबों और दलितों का जीवन बदल गया।

@AmitShah

श्री जयेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य की शिक्षा, बुद्धिमत्ता और गरीबों को शिक्षित करने के लिए किए गए कार्यों को आने वाली पीढ़ियां याद करेंगी। वह एक आध्यात्मिक सितारे के रूप में चमकते रहेंगे। उन्होंने समाज के हित में कई कार्य किए। उनके अनुयायियों के प्रति मेरी गहरी शोक संवेदना है।