नरेंद्र मोदी होने का अर्थ

| Published on:

अम्बा चरण वशिष्ठ

रेन्द्र मोदी होने का अर्थ बहुत है, व्यापक और गहरा। इसके भाव तक जाने के लिए चाहिए एक सहज बुद्धि व दृष्टि और एक सकारात्मक सोच व समझ। मोदीजी के विरोधी राजनीतिक दल या व्यक्ति इसका अर्थ तो समझते हैं पर सार्वजनिक रूप में कभी मानेंगे नहीं।

अपनी नवीनतम पुस्तक नरेंद्र मोदी होने का अर्थ को लेखक डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री इसे “हृदय पक्ष से ताल्लुक रखनेवाली स्वच्छंद अभिव्यक्ति” मानते हैं। 2014 के चुनाव में मोदीजी 30 वर्षों के अंतराल के बाद पहले प्रधान मंत्री हुए जिन्होंने जनता को एक नयी सोच व दिशा देकर अपनी पार्टी भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाया। यह जीत थोथे नारों की नहीं, भारतीयता और राष्ट्रवाद का प्रतीक बनकर उभरे मोदी और उनकी भाजपा की थी। उन्होंने राजनीति की सूखी धरती पर बारिश की पहली बौछारें बरसाकर जो सौंधी सुगंध फैलाई वह सबके मन को भा गई। जनता ने उन स्वयंसिद्ध सेकुलरवादी ढिंढोरची नेताओं व शक्तियों को धूल चटा दी थी जिन्हें राष्ट्रगीत वंदेमातरम को गाने और भारतमाता की जय पुकारने पर गर्व नहीं, शर्म और सांप्रदायिकता की बू आती थी। जो हिन्दू धर्म व संस्कृति का मज़ाक उड़ाते फिरते थे, वह भी इस रास्ते पर चलने के लिये मजबूर हो गये। उन्हें भी स्पर्धा में आना पड़ा।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में पिछले सात दशकों में अधिकतर समय तक शासन कांग्रेस का ही रहा जो बस परिवार या वंश तक ही सीमित होकर रह गया। कुछ समय के लिये रहा गठबंधन सरकारों का आधिपत्य जो अपनी जाति, संप्रदाय और क्षेत्र से आगे कुछ देखने में सक्षम ही न थे। गठबंधन भ्रष्टाचारियों व आतंकवादियों का आश्रय बनने लगा। अगली बार किसने देखी है? जितना भी बटोर सकते हो इसी कार्यकाल में बटोर लो। तब मिलता रहा भ्रष्टाचार को खाद-पानी। सोनिया गांधी की छत्रछाया में चली यूपीए सरकार में तो राम और राममंदिर की बात करना ही घोर साम्प्रदायिकता बन गई थी। उन्होंने तो भगवान राम तक को एक काल्पनिक व्यक्ति बना दिया था।

अपने चुनाव घोषणापत्र के माध्यम से मोदीजी ने लकीर से हटकर देश को एक नई दिशा में ले जाने का संकल्प लिया जो जनता की आशाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप बैठा।

मोदीजी के पिछले पांच वर्ष के कार्यकाल की समीक्षा करते हुए डॉ. अग्निहोत्री इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि विरोधी चाहे कुछ भी कहें, इतना बड़ा समर्थन सभी वर्गों, जातियों और संप्रदायों, विशेषकर मुस्लिम भाइयों के बिना संभव ही नहीं हो सकता। मोदीजी प्रधानमंत्री भाजपा के नहीं, सारे देश के हैं, सब के हैं। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत पर आगे बढ़कर उन्होंने यह सिद्ध भी कर दिखाया है। चुनाव परिणामों ने एक स्पष्ट संदेश दिया कि देश को एक ऐसे सशक्त प्रधानमंत्री की आवश्यकता थी जिसमें स्वयं अपने पर भी विश्वास हो और समय पर स्वयं उचित निर्णय लेने की क्षमता भी। मोदीजी अपनी कथनी और करनी से जनता की आशाओं और आकांक्षाओं पर खरे उतरे हैं। यही कारण है कि जब मोदीजी देशहित में कोई कड़ा व कड़वा निर्णय लेते हैं तो जनता उनके साथ खड़ी मिलती है। इसका सबूत हैं जीएसटी और विमुद्रीकरण जैसे साहसिक व क्रांतिकारी निर्णय और उनके बाद एक के बाद अनेक चुनावों में भाजपा की विजय।

चीन के साथ भूटान और भारत की सीमा पर स्थित डोकलाम मामले पर देशहित में जो कड़ा रुख मोदी सरकार ने अपनाया उससे सारे विश्व को पता चल गया कि अब वह दिन हवा हो गए जब ऐसे मौकों पर भारत शांति के नाम पर गिड़गिड़ाने लगता था।

उरी पर पाकिस्तान समर्थित आतंकियों हिमाकत के जवाब में भारत ने एक सर्जिकल स्ट्राइक कर दी। बाद में जब पाकिस्तान में पले आतंकवादियों ने पुलवामा कांड किया और हमारे 40 से अधिक वीर जवानों को शहीद कर दिया तो मोदीजी ने उसी क्षण साफ कर दिया कि हमारे वीर जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जायेगी। पाकिस्तान को इसकी सज़ा भुगतनी पड़ेगी। उन्होंने पाकिस्तान को माकूल जवाब देने के लिए सेना को समुचित कार्रवाई की छूट दे दी। हमारी बहादुर वायुसेना ने बालकोट जाकर आतंकियों के ठिकानों को ध्वस्त कर दिया।

पुस्तक में मोदीजी द्वारा जनता की भलाई के लिए चलाये गए अनेकों योजनाओं, कार्यक्रमों और उससे हुए आम जनता के उद्धार की बारीकी से समीक्षा तथा सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से आए बदलाव की भी व्याख्या की गई है। आतंकवादियों से निपटने के लिए कठोर पग उठाए गए जिससे उनके मन में भय और जनता में सुरक्षा का विश्वास जगा है। इस पुस्तक को लेखक ने ठीक समय पर निकाला है। जिन बातों पर तथ्य व तर्क विहीन आलोचना मोदीजी के विरोधी करते हैं, लेखक ने उन पर आंकड़ों के तथ्य से उनके झूठ के दर्शन करवाये हैं। पुस्तक का गेटअप अच्छा है और प्रस्तुति भी। जिन महानुभावों को सच से साक्षात्कार करना है उनके लिए यह पुस्तक पढ़ने योग्य है।