उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीतिक यात्रा : एक नजर (भाग 2)

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प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगाकर लोकतंत्र का गला घोंटने का प्रयास किया था। इस कदम ने भारत की लोकतांत्रिक राजनीति को कई मायनों में प्रभावित किया, क्योंकि इस दौरान कई विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके अतिरिक्त अभिव्यक्ति की आजादी और पत्र-पत्रिकाओं पर दबाव बनाने के लिए कठोर उपाय किये गये। आपातकाल 21 महीने तक चला और 1977 में चुनावों की घोषणा के साथ समाप्त हुआ। इसके साथ ही जनता पार्टी का गठन हुआ, जिसमें आपातकाल का विरोध करने वाले कई दलों के नेता और कार्यकर्ता शामिल हुए। कांग्रेस (ओ), स्वतंत्र पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, भारतीय जनसंघ, लोक दल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक छोटे से गुट, जिसका नेत‌ृत्व जगजीवन राम कर रहे थे, इन सभी ने मिलकर इस गठबंधन का गठन किया था।

केंद्र में जनता पार्टी सरकार

आपातकाल, जो स्वतंत्र भारत के इतिहास का एक काला अध्याय था, ने केंद्र में जनता पार्टी की जीत का मार्ग प्रशस्त किया और श्री मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। इस सरकार में चौधरी चरण सिंह गृह मंत्री थे और श्री जगजीवन राम रक्षा मंत्री बनें। भारतीय जनसंघ के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने और श्री लालकृष्ण आडवाणी सूचना और प्रसारण मंत्री बने। हालांकि, दो साल की छोटी अवधि में जनता पार्टी आपसी प्रतिद्वंद्विता, आंतरिक अंतर्विरोधों का शिकार हो गई और परिणामस्वरूप 19 जुलाई, 1979 को श्री मोरारजी देसाई ने इस्तीफा दे दिया और केंद्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार गिर गई। इसके बाद तत्कालीन जनसंघ के नेताओं को ‘दोहरी सदस्यता’ की षड्यंत्र के कारण जनता पार्टी छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।

भाजपा का जन्म और उसके बाद

06 अप्रैल, 1980 को जनसंघ के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया और श्री अटल बिहारी वाजपेयी नई पार्टी के पहले अध्यक्ष बनें। जून, 1980 में पार्टी के गठन के ठीक दो महीने बाद भाजपा ने उत्तर प्रदेश में चुनावी आगाज किया। इन चुनावों में पार्टी को 11 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस ने सरकार बनाई और श्री वीपी सिंह सीएम बनें।

वर्ष 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में चुनाव हुए और जो राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद पहला आम चुनाव था और इन चुनावों में पार्टी को कुल 7.74 प्रतिशत मत हासिल हुए और भाजपा ने दो सीटें जीतीं।

उत्तर प्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव 1985 में हुआ और भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में अपनी पिछली प्रदर्शन में सुधार करते हुए 9.83 प्रतिशत मत हासिल किये और 16 सीटें जीतीं। लेकिन 1980 से 1988 तक उत्तर प्रदेश में राजनीतिक अनिश्चितता का दौर रहा और इस दौरान एक के बाद एक छ: मुख्यमंत्री आए।

बोफोर्स घोटाला और जनता दल प्रयोग

1987 में बोफोर्स घोटाला सामने आया जिससे प्रधानमंत्री राजीव गांधी की छवि को भारी क्षति हुई। शाहबानो मामले ने राजीव गांधी सरकार की अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति को भी उजागर कर दिया। जनवरी 1988 में भाजपा ने राजीव गांधी के इस्तीफे और मध्यावधि चुनावों की घोषणा की मांग की। अगस्त, 1988 में नेशनल फ्रंट का गठन किया गया और श्री एनटी रामाराव इसके अध्यक्ष बने। साथ ही जनता दल का भी जन्म हुआ।

1989 तक प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिरे हुए थे और नवंबर में हुए आम चुनावों में वह मुश्किल से अपनी लोकसभा सीट को बचाने में कामयाब हुए। इसी के साथ उनकी सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा। हालांकि, 141 सीटों के साथ जनता दल दूसरे सबसे बड़े घटक के रूप में उभरा और श्री वीपी सिंह के नेतृत्व में भाजपा (86 सीटों) और कम्युनिस्ट पार्टियों (44 सीटों) के समर्थन से गठबंधन ने बहुमत के जादुई आंकड़े को हासिल कर लिया, जिसने दिसंबर, 1989 में सत्ता संभाली थी। इन चुनावों ने भाजपा को 11.36 प्रतिशत मतों और 86 सीटों के साथ देश में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित किया। इस चुनाव में बोफोर्स मुद्दे के साथ-साथ भाजपा ने ‘सभी के लिए न्याय, किसी का तुष्टिकरण नहीं’ के आदर्श वाक्य को अपना ध्येय बनाया।

आम चुनाव के साथ-साथ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भी नवंबर, 1989 में हुए। इस चुनाव में अपनी पकड़ को और मजबूत करते हुए भाजपा ने 11.61 प्रतिशत मतों के साथ 57 सीटें जीतीं और राज्य में जनता दल सरकार को बाहर से समर्थन देने का निर्णय लिया। जनता दल ने 208 सीटें जीतीं और मुलायम सिंह यादव इसके मुखिया बनें। लेकिन श्री एनडी तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस के लिए यह चुनाव विनाशकारी साबित हुआ और यहां से कांग्रेस पार्टी के पतन की शुरुआत हुई और जो आज भी जारी है।
1980 के दशक के दौरान भाजपा ने उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में अपनी पकड़ को मजबूत किया। भाजपा ने सितंबर, 1989 में श्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा शुरू की और यह यात्रा पार्टी के लिए महत्वपूर्ण आंदोलन के तौर पर सामने आयी। इस यात्रा को पूरे देश में अभूतपूर्व जन समर्थन मिला।

यूपी में अपने दम पर पहली भाजपा सरकार बनी

1990 के दशक की शुरुआत के साथ उत्तर प्रदेश में राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया और भाजपा कार्यकर्ताओं के समर्पण और कड़ी मेहनत ने पार्टी को प्रदेश में जीत दिलाई। राज्य में 1991 में विधान सभा चुनाव हुए। जिसमें लोगों के भारी समर्थन के कारण भाजपा ने 33.30 प्रतिशत मत हासिल किये और 221 सीटें जीतीं। इसके साथ उत्तर प्रदेश में अपने बल पर पहली सरकार बनाईं और श्री कल्याण सिंह नए मुख्यमंत्री बने। 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में अवैध बाबरी ढांचे को विवादित कर दिया गया और इसके तुरंत बाद कल्याण सिंह सरकार को अलोकतांत्रिक रूप से बर्खास्त कर दिया गया और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

1996 में हुए अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 174 सीटें मिलीं। राष्ट्रपति शासन की अवधि के बाद भाजपा और बसपा ने अप्रैल 1997 में एक संक्षिप्त अवधि के लिए सरकार बनाई। वर्ष 2002 तक भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार राज्य में रहीं, जिनका श्री कल्याण सिंह, श्री राम प्रकाश गुप्ता और श्री राजनाथ सिंह ने नेतृत्व किया। इसके बाद दो मुख्य क्षेत्रीय दलों— बसपा और सपा ने 2017 तक राज्य में शासन किया। हालांकि, बसपा और सपा शासनकाल के दौरान भाई-भतीजावाद, राजनीतिक हिंसा, बिगड़ती कानून व्यवस्था, तुष्टिकरण की राजनीति, जातिवाद, भ्रष्टाचार और आतंकवाद ने प्रदेश और उसकी अर्थव्यवस्था को बीमारू राज्यों की श्रेणी में धकेल दिया।

2014 में भाजपा की अभूतपूर्व जीत

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व जीत हासिल की और पिछले दो आम चुनावों की तुलना में अधिक सीटें हासिल कीं, जिससे सीटों की संख्या बढ़कर 282 हो गयी, जो 1984 के चुनावों के बाद से किसी एक पार्टी द्वारा जीती गयी सबसे अधिक सीटें हैं। एनडीए ने लोकसभा की 336 सीटों पर जीत हासिल की। पार्टी ने वर्ष 2014 में 2009 की तुलना में 1.5 गुना अधिक मत प्रतिशत हासिल किया, इस हिसाब से देश में लगभग हर तीसरा वोट पार्टी को गया था। इस प्रचंड जीत के पीछे मुख्य कारण भाजपा और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी के पक्ष चली लहर को माना जाता है। भाजपा क्षेत्रवाद, संप्रदायिक ध्रुवीकरण और जाति की सीमाओं को पार करने में सफल रही। भाजपा की सुनामी ने देश के विपक्षी दलों को झकझोरकर रख दिया और जिसमें कांग्रेस जैसे दलों का सफाया हो गया, जिसे लोकसभा चुनावों में केवल 44 सीटें मिली, जो कांग्रेस के हिसाब से अब तक की सबसे कम संख्या थी।

भाजपा की सुनामी का सबसे बड़ा प्रभाव उत्तर प्रदेश में महसूस किया गया, जहां पार्टी ने 80 में से 71 सीटों पर जीत हासिल की और पार्टी को 42.3 प्रतिशत वोट मिले। इन चुनावों में एनडीए को कुल 73 सीटें हासिल हुईं। यह 1984 के बाद से राज्य में किसी एक पार्टी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था।

अभूतपूर्व जीत के साथ भाजपा ने इतिहास रचा

तीन साल बाद वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। राज्य में भाजपा का 15 साल का के बाद भारी जीत के साथ शासन में आई। इन चुनावों में पार्टी को लगभग 40 प्रतिशत वोट मिले और पार्टी ने 312 सीटें जीतीं— जो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में किसी पार्टी द्वारा जीती गई सीटों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है। राज्य में भाजपा की आंधी कुछ इस तरह चली कि चुनावी पंडित, राजनीतिक विश्लेषक और मीडिया भी दंग रह गए। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने और उनके गतिशील नेतृत्व में राज्य ने बहुआयामी विकास में नया इतिहास रचा।

राम प्रसाद त्रिपाठी

क्रमश:…