सरकार की उम्र उसके कार्यो से नापिए

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अटल बिहारी वाजपेयी

4 जुलाई, 1998 को नई दिल्ली में आयोजित स्वागत समारोह के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा दिए गए भाषण का संपादित पाठ :

पके अभिनंदन के लिए मैं आभारी हूं। थोड़ा देर में हो रहा है, मगर दोष संयोजकों का नहीं है, मेरा है। सचमुच में अभिनंदन तो एक निमित्त है, एक बहाना है। पोद्दारजी और उनके मित्रों ने तय किया कि प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए धन का संग्रह करेंगे तो मैंने कार्यक्रम को मान लिया; उसके साथ अभिनंदन भी जुड़ गया। गुप्ताजी ने भगवान् राम का नामोल्लेख किया, भीलनी की याद दिलाई, मुझे तो ऐसा लग रहा है कि सुदामा द्वारकाधीश के यहां आया है और यह द्वारकाधीश की इच्छा पर है कि सुदामा की आकांक्षा कहां तक पूरी होती है।

प्रधानमंत्री सहायता कोष के लिए बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता है। धन बड़ी-बड़ी रकमों में दिया जाए यह जरूरी नहीं है, छोटी-छोटी राशियां भी भेजी जा सकती हैं। देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें राहत की आवश्यकता है। कभी-कभी प्राकृतिक आपदा, गुजरात जैसा झंझावत, कहीं ओलावृष्टि, अतिवृष्टि, दुघर्टना, अपघात बड़ी संख्या में लोग पीड़ित होते हैं और उनकी थोड़ी सी भी सहायता करने के लिए धन जुटाना मुश्किल होता है। इस स्थिति को बदलने की जरूरत है। हम सभी लोग थोड़ा-थोड़ा देश के लिए धन देना सीखें। टैक्स के रूप में नहीं, टैक्स तो समय पर देना चाहिए, पूरा देना चाहिए; लेकिन उसके अतिरिक्त। पारिवारिक समारोह में बड़ी मात्रा में पैसा खर्च किया जाता है। उस अवसर पर आनंद होना स्वाभाविक भी है, लेकिन अगर उस समय या त्योहारों के मौके पर थोड़ा सा धन हम समाज के लिए निकालें, जरूरी नहीं है कि प्रधानमंत्री सहायता कोष में भेजें, किसी गैर सरकारी संस्था को दे सकते हैं, स्वयंसेवक संगठन को दे सकते हैं, किसी विद्यालय के लिए, किसी अस्पताल के लिए अपना योगदान कर सकते हैं। लेकिन, मन में यह भावना होनी चाहिए कि अगर हम किसी दूसरे का दुःख बांटेंगे तो हमारा सुख बढ़ेगा।

हमारे पूर्वजों ने राज्य नहीं मांगा था, समृद्धि की कामना नहीं की थी, हमें उपदेश दिया था कि दूसरे की पीड़ा को अगर हम कम करने में सहायक हो सकें तो फिर हमारा यह जीवन सफल होगा। यह हमारे लिए एक बड़े सौभाग्य की बात होगी। जिन देशों को हम भौतिकवादी देश कहते हैं, उनमें बड़ी मात्रा में लोग समाज के लिए, पीड़ितों के लिए, दलितों के लिए, अपंगों के लिए दान देते हैं

कामये दुःख तप्तानाम् प्राणिनामार्त नाशनम्।

हमारे पूर्वजों ने राज्य नहीं मांगा था, समृद्धि की कामना नहीं की थी, हमें उपदेश दिया था कि दूसरे की पीड़ा को अगर हम कम करने में सहायक हो सकें तो फिर हमारा यह जीवन सफल होगा। यह हमारे लिए एक बड़े सौभाग्य की बात होगी। जिन देशों को हम भौतिकवादी देश कहते हैं, उनमें बड़ी मात्रा में लोग समाज के लिए, पीड़ितों के लिए, दलितों के लिए, अपंगों के लिए दान देते हैं। छोटी-छोटी रकमों से अरबों रुपए इकट्ठे हो सकते हैं।

पोखरण के बाद भारत का संसार में एक नया स्थान बना है। हमें अलग-थलग करने की कोशिशें व्यर्थ हुई हैं और सब भारत के महत्त्व को स्वीकार कर रहे हैं, करेंगे। आखिर राष्ट्र की रक्षा सर्वोपरि है। पिछले पचास साल की कहानी मन को ठेस पहुंचानेवाली कहानी है। हमने अपनी भूमि खोई है, हमारे सम्मान को चोट लगी है। फिर भी हम धैर्य धारण करते रहे। ऐसे विश्व की कामना करते रहे, जिसमें अणु अस्त्रों के लिए कोई स्थान नहीं होगा।

जब हमारे पड़ोस में पहली बार अणु विस्फोट हुआ था तो हमने अनेक अणु शस्त्रधारी देशों से सहायता मांगी थी, उनका सहयोग प्राप्त करने का प्रयास किया था, मगर हमें निराशा हाथ लगी। तब ऐसा लगा कि आज रक्षा के मामले में, राष्ट्र की सुरक्षा के मामले में हमें अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा। उसके कारण हमारे ऊपर दबाव बढ़ा, कठिनाइयां बढ़ीं, हमारा दायित्व भी बढ़ा है। हम एक न्यूक्लियर देश हैं। यह सम्मान हमें किसी ने दिया नहीं है। यह हमने अर्जित किया है। हमारे वैज्ञानिकों की, हमारे इंजीनियरों की, टैक्नीशियंस की इसके पीछे पचास साल की साधना है। मैं अकेले इसका श्रेय नहीं लेता। लेकिन हां परीक्षण, जब हुआ तब मेरे हाथ में बागडोर थी। यह संयोग था। सचमुच में परीक्षण तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था। जब फ्रांस परीक्षण कर रहा था, जब चीन परीक्षण कर रहा था, परीक्षण करने पर कोई प्रतिबंध नहीं था, जब परीक्षण करना आलोचना का विषय नहीं था। तब हमारी सरकार ने परीक्षण नहीं किया। क्यों नहीं किया? फिर जब वातावरण बिगड़ा तो हम चुपचाप उसे देख नहीं सकते थे। हमने कहा कि हम अपना कर्तव्य पूरा करेंगे।

तीसरी दुनिया के देशों में हमारे अणु परीक्षणों से एक नया आत्मविश्वास पैदा हुआ है। गुटनिरपेक्ष देशों में इससे यह भावना बलवती हुई है कि संसार को एक ध्रुव पर नहीं नचाया जा सकता। आसपास जब परमाणु अस्त्रों के अंबार लग रहे हों तो हमें राष्ट्र की रक्षा के लिए जो आवश्यक कदम हैं वे उठाने हैं। वे हमने उठाए हैं। लेकिन, इसकी वजह से दबाव बढ़े हैं, कठिनाइयों में वृद्धि हुई है। कुछ ऋण मिलने बंद हो गए हैं, कुछ सहायता आनी रुक गई है। हम दबाव का भी बड़े आत्मविश्वास के साथ सामना करेंगे। दबाव के कारण हम अपनी सही नीतियों में परिवर्तन नहीं लाएंगे। हमने जो किया है, सोच-समझकर किया है। धीरे-धीरे जैसे-जैसे वक्त बीतता जा रहा है लोग हमारे कदम की उपयोगिता, हमारे कदम की आवश्यकता समझ रहे हैं, लेकिन केवल पोखरण के कारण नहीं।

वैसे भी जब हम आजादी की पचासवीं स्वर्ण जयंती मना रहे हैं, स्वर्ण जयंती पर देश की दशा को गहराई से देखना चाहिए और इस बात पर विचार करना चाहिए कि दुनिया की दौड़ में हम पीछे क्यों रह गए हैं? यह ठीक है कि अनेक देशों से हमारी स्थिति अच्छी है, लेकिन हम जैसी स्थिति चाहते हैं वैसी नहीं है।
‘चुनाव हुए, सरकार बदली; लेकिन सरकार बदली हैं – बदले-बदले मेरे सरकार नजर आते हैं। इसके आगे की लाइन मैं नहीं कहता। घर की आबादी के आसार नजर आते हैं। चेहरे बदले हैं, अभी चाल बदलनी है और चरित्र में परिवर्तन लाना है। इस ढांचे में कुछ ऐसी दुर्बलताएं आ गई हैं, जो प्रगति के पथ पर पांव बढ़ाने में बाधक हैं। जो अब सत्ता में नहीं हैं मैं उन्हें दोष नहीं दे रहा और उस परीक्षा में मैं भी शामिल हूं, मेरी भी परीक्षा हो रही है, मेरा भी इम्तिहान हो रहा है। क्या जनता की इतनी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हम अपना काम कर सकेंगे? क्या कठिनाइयों की लहरों के बीच में से निकालकर हम राष्ट्र की नौका को समृद्धि के तट तक ले जा सकेंगे? आरंभ हुआ है और अच्छा आरंभ हुआ है।

गंगावतरण हमने देखा। गंगा जब आई पवित्र थी, आज गंगा को पवित्र रखने के लिए अभियान चलाना पड़ रहा है। हम पहले गंगा को गंदी करते हैं और फिर उसकी सफाई करते हैं। यह जमुना पर भी लागू होता है। गंगा के कारण आप यह नहीं समझें कि दूर की बात कर रहे हैं। प्रदूषण के कारण क्या स्थिति है?

सरकार की उम्र वर्षों में नहीं नापी जाती, उसके कार्यों में नापी जाती है। कभी एक काम ऐसा होता है, जो बरसों तक याद किया जाता है। मैं आप सब भाइयों और बहनों से कहना चाहता हूं कि आप सामाजिक कार्यों में रुचि लें। सरकार के साधन सीमित हैं, सरकार की क्षमता सीमित है, तंत्र बिगड़ा हुआ है उसको जब तक गैर सरकारी प्रयासों से ठीक नहीं किया जाएगा, सुधार नहीं किया जाएगा, तब तक तेजी से आगे बढ़ना मुश्किल होगा

आजकल कभी-कभी पार्लियामेंट में बड़ा आनंद आता है। थोड़े दिन पहले प्रतिपक्ष में बैठकर या खड़े होकर हम जो कुछ कहते थे, वे बातें आजकल हमें सुननी पड़ रही हैं। जब से हम सत्ता पक्ष में आए हैं, हमारे मित्र हमारी बातें दोहरा रहे हैं और हमें कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। हमने अभी तक ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसके लिए हम कटघरे में खड़े किया जा सकें। जो कुछ किया है ठीक दिशा में किया है। उसकी गति से हम भी संतुष्ट नहीं है, लेकिन आरंभ अच्छा है और अंत भी अच्छा होगा।

सरकार की उम्र वर्षों में नहीं नापी जाती, उसके कार्यों में नापी जाती है। कभी एक काम ऐसा होता है, जो बरसों तक याद किया जाता है। मैं आप सब भाइयों और बहनों से कहना चाहता हूं कि आप सामाजिक कार्यों में रुचि लें। सरकार के साधन सीमित हैं, सरकार की क्षमता सीमित है, तंत्र बिगड़ा हुआ है उसको जब तक गैर सरकारी प्रयासों से ठीक नहीं किया जाएगा, सुधार नहीं किया जाएगा, तब तक तेजी से आगे बढ़ना मुश्किल होगा। इसीलिए मैंने पोद्दारजी का प्रस्ताव मान लिया। मैं स्वार्थ से आया हूं, लेकिन मेरा स्वार्थ सार्वजनिक स्वार्थ है। कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं है। मैं ऐसोसिएशन को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने एक ठोस प्रयत्न किया। वे अपने कार्यक्रम सफलतापूर्वक करते रहें, नव-चेतना जागृत करें, सांस्कृतिक समृद्धि में हाथ बंटाएं, मगर साथ-साथ, जिन लोगों को राहत की आवश्यकता है उनका भी ध्यान रखें।