पत्र-पत्रिकाओं से…

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जीडीपी का छक्का

डीपी में थोड़ी रफ्तार आने से देश को राहत मिली है। वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर लगातार गिरावट का सिलसिला तोड़कर 6.3 फीसदी पर पहुंच गई। पिछली पांच तिमाहियों में यह 7.9 प्रतिशत से गिरती हुई 5.7 प्रतिशत तक आ गई थी। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर आने वाली नकारात्मक खबरों ने लोगों में कई तरह की आशंकाएं भर दी थीं, हालांकि शेयर बाजार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और वह लगातार चढ़ता ही रहा। इधर कुछ समय पहले ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग में भारत के अच्छे प्रदर्शन और मूडीज की पॉजिटिव रेटिंग ने थोड़ी उम्मीद जगाई और अब जीडीपी के आंकड़े ने साबित किया है कि चीजें पटरी पर लौटनी शुरू हो गई हैं।
— (नवभारत टाइम्स, 4 दिसंबर, 2017)

निकायों के नतीजे

त्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों की ही तरह जोरदार जीत हासिल हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया में इसे विकास की जीत कहा है तो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने प्रधानमंत्री के विकास के ‘विजन’ और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रणनीतिक कुशलता का परिणाम बताया है। इन औपचारिक प्रतिक्रियाओं को परे रख दिया जाए तो भी यह मानने में किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि इस जीत ने योगी सरकार के सात महीनों के कामकाज पर अपनी मुहर लगा दी है।
— (जनसत्ता, 2 दिसंबर, 2017)

विश्व धरोहर कुंभ

युक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने कुंभ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (इनटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज) का दर्जा दिया है। कुंभ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली यह पहचान योग और नवरोज के बाद किसी भारतीय परंपरा को मिला लगातार तीसरा खिताब है। यूनेस्को की विशेषज्ञ समिति के अनुसार कुंभ मेला धरती पर होने वाला सबसे बड़ा शांतिपूर्ण धार्मिक सम्मेलन है, जिसमें विभिन्न वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं। एक धार्मिक आयोजन के तौर पर कुंभ में जैसी सहिष्णुता और समायोजन नजर आता है, वह पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण है। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि आदि शंकराचार्य ने इसे एक व्यवस्थित रूप दिया। कुंभ को विश्व स्तर पर महत्व मिलना भारत के लिए एक उपलब्धि है।
— (नवभारत टाइम्स, 9 दिसंबर, 2017 )

कश्मीर में पथराव करने वालों के बीच उम्मीद का उदाहरण

श्मीर में पुलिस वालों पर पथराव करने वाली लड़की अफसान आशिक के महिला फुटबॉल टीम का कप्तान बनने से उम्मीद का उदाहरण कायम हुआ है। इस बदलाव व कामयाबी ने साबित किया है कि अगर समाज और सरकार टकराव छोड़कर सहयोग के रास्ते पर चलें तो क्या नहीं हो सकता। गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिलकर अफसान ने कश्मीर में भारतीय खेल प्राधिकरण संस्थान की मांग की है और अब वह पुलिस और सरकार से लड़ने की बजाय मुल्क और सूबे का नाम रोशन करना चाहती है। निश्चित तौर पर अफसान का यह बदलाव खुशी देता है और उसी के साथ अगर हम पुलिस और युवाओं के हर टकराव को देशद्रोह मानने की बजाय गुस्से की अभिव्यक्ति मानकर चलें तो समस्या के समाधान में ज्यादा कामयाबी मिल सकेगी। बहुत अच्छी बात है कि हिंसक राजनीति में लगी युवा ऊर्जा खेल की प्रतिस्पर्धा में लगे और पदक और
ट्राफियां जीते।
— (दैनिक भास्कर, 7 दिसंबर, 2017)