एस. मधुमंगोल शर्मा— नि:स्वार्थ सेवा की कहानी

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क अच्छी शैक्षिक पृष्ठभूमि से आने वाले श्री एस. मधुमंगोल शर्मा ने 12 वर्ष की आयु में ही विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेना और उनके प्रति उत्साह विकसित कर लिया था। उन्होंने सतसंघ केंद्र, कीशमथोंग टॉप लीराक, इम्फाल में श्री योगेंद्रजीत सिंह के मार्गदर्शन में सतसंघ कार्यक्रम में भाग लिया। 1965 में वह संघ प्रचारक श्री भास्कर कुलकर्णी के संपर्क में आए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गए। उन्होंने असम में प्रथम वर्ष एवं द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया और तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण नागपुर जाकर पूरा किया।

वे 1969 में एकनाथ रानाडे के नेतृत्व में विवेकानंद रॉक मेमोरियल कमेटी, कन्याकुमारी के संगठन मंत्री बने और कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल के निर्माण के लिए जागरूकता और फंड जुटाने के अभियान में शामिल हुए। उन्होंने मणिपुर प्रदेश में संघ गतिविधियों का विस्तार करने के लिए माननीय सदाशिव गोलवलकर (श्रीगुरुजी), माननीय बालासाहेब देवरस, माननीय रज्जू भैया और माननीय सुदर्शनजी के मार्गदर्शन में काम किया और बाद में वे मणिपुर विभाग के कार्यवाह बन गए।

आपातकाल (1975-1977) की अवधि के दौरान जब बड़ी संख्या में संघ स्वयंसेवकों को मीसा कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था, तब श्री एस. मधुमंगोल शर्मा को भी मीसा के तहत मणिपुर सेंट्रल जेल में 19 महीने बिताने पड़े।

1977 में आपातकाल हटाए जाने के बाद मणिपुर में जनता पार्टी की सरकार बनी। ऐसा कहा जाता है कि श्री एस. मधुमंगोल शर्मा मणिपुर में जनता पार्टी सरकार के गठन के प्रमुख वास्तुकारों में से एक थे।
1984 में उन्होंने मणिपुर से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और कुल 30 प्रतिशत मत हासिल किये। यह वह दौर था, जब भाजपा मणिपुर में अपने विस्तार के प्रारंभिक चरण में थी। उन्होंने मणिपुर में भाजपा के विस्तार के लिए मणिपुर घाटी और पहाड़ियों इलाकों का व्यापक प्रवास किया।

श्री शर्मा 1984 से 1991 तक मणिपुर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे और उन्होंने लगातार तीन बार राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य के रूप में भी कार्य किया। वह भाजपा के उत्तर-पूर्वी प्रदेशों के समन्वयक भी रहे। कांग्रेस के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार की दमनकारी और जनविरोधी नीतियां प्रदेश में उग्रवाद के उदय के लिए पूरी तरह जिम्मेदार थीं। उस समय, जबरन वसूली और निर्दोष लोगों की हत्या के साथ भारत विरोधी आंदोलन अपने चरम पर था। इस दौर में श्री एस. मधुमंगोल शर्मा संघ और भाजपा की विचारधाराओं के माध्यम से देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता का प्रचार करने के लिए आगे आए।

जबरन वसूली और निर्दोष लोगों की हत्या को रोकने के लिए निडर होकर काम करने के कारण उन्हें उग्रवादियों द्वारा लगातार धमकी दी जा रही थी। परिणामस्वरूप, वह उनके निशाने पर आ गये, क्योंकि वह उग्रवादियों के लिए लगातार बाधा उत्पन्न कर रहे थे। इसलिए 11 फरवरी, 1995 को सुबह 7.30 बजे दो उग्रवादी उसके घर आए और उन्होंने करीब 12 गोलियां उन पर दागीं। जिसमें से एक गोली उनकी शर्ट की जेब में रखी एकात्म मानववाद की पुस्तक को भेदती हुई उन्हें लगी। वह भगवद् गीता भी अपने पास रखते थे।

भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी ने 15 फरवरी, 1993 को उनके घर का प्रवास किया और उन्हें ‘शहीद’ की उपाधि दी, क्योंकि उन्होंने मातृभूमि के लिए अपने जीवन का त्याग किया था।

वह मणिपुर से खनन और भूविज्ञान में इंजीनियरिंग के पहले स्नातक थे। वह गीता मंडल, कल्याण आश्रम, विद्या भारती, विवेकानंद केंद्र जैसे कई संस्थानों और संगठनों से जुड़े थे और उन्होंने विषय विशेषज्ञ के तौर पर कई प्रदेश स्तरीय सम्मेलनों में भाग लिया। उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के दार्शनिक निहितार्थ के अपने प्रवचन से सभी आयु वर्ग के लोगों का दिल जीता। एक सच्चे स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक मणिपुर के लोगों की सेवा करते हुए अपना जीवन त्याग दिया। उन्होंने मणिपुर सरकार के उद्योग विभाग के अतिरिक्त निदेशक के पद से केवल इसलिए इस्तीफा दे दिया, ताकि वह पूरे दिल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भाजपा की गतिविधियों को अपना समय दे सकें। उन्होंने बड़े पैमाने पर मणिपुर में युवाओं, स्थानीय क्लबों आदि के बीच स्वामी विवेकानंद के संदेश को फैलाने के लिए काम किया।