पंडित दीनदयाल उपाध्याय- पुण्यतिथि विशेष आलेख

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आज से कुछ वर्ष पहले भाजपा का केंद्रीय कार्यालय 11 अशोक रोड पर था और हमलोग 11 ए अशोक रोड में रहते थे। दोनों ही बंगले एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। एकदिन अचानक भाजपा के वरिष्ठ नेता केदारनाथ साहनी जी का मुझे फोन आया। उन्होंने मुझे अपने कमरे में बुलाया, वे 11 अशोक रोड में बैठा करते थे। जब मैं उनके कमरे में जा रहा था, कुछ भारतीय मूल के विदेशी नागरिक उनके कमरे से निकल रहे थे। साहनी जी ने परिचय कराया। जब वे चले गए तो उन्होंने कहा कि दीनदयालजी के साथ कार्य करने वाले अब देश में कुछ ही लोग बचे होंगे, अतः मुझे लगता है वैचारिक दृष्टि से जब पुस्तक छपे तो छपे, अभी उन लोगों से चर्चा कर उनके बारे में संस्मरण जरूर इकट्ठे कर लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर उस दिशा में तुमने प्रयास करके संस्मरणों की पुस्तक निकाल दी, वह भारत सहित प्रवासी भारतीयों के लिए लाभप्रद होगा।

मैं दूसरे दिन समय लेकर कमल संदेश की टीम लेकर उनके कमरे में पहुंच गया। टीम के सभी सदस्यों ने उनकी वैचारिक कल्पना को पहले समझा। साहनीजी ने देशभर के कुछ उन नामों को रखने की कोशिश की जो दीनदयालजी के साथ वर्षों काम कर चुके थेl हम लोग वहां से निकले और कमल संदेश दफ्तर में बैठक की और इस कार्य को युद्ध स्तर पर करने का निर्णय लियाl हमने तय किया संस्मरणों की इस पुस्तक का नाम “अजातशत्रु ” होगाl हम सभी लोग पूरी ताकत से लग गएl

संस्मरणों में जो नाम आये उनमें अटलजी, आडवाणीजी, नानाजी देशमुख के साथ विभिन्न राज्यों से अनेक प्रमुख नाम निकाले गए थेl सम्पर्क करने की तैयारी शुरू की गईl कुल 80 नाम निकाले गए थे, जिनमें 42 लोग ही लिखकर, बोलकर संस्मरण देने में समर्थ थेl हम यहां पर तीन लोगों(अटलजी,आडवाणीजी,नानाजी देशमुख) के संस्मरणों को इस आलेख में प्रस्तुत कर रहे हैंl

अटलजी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि पंडित दीनदयालजी का जीवन एक समर्पित जीवन था। शरीर का कण-कण और जीवन का क्षण-क्षण उन्होंने राष्ट्रदेव के चरणों में चढ़ा दिया था। सम्पूर्ण देश उनका घर था, सारा समाज उनका परिवार। उनकी आंखों में एक ही सपना था, उनके जीवन का एक ही व्रत था।

अटलजी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि पंडित दीनदयालजी का जीवन एक समर्पित जीवन था। शरीर का कण-कण और जीवन का क्षण-क्षण उन्होंने राष्ट्रदेव के चरणों में चढ़ा दिया था। सम्पूर्ण देश उनका घर था, सारा समाज उनका परिवार। उनकी आंखों में एक ही सपना था, उनके जीवन का एक ही व्रत था। राजनीति उनके लिए साधन थी, साध्य नही। यह मार्ग था, मंजिल नहीं। वे राजनीति का आध्यात्मीकरण चाहते थे। दीनदयालजी भारत के उज्ज्वल अतीत से प्रेरणा ले उज्वलतर भविष्य का निर्माण करना चाहते थे। उनकी आस्थाएं सदियों पुराने अक्षय राष्ट्रजीवन कि जड़ों से रस ग्रहण करती थीं, किन्तु वे रूढ़िवादी नहीं थे। भविष्य के निर्माण के लिए वे भारत को समृद्धशाली आधुनिक राष्ट्र बनाने कि कल्पना लेकर चले थे। वे बंधे-बंधाये रास्ते से चलने के हामी नहीं थे। इसलिए उन्होंने भारतीय जनसंघ का ऐसा स्वरुप विकसित किया जो अतीत की गौरव गरिमा को लेकर चलता हो और जो आने वाले कल की चुनौतियों का सामना करने के लिए सन्नद्ध हो।

दीनदयालजी को कभी किसी पद ने मोहित नहीं किया। वे संसद सदस्य नहीं थे लेकिन संसद सदस्यों के निर्माता थे। उन्होंने कभी पद नहीं चाहा। बड़ी मुश्किल से उन्होंने जनसंघ के अध्यक्ष का पदभार सम्भाला था। उनकी अध्यक्षता में 1967 में कालीकट अधिवेशन बड़े उत्साह और सफलता के साथ संपन्न हुआ। लोगों ने कहा कि जनसंघ ने कार्यसिद्धि का ऐतिहासिक दृश्य उपस्थिति किया। जनता की आंखें आशा और विश्वास के साथ उन पर जा लगी थीं। देश विदेश के लोगों ने कहा कि कालीकट में जनसंघ ने नया रूप धारण किया है। लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था।

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणीजी ने जो बताया, उससे लगता है की अगर आडवाणीजी की बात दीनदयालजी मान लिए होते तो उस समय उनकी संदिग्ध मौत नहीं होती। आडवाणीजी अक्सर कहा करते थे कि दीनदयालजी हम आपको एक स्टेनो देते हैं। वह आपके साथ रहेगा। आप ट्रेन में भी उसे कहेंगे तो वह लिखता रहेगा। फिर एक न एक व्यक्ति आपके साथ तो रहना चाहिए। हम सभी लोग प्रबंध कर देंगे। यहां तक कि जब वे मुगलसराय के लिए प्रवास पर दिल्ली से निकले थे, उसके पूर्व भी जब आडवाणीजी मिलने गए थे तो यही आग्रह किया था। पर उन्होंने कहा ‘नहीं भाई, मैं अपना काम स्वयं कर लेता हूं और लिखने का भी स्वयं कर लूंगा’। आज लगता है कि आडवाणीजी कितनी दूरदृष्टि रखते थे। काश!दीनदयालजी उनकी बात मान लिए होते।

नानाजी देशमुख ने अपने संस्मरण में लिखा है कि दीनदयालजी के जीवन का प्रत्येक प्रसंग ही नहीं जीवन का एक-एक क्षण प्रेणास्पद रहा है। एक दिन प्रातः दीनदयालजी नानाजी देशमुख के साथ सब्जी खरीदने बाजार गए। दो पैसे कि सब्जी ली। लौटकर घर पहुंचने को ही थे कि दीनदयालजी एकाएक रुक गए। उनका एक हाथ जेब में था,वे बोले ‘नाना बड़ी गड़बड़ हो गयी’। उन्होंने दीनदयालजी से पूछा ‘क्या गड़बड़ हो गयी’। तो दीनदयालजी ने कहा कि ‘मेरी जेब में चार पैसे थे उनमें से एक पैसा खोटा था। वह पैसा ही उस सब्जी वाली को दे आया हूं। मेरे जेब में बचे दोनों पैसे अच्छे हैं। वह क्या कह रही होगी। चलो उसे ठीक पैसा दे आए’। दीनदयालजी के चेहरे पर एक अपराधी जैसा भाव उतर आया था। दोनों वापस सब्जी वाली के पास पहुंचे। उसे वास्तविकता बताई तो कहने लगी ‘कौन ढूंढेगा तुम्हारा खोटा पैसा? जाओ जो दे दिया सो दे दिया’। किन्तु दीनदयालजी नहीं माने। उन्होंने उस वृद्धा के पैसे के ढेर से अपना चिकना खोटा सिक्का ढूंढ निकला। उसके बदले में अपनी जेब से दूसरा अच्छा पैसा वृद्धा को दे दिया। तब कहीं जाकर दीनदयालजी के चेहरे पर संतोष का भाव उभरा। उस वृद्धा कि आंखें डबडबा गईं। सच में दीनदयालजी प्रेरणा के सागर थे।

नानाजी देशमुख कहा करते थे कि भारत बहुत बड़ा देश है। यहां जमीन कम, लोग अधिक हैं। अधिक लोगों को काम पर लगाने से ही देश का भला होग। आज यदि देश के प्रत्येक जिले में दीनदयाल शोध संस्थान जैसे रचनात्मक कार्य करने वाले संस्थान खड़े हो जाएं, तो देश आर्थिक रूप से स्वतंत्र ही नहीं होगा बल्कि देश का स्वावलम्बन बढ़ेगा और विश्व में हम स्वाभिमान से भारत माता का मस्तक ऊंचा कर सकने में सफल होंगे। जिस दिन ऐसा होना शुरू हो जाएगा, तब हम पंडित दीनदयालजी के इस कथन को कि ‘समाज के अंतिम छोर पर खड़े अंतिम व्यक्ति का विकास ही मेरे देश के विकास का मानदंड होना चाहिए’ को सफल बना पाएंगे।

दीनदयालजी का मानना था कि इस देश का भला तब तक नहीं होगा जब तक हम गांव के लोगों के लोगों को शिक्षित, संपन्न और योग्य नहीं बनाएंगेl भारत का विकास इसके बिना सम्भव नहीं। उनके पैर की बिवाईयां फट गई हैं, उनको भरने की कोशिश नहीं करेंगे, उन्हें पर्याप्त वस्त्र नहीं हैं। उनके तन ढकने का इंतजाम करना होगा। उनके बच्चों को कुपोषण से बचाते हुए उन्हें पोषक आहार का प्रबंध करना होगा। उनमें से प्रत्येक को लाभदायी रोजगार उपलब्ध नहीं कराएंगेl उनके रहने की आवास की व्यवस्था नहीं होगी, उन्हें मानवीय सुविधा के अनुसार उपलब्ध नहीं करा पाएंगे तब तक भारत का भला नहीं हो सकता। अगर ऐसा कर पाए तो भारत का विकास होगा और भारत की आत्मा को शांति मिलेगी।

दीनदयालजी का मानना था कि पहले लोगों के मनोवृत्ति का जागरण करना होगा। उनकी सृजनशील के द्वारा उन्हें स्वयं अपने आधार पर खड़ा करना होगा। स्वावलंबन मानव की पहली आवश्यकता है। क्या बिना स्वावलंबन के कोई स्वाभिमानी हो सकता। जिस समाज या जिस देश में स्वावलंबन नहीं, उस देश को संसार में सम्मान नहीं मिल सकता। ‘देश आजाद हुआ। हमें स्वाधीनता मिली। हमें हर गांव में स्वाधीनता का माहौल पैदा करना चाहिए था। हमें स्वतंत्रता इसलिए मिली कि हम स्वाधीन राष्ट्र के स्वाभिमानी नागरिक बने’। व्यक्ति, परिवार और देश के बारे में दीनदयालजी की यही आकांक्षा थी।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भले ही दीनदयालजी के साथ काम न कर पाए हों, परंतु उनके विचारों को अपनी योजना के माध्यम से समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को आधार मानकर ही गरीबी मिटाने का कार्य प्रारम्भ किया हैl देश के वंचित लोगों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में अटलजी ने शुरुआत की, नरेंद्र मोदी जी इसे आगे बढ़ा रहे हैं। बिना कुछ कहे लग रहा नरेंद्र मोदी जी को दीनदयालजी रोज कुछ कह रहे और वे उसे कार्य रूप दे रहे। स्किल इंडिया मिशन, सुगम्य भारत अभियान, मुद्रा योजना, स्वच्छता,हर घर जल, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि,स्वामित्व योजना,प्रधानमंत्री-स्वनिधि योजना,प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना,आयुष्मान भारत, जन-औषधि केंद्र,उज्ज्वला योजना,उजाला योजना,नई रोशनी,उड़ान योजना,प्रधानमंत्री कुसुम योजना, मातृत्व वंदना योजना,प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण तथा शहरी),कर्म योगी मानधन योजना,प्रधानमंत्री अटल पेंशन योजना,प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान,अन्‍त्‍योदय अन्‍न योजना, आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना सहित 100 से अधिक जन कल्याणकारी योजनायें हैं, जिनके माध्यम से दीनदयालजी का सपना साकार हो रहा है। नरेंद्र मोदी जी समाज के ‘अंतिम पंक्ति’ के ‘अंतिम व्यक्ति’ का स्वर बन रहे हैं।

प्रभात झा
(लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष)