‘विमुद्रीकरण’ के कानूनी, राजनीतिक और आर्थिक आयाम

| Published on:

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया है और
नोटबंदी से जुड़े सभी विमर्शों पर जिसमें कानूनी पहलू भी शामिल है, विराम लगा दिया है

गोपाल कृष्ण अग्रवाल

विमुद्रीकरण विमर्श के तीन आयाम हैं: कानूनी, राजनीतिक और आर्थिक। विमुद्रीकरण को लागू करने के सरकार के निर्णय के खिलाफ विभिन्न आपत्तियों सहित 58 याचिकाएं न्यायालय में दायर की गई थीं लेकिन माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के सभी तर्कों को खारिज कर दिया। अपने निर्णय में न्यायालय ने केंद्र सरकार की शक्ति, निर्णय लेने की प्रक्रिया, नोटों को बदलने के लिए प्रदान की गई अवधि, भारतीय रिजर्व बैंक के साथ परामर्श के संबंध में मुद्दे पर कहा कि सरकार और आरबीआई ने निर्णय लेने से पहले सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार किया था और केवल इसलिए कि कुछ नागरिकों को कठिनाई का सामना करना पड़ा, इसे खराब कानून नहीं कहा जा सकता है।

किसी भी नीति की गहन समीक्षा करने और यह निर्धारित करने के लिए कि यह लाभकारी थी या नहीं, छह साल की अवधि पर्याप्त समय होती है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने इसे साबित भी किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया है और नोटबंदी से जुड़े सभी विमर्शों पर जिसमें कानूनी पहलू भी शामिल है, विराम लगा दिया है।

इस निर्णय से कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को अब संतुष्ट हो जाना चाहिए। कांग्रेस वर्षों से जनता के भरोसे के साथ खेलती आयी है और इसके लिए सुव्यवस्थित प्रयास भी करती रही है। यह वही कांग्रेस

विमुद्रीकरण के बाद व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र को औपचारिक रूप देने में भी तेजी आयी है। कर संग्रह के विस्तार से राजस्व में वृद्धि हुई है और औपचारिक अर्थव्यवस्था में अधिक पूंजी आयी है। सरकार ने इस बढ़े हुए राजस्व का उपयोग भारत में बेहतर शहरी और ग्रामीण आधारभूत संरचना बनाने और सामाजिक सेवाओं में सुधार के लिए किया है

पार्टी है, जिसने इस मुद्दे पर भी पूरे देश को गुमराह करने का काम किया और भ्रामक सूचनाएं फैलाकर इस गरीब-समर्थक सुधार को रोकने का प्रयास किया।

अगर इसके राजनीतिक आयाम की बात करें, तो जनता ने इस निर्णय का खुले दिल से स्वागत किया। श्री नरेन्द्र मोदी ने 2016 से अब तक हुए प्रमुख चुनावों में जिसमें 2018 के उत्तर प्रदेश और 2019 के राष्ट्रीय आम चुनावों सहित अन्य चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल की है। लोगों ने श्री नरेन्द्र मोदी जी की दृष्टि और निर्णयों पर पूरा भरोसा दिखाया है, चाहे वह कोविड महामारी के खिलाफ लड़ाई की बात हो या जीएसटी आदि का कार्यान्वयन हो।

जैसाकि मैं पार्टी के आर्थिक मामलों को जनता के समक्ष रखता हूं, तो मैं यहां भी इस निर्णय के आर्थिक पहलू पर गहराई से अपनी बात रखूंगा। विमुद्रीकरण के आर्थिक पहलू को सबसे कम समझा गया है और विपक्षी दलों द्वारा इसको लेकर भ्रम भी पैदा किया गया है।

नोटबंदी भ्रष्टाचार, काले धन, जाली मुद्रा और आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक प्रहार था। विमुद्रीकरण के परिणामस्वरूप, कारोबारी माहौल में अधिक पारदर्शिता आई है, साथ ही कर अनुपालन में भी वृद्धि हुई है। कई लाख शेल (छद्म) कंपनियां (3.8 लाख शेल कंपनियां और शेल संस्थाओं से संबंधित 4.5 लाख निदेशक) का पता लगाया गया है और कंपनी मामलों के रजिस्ट्रार से हटा दिया गया है। इन कंपनियों और उनके प्रमोटरों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी शुरू की गई है। नोटबंदी के बाद हवाला कारोबार और डब्बा ट्रेडिंग बुरी तरह प्रभावित हुई है।

विमुद्रीकरण के बाद व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र को औपचारिक रूप देने में भी तेजी आयी है। कर संग्रह के विस्तार से राजस्व में वृद्धि हुई है और औपचारिक अर्थव्यवस्था में अधिक पूंजी आयी है। सरकार ने इस बढ़े हुए राजस्व का उपयोग भारत में बेहतर शहरी और ग्रामीण आधारभूत संरचना बनाने और सामाजिक सेवाओं में सुधार के लिए किया है। कर संग्रह में वृद्धि और कर-से-जीडीपी अनुपात में सुधार के लिए विमुद्रीकरण के कदम को अहम माना जा सकता है। इसने भारत को उस आदर्श स्थिति की ओर बढ़ने में मदद की है, जिसमें करदाताओं पर कर दर को कम करने के बावजूद भी कर संग्रहण में कमी नहीं आयी है।

भारत में पिरामिड के निचले हिस्से यानी देश में गरीब आबादी के खिलाफ भेदभाव दशकों से चला आया है, लेकिन विमुद्रीकरण से इन लोगों के वित्तीय समावेशन को बल मिला है। नोटबंदी से पहले और बाद में प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) के तहत करोड़ों नए बैंक खाते खोले गए, जिनमें से अधिकांश (80 प्रतिशत) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में खोले गये। नए जन-धन खातों में से 53.6 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में और 46.4 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।

मोदी सरकार काला धन जमा करने वालों और लोगों का पैसा चुराने वालों पर नकेल कस रही है। इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी), बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन, व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम, आय प्रकटीकरण योजनाएं, अघोषित विदेशी अवैध संपत्ति घोषणा योजना, अघोषित विदेशी आय एवं संपत्ति (इंपोजिशन ऑफ

विमुद्रीकरण से उत्प्रेरित सरकार की डिजिटल पहलों के कारण पिछले एक दशक में फिनटेक उद्योगों में भी जबरदस्त वृद्धि देखी गयी है। 64 प्रतिशत के वैश्विक औसत के मुकाबले 87 प्रतिशत की फिनटेक अपनाने की दर के साथ भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते फिनटेक बाजारों में से एक है

टैक्स) एक्ट जैसी केंद्र सरकार की पहल और विमुद्रीकरण देश में काली अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ने में सफल रहे हैं। नोटबंदी कोई अकेला कदम नहीं था, हम चौतरफा प्रयास कर रहे हैं।

इसके साथ ही हमारी सरकार ने गरीबों के सामाजिक कल्याण के लिए मौजूद वितरण तंत्र को मजबूत किया है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियों को दूर किया है। जन-धन खातों और डिजिटल भुगतान के साथ सरकार ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर इंफ्रास्ट्रक्चर की शुरुआत की।

विमुद्रीकरण के दौरान गैर-लाभकारी संगठन और गैर-कॉरपोरेट संस्थान औसत नकद जमा राशि के संबंध में दूसरी सबसे बड़ी श्रेणी में आते थे। जबकि इनमें से केवल 4.6 प्रतिशत संस्थानों के पास ही पैन कार्ड थे, लेकिन उनके द्वारा जमा की गई नकदी कुल नगद जमा राशि में 16.2 प्रतिशत से अधिक थी।

वर्ष 2016 में विमुद्रीकरण के निर्णय में इस बात को कहा गया कि 500 रुपये और 1000 रुपये के मूल्यवर्ग में मौजूद किसी भी अघोषित आय को बैंक खातों में जमा किया जाए या औपचारिक परिवर्तन के लिए उसकी घोषणा की जाए। उस समय संचलन में मौजूद मुद्रा का 86.9 प्रतिशत (15.4 ट्रिलियन) इन दो मूल्यवर्ग के नोटों में मौजूद था।

विमुद्रीकरण के बाद डिजिटल भुगतान दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। डिजिटल भुगतान के मामले में भारत आज दुनिया में पहले स्थान पर है। वॉल्यूम के हिसाब से डिजिटल ट्रांजैक्शन की वैल्यू कई गुना बढ़ गई है। कांग्रेस ने हमेशा भारतीयों का मजाक उड़ाया है, संसद में कांग्रेस के पूर्व वित्त मंत्री ने हमारे गरीब भाई-बहनों की डिजिटल तकनीक को अपनाने की क्षमता पर कड़ा सवाल उठाया था।

विमुद्रीकरण के परिणामस्वरूप लोगों के साथ-साथ संस्थाओं के दीर्घकालिक एवं प्रणालीगत व्यवहार में परिवर्तन हुआ। इसके कारण डिजिटल लेन-देन के उपयोग में स्थायी वृद्धि हुई और इसका सकरात्मक प्रभाव भुगतान क्षेत्र में देखा गया है।

कुछ महत्वपूर्ण संकेतक जो विमुद्रीकरण के सकारात्मक प्रभाव की ओर इशारा करते हैं:

भुगतान प्रणालियों के प्रचलन में कुल मुद्रास्फीति (सीआईसी) की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2016 के 88 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2022 में 20 प्रतिशत हो गई है और वित्त वर्ष 2027 में इसके और नीचे यानी 11.15 प्रतिशत तक आने का अनुमान है। कागज आधारित उपकरणों जैसे चेक आदि का उपयोग, जो वित्त वर्ष 16 में 46 प्रतिशत था, वह घटकर वित्त वर्ष 22 में 12.7 प्रतिशत हो गया। यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) की शुरुआत के बाद से हर महीने ऑनलाइन लेन-देन बढ़ रहा है और वित्त वर्ष 22 में यह 84 लाख करोड़ मूल्य रुपये तक पहुंच गया है। एनपीसीआईएल संचालित प्लेटफॉर्म से जहां अक्टूबर, 2016 में कुल 1 लाख लेन-देन हुए थे, वही दिसंबर, 2022 तक एक बड़ी वृद्धि के साथ इस माध्यम से लगभग 783 करोड़ लेन-देन हुए है।

विमुद्रीकरण से उत्प्रेरित सरकार की डिजिटल पहलों के कारण पिछले एक दशक में फिनटेक उद्योगों में भी जबरदस्त वृद्धि देखी गयी है। 64 प्रतिशत के वैश्विक औसत के मुकाबले 87 प्रतिशत की फिनटेक अपनाने की दर के साथ भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते फिनटेक बाजारों में से एक है। भारत में 6,636 से अधिक फिनटेक स्टार्टअप है, जिनका 2021 में बाजार आकार 50 बिलियन डॉलर था और इसके 2025 तक 150 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। भारत का फिनटेक उद्योग 20 प्रतिशत की औसत दर से बढ़ने की उम्मीद है, जिसका आकार 2023 में 138 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है। यह कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण के आर्थिक पहलू को सम्पूर्णता में देखा जाए। तो इससे अर्थव्यवस्था में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं, जिनका देश में दूरगामी परिणाम देखने को मिल रहा है।

(लेखक भाजपा के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)