काला धन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ था। पहले लोगों को गुमराह करने के लिए काले धन पर सिर्फ चर्चा की जाती थी, पर उसे औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाने के व्यावहारिक प्रयास कभी नहीं किए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आते ही काले धन पर करारी चोट की।
स्मृति ईरानी
इस सदी की शुरुआत से ही समूची दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था की अलग साख बनी हुई है। वर्ष 2014 से पूर्व इस साख पर प्रश्नचिह्न लगते रहे, जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था और विकास पर बुरा प्रभाव पड़ा। भाजपा के नेतृत्व वाली मौजूदा एनडीए सरकार के सत्ता में आने से पहले देश में नीतिगत पक्षाघात यानी ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ की स्थिति थी। निर्णय लेने में सरकार की असमर्थता के कारण अर्थव्यवस्था की हालत जर्जर हो चुकी थी। अनेक घोटालों के कारण सरकार और देश की साख दांव पर थी। ऐसे में, जब भाजपा की सरकार आई, तो लोगों में एक नया विश्वास जगा कि अब देश में बदलाव की लहर आएगी। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, सभी स्तरों पर भारत की छवि सुधरेगी। उनके इस विश्वास को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री ने शुरू से ही एक स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाया। उनकी सोच एक पारदर्शी सरकार की स्थापना करने की थी। वे भारत को विश्व की अग्रिम पंक्ति में ले जाने के प्रति संकल्पित थे। वे निश्चय कर चुके थे कि सशक्त अर्थव्यवस्था के लिए उन्हें कोई भी कदम उठाना पड़े, तो वे उससे पीछे नहीं हटेंगे। इसी परिप्रेक्ष्य में अर्थव्यवस्था सुधारने की मुहिम शुरू की गई।
काला धन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ था। पहले लोगों को गुमराह करने के लिए काले धन पर सिर्फ चर्चा की जाती थी, पर उसे औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाने के व्यावहारिक प्रयास कभी नहीं किए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आते ही काले धन पर करारी चोट की। इसको अर्थव्यवस्था में वापस लाने के लिए कई प्रयास किए, जैसे – 2014 के बजट में विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन, काला धन और कर आरोपण अधिनियम, बेनामी लेन-देन निषेध (संशोधन) कानून, स्विट्जरलैंड के साथ सूचना आदान-प्रदान का करार, मॉरीशस, साइप्रस व सिंगापुर के साथ कर संधियों में परिवर्तन, दोहरा कराधान परिहार करार, धन-शोधन निवारण अधिनियम यानी मनी लॉन्डरिंग ऐक्ट आदि।
अर्थव्यवस्था के शुद्धिकरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए माननीय प्रधानमंत्री ने आठ नवंबर, 2016 को विमुद्रीकरण का अभूतपूर्व, साहसिक और कड़ा निर्णय किया, जिसकी पूरे विश्व में सराहना की गई। विमुद्रीकरण के जरिये सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाने वाले अवैध कार्यकलापों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और करों की चोरी करने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसी क्रम में बैंकिंग सिस्टम में जमा किए गए काले धन का पता लगाने के लिए आयकर विभाग ने 31 जनवरी, 2017 को ‘ऑपरेशन क्लीन मनी’ की शुरुआत की। इसके तहत 17.73 लाख संदिग्ध बैंक खाताधारकों से जमा की गई राशि के बारे में स्पष्टीकरण मांगा गया। आयकर विभाग के अनुसार इस वर्ष व्यक्तिगत करदाताओं की संख्या में लगभग 26.6 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह बदलाव पारदर्शी अर्थव्यवस्था की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
विमुद्रीकरण के पश्चात 2.24 लाख से अधिक फर्जी कंपनियों का पंजीकरण रद्द किया गया और फर्जी लेन-देन में शामिल 1150 से अधिक पंजीकृत कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू की गई। सरकार ने बड़ी संख्या में बेनामी लेन-देन का पता लगाया है। विमुद्रीकरण का निर्णय दरअसल एक तीर से कई लक्ष्य साधने का प्रयास था। इसे लागू करने की मुख्य वजह देश की अर्थव्यवस्था के समानांतर उभरी उतनी ही शक्तिशाली काले धन की व्यवस्था को ध्वस्त करना था। यह कवायद भ्रष्टाचार, काला धन, जाली करेंसी और आतंकवादी फंडिंग को समाप्त करने के लिए सरकार के संकल्प का हिस्सा थी। काले धन पर चोट की बदौलत रियल एस्टेट में कीमतों में तेजी से गिरावट दर्ज की गई। विमुद्रीकरण से ‘डिजिटलीकरण और कैशलेस अर्थव्यवस्था’ का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। मुद्रा के ऑनलाइन आदान-प्रदान से करों की चोरी रोकने में मदद मिली है। देश के 73.63 करोड़ बैंक खाते आधार संख्या से जोड़े जा चुके हैं और इसके आधार पर प्रति माह लगभग सात करोड़ सफल भुगतान किए जा रहे हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों को मिल रहा है, जिससे बिचौलियों का तंत्र नष्ट हो गया है। विमुद्रीकरण से अब औपचारिक अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा प्राप्त हुई है। लोग पहले की तुलना में ज्यादा मात्रा में अपनी बचत असुरक्षित भौतिक संपत्तियों की जगह म्युचुअल फंड व जीवन बीमा जैसी योजनाओं में लगा रहे हैं। अनौपचारिक मुद्रा के औपचारिक प्रणाली में आने से अर्थव्यवस्था की तरलता में वृद्धि हुई है।
ब्याज दर में कमी के कारण निवेश की प्रक्रिया में तेजी आई है, जिससे भविष्य में अधिक रोजगार के अवसर सृजित होंगे और लोगों के जीवन स्तर में सुधार आएगा। इससे नक्सलियों और आतंकवादियों द्वारा देश-विरोधी गतिविधियों को संचालित करने में प्रयोग की जा रही नकली मुद्रा पर भी लगाम लगी है। पत्थरबाजी और आतंकवादी प्रदर्शन जैसी घटनाएं काफी हद तक कम हुई हैं। इसी क्रम में सरकार द्वारा लागू किया गया वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) भी करों की जटिलता को समाप्त कर उपभोक्ताओं को बेहतर अर्थव्यवस्था का भाग बनाने की दिशा में उठाया गया एक प्रभावशाली कदम था। अभी हाल ही में विश्व बैंक द्वारा व्यापार करने की सुगमता को ध्यान में रखकर जारी की गई सूची में भारत की स्थिति में अभूतपूर्व सुधार हुआ है और वह पूर्व वर्षों की तुलना में लगभग 30 अंक ऊपर उठकर 100वें पायदान पर पहुंच गया है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के और अधिक सुदृढ़ होने के संकेतों में से एक है।
पिछली सरकार के लंबे शासनकाल के दौरान वैश्विक स्तर पर हमारी रैंकिंग 130-140 के बीच ही बनी रही। तब कभी भी इस दिशा में प्रयास नहीं किए गए। अब पूरे विश्व में इस बात की प्रशंसा की जा रही है कि भारत बदल चुका है और एक नए भारत की नींव रखी जा चुकी है। प्रधानमंत्री ने दोहराया है कि अगले साल इससे भी बेहतर रैंकिंग हासिल करने के प्रयास किए जाएंगे। अगर यह कहा जाए कि विमुद्रीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था को विकासशील अर्थव्यवस्था से विकसित अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने में लिया गया साहसिक और सूझ-बूझ भरा फैसला था, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हालांकि दूरगामी परिणाम को ध्यान में रखकर लिए जाने वाले फैसलों में तातकालिक अड़चनों व परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, पर नए भारत के निर्माण में इस प्रकार के फैसले लिए जाने चाहिए।
(लेखिका केन्द्रीय वस्त्र तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री हैं)
(हिन्दुस्तान से साभार)